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मायावती का मायाजाल टूटा

६ मार्च २०१२

मायावती को मानने वाले उन्हें बड़ी चीजों का शौकीन बताते हैं, बड़े पार्क, बड़ी मूर्तियां, बड़े घर, बड़े तोहफे, बड़ी मालाएं, बड़े विवाद, बड़ी सफलताएं और इनके साथ चला सफर सबसे बड़े राज्य में अब बड़ी हार ले कर आया है.

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तस्वीर: AP

चुनाव से पहले और उसके दौरान चुनावी पंडित जिस कद्दावर हाथी के यूपी की राजगद्दी पर वापसी का दावा कर रहे थे यूपी की जनता ने उसे किनारे बिठा दिया. मायावती को चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है और वो भी इतने बड़े अंतर से जिसकी कल्पना उनके विरोधियों को भी नहीं थी.

पहली बार पूरे पांच साल के लिए मुख्यमंत्री बनी मायावती ने खुद को लगातार चर्चा में बनाए रखा. राज्य के करोड़ों दलित और पिछड़े वर्ग के लोग उनके बनाए पार्क में घूम कर, मूर्तियों को छू कर खुश होते रहे, उन्हें आसामान में जेट विमानों और हेलीकॉप्टरों से उड़ते देख अपनी उम्मीदों को पंख देते रहे, जन्मदिन की उनकी पार्टियों के लिए चंदा जुटाते रहे. इन सब से उत्साहित मायावती अगले पांच सालों के लिए अपनी यूपी की गद्दी को अपना मान चुकी थीं. कहा तो यहां तक जाने लगा था कि अब उनकी निगाह देश के प्रधानमंत्री पद पर भी है. निश्चित रूप से इस बार की जीत उनकी दावेदारी को मजबूत करती लेकिन उनकी टूटी उम्मीदों ने न सिर्फ उन्हें वापस जमीन पर ला खड़ा किया है बल्कि दलित राजनीति की मुश्किलों का अहसास करा दिया है.

पिछले बार के चुनावों में मायावती ने ब्राह्मणों और दलितों को खुश करने की कोशिश की थी और उनके साझा सहयोग के दम पर बड़ी जीत हासिल की थी. चुनाव खत्म होने के साथ ही मायावती ने अपने असली इरादे जता दिए. पूरे पांच साल उनका दलित एजेंडा सिर चढ़ कर बोलता रहा और राज्य के बाकी लोग अपनी किस्मत को रोते रहे. राज्य ने विकास देखा लेकिन सिर्फ उन इलाकों में जो मायावती के दलित वोट बैंक का हिस्सा हैं. सबसे ज्यादा बुरी स्थिति मुस्लिमों की रही जो खुद को पूरी तरह असहाय पाते रहे. ऐन चुनाव से पहले जब मायावती को अपनी मुश्किलों