महिलाओं के अधिकारों को एक के बाद एक खत्म कर रहा है तालिबान
१४ मई २०२२अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अफगानिस्तान की सिविल सोसायटी अफगानी महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए तालिबान से बार-बार आग्रह कर रहे हैं. कुछ लोगों को यह उम्मीद रही होगी कि तालिबान महिलाओं के अधिकारों को बनाए रखने के लिए कोई कदम उठाएगा, लेकिन इन सब की उम्मीदें उस समय धराशायी हो गई जब इस्लामी कट्टरपंथी समूह ने महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर अपना चेहरा ढकने को लेकर नया फरमान जारी किया.
पिछले साल अगस्त महीने में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया था. उसके बाद से तालिबान ने महिलाओं की जिंदगी को नियंत्रित करने के लिए एक के बाद एक कई फरमान जारी किए हैं. हाल में महिलाओं के लिए अनिवार्य रूप से बुर्का पहनने का फरमान सबसे सख्त नियमों में से एक है. कई महिलाएं इस फैसले से काफी नाराज हैं. यह फरमान 1990 के दशक के अंत में इस्लामी संगठन के सख्त शरिया कानून पर आधारित शासन की भी याद दिलाता है.
अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदजादा ने कहा, "उन्हें (महिलाओं को) चादर (सिर से पैर तक बुर्का) पहननी चाहिए क्योंकि यह पारंपरिक और सम्मानजनक है.” बयान में कहा गया है कि यह उपाय "उन पुरुषों से मिलने पर उकसाने से बचने के लिए किया गया है जो महरम (करीबी पुरुष रिश्तेदार) नहीं हैं.” बयान में यह भी कहा गया है कि अगर कोई जरूरी काम ना हो, तो "बेहतर है कि वे घर पर ही रहें.”
फरमान के मुताबिक, अब से अगर कोई महिला घर के बाहर निकलते समय अपना चेहरा नहीं ढकती हैं, तो उनके पिता या नजदीकी पुरुष रिश्तेदार को सरकारी नौकरी से निकाला जा सकता है या उन्हें जेल में डाला जा सकता है. हालांकि, बूढ़ी महिलाओं और युवा लड़कियों को तालिबान के इस नए फरमान से छूट दी गई है.
सिविल सोसायटी ने फरमान की निंदा की
कई अफगान महिलाएं पारंपरिक रूप से हिजाब पहनती हैं, लेकिन उनमें से सभी सार्वजनिक रूप से बुर्का नहीं पहनती. नए फरमान से उन्हें एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने और उनके रोजगार पर असर पड़ेगा.
तालिबान ने 1996 से 2001 तक के अपने शासन काल के दौरान महिलाओं को उनके कई अधिकारों से वंचित कर दिया था, लेकिन जब 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया, तब महिलाओं को कई अधिकार वापस मिल गए थे. कड़ी मेहनत से हासिल किए गए इन अधिकारों की वजह से महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने, नौकरी करने, और पढ़ाई करने की आजादी मिली.
हालांकि, तालिबान की फिर से सत्ता में वापसी के बाद से महिलाओं के अधिकारों पर संकट के बादल छाने लगे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान से लड़कियों को स्कूल जाने देने और उन्हें समाज में ज्यादा स्वतंत्रता देने का आग्रह कर रहा है, लेकिन तालिबान इसके विपरीत काम कर रहा है. दिनों-दिन महिलाओं के अधिकारों को सीमित करने वाले नए-नए फरमान जारी किए जा रहे हैं.
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अफगान सरकार के एक पूर्व अधिकारी दाऊद नाजी ने ट्विटर पर लिखा कि तालिबान ने इस तरह के हिजाब को पहनने का आदेश लागू किया है जो फील्ड या ऑफिस में काम करने के हिसाब से सही नहीं है. उन्होंने कहा, "तालिबान ने बुर्का पहनने का आदेश जारी किया है, जो एक महिला की पहचान को खत्म कर देता है. मुद्दा हिजाब नहीं, बल्कि महिलाओं के खात्मे का है.”
अफगान संसद की पूर्व सदस्य और महिला अधिकार कार्यकर्ता नाहिद फरीद ने बुर्का वाले आदेश को "लैंगिक रंगभेद का प्रतीक" करार दिया है. उन्होंने फेसबुक पर लिखा, "महिलाओं के लिए ड्रेस कोड, इस योजना को लागू करने के लिए पुरुषों को शामिल करना, लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध, ये सब यह साबित करते हैं कि तालिबान आधी आबादी के शरीर और दिमाग को नियंत्रित करना चाहता है.”
महिलाओं को अपने अधीन करने की बड़ी योजना
सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद से, देश में काफी ज्यादा बेरोजगारी बढ़ गई है. आम जरूरतों की चीजें काफी महंगी हो गई हैं. लोगों के पास भोजन के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं हैं. तालिबान सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है कि अर्थव्यवस्था को कैसे बेहतर बनाया जाए. इन चुनौतियों से निपटने की जगह, इस्लामी चरमपंथी समूह इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या के आधार पर महिलाओं के लिए आचरण के नियम और पहनावे पर ज्यादा ध्यान दे रहा है.
लगभग हर दिन नए नियम की घोषणा की जा रही है. उदाहरण के लिए, मार्च के अंत में यह नियम लागू किया गया कि अगर किसी महिला को हवाई जहाज से सफर करना है, तो उसके साथ एक पुरुष होना जरूरी है. तालिबान हाल ही में लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति देने के वादे से भी मुकर गया.
'पुण्य का प्रचार और बुराई की रोकथाम' मंत्रालय ने पिछले सप्ताह एक बयान जारी किया था. इसमें कहा गया था कि 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के छात्रों के लिए "उचित ड्रेस कोड" पर सहमति होने के बाद लड़कियों के लिए माध्यमिक विद्यालय खोले जाएंगे. तालिबान के सत्ता में आने के बाद महिला मामलों के मंत्रालय के स्थान पर इस मंत्रालय की स्थापना की गई थी.
आपस में मनमुटाव
तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जे के बाद से देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. वर्षों से युद्ध का सामना कर रहा देश आर्थिक रूप से अपने पैर पर खड़ा नहीं हो पाया है. हाल के वर्षों में यह देश विदेशी सहायता पर सबसे ज्यादा निर्भर रहा है, लेकिन तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से पश्चिमी देशों ने आर्थिक मदद बंद कर दी है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय संगठन सीधे पीड़ित आबादी तक मानवीय सहायता उपलब्ध करा रहे हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वैध सरकार के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, तालिबान को कुछ बदलाव करने होंगे. इनमें पश्चिमी देशों की मांगों को स्वीकार करना भी शामिल है, जैसे कि लैंगिक समानता लागू करना. वहीं, तालिबान में कट्टरपंथी ताकतों ने यह संकेत दिया है कि वे इन मांगों को स्वीकार नहीं करेंगे.
अफगानिस्तान विशेषज्ञ तारिक फरहादी ने डीडब्ल्यू को बताया, "नए प्रतिबंध पुराने और समझौता ना करने वाले तालिबानी नेताओं ने बनाए थे.” फरहादी पूर्व अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी के सलाहकार भी थे. उनका मानना है कि तालिबान की कट्टरपंथी शाखा, संगठन में सत्ता के लिए हुए संघर्ष से मजबूत हुई है. वह कहते हैं, "उनके लिए उनकी विचारधारा नागरिकों के कल्याण से ज्यादा महत्वपूर्ण है. उन्हें इस बात को लेकर ज्यादा दिलचस्पी नहीं है कि विश्व समुदाय उन्हें मान्यता दे.”
सौदेबाजी की चिप
काबुल विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर सोरया पेकन ने डीडब्ल्यू को बताया कि अगर तालिबान समाज पर दबाव बढ़ाना जारी रखता है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और तालिबान के बीच सीमित और अनौपचारिक बातचीत का दौर समाप्त हो सकता है. पेकन ने कहा कि तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ बातचीत में लड़कियों के लिए शिक्षा के अधिकार जैसे बुनियादी अधिकारों को जानबूझकर सौदेबाजी की चिप में बदल दिया है. वह कहती हैं, "वे इन बुनियादी अधिकारों की मदद से सौदेबाजी के दौरान विशेष फायदा उठाना चाहते हैं.”
हालांकि, अफगानिस्तान का संघर्ष पिछले साल की तरह इस साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में नहीं है. पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध से निपट रहे हैं. अफगानी नागरिकों को तालिबानी फरमानों का अपने दम पर सामना करने के लिए छोड़ दिया गया है.
यूक्रेन में अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत सरदार मोहम्मद रहमान उघेली का कहना है कि दुनिया पहले से ही अफगानिस्तान संकट के बारे में "भूल रही है". उन्होंने कहा, "अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अफगानिस्तान में संकट को कवर नहीं कर रही है. तालिबान अब देश को पीछे ले जाने वाली नीतियों को लागू करने के लिए स्वतंत्र है.”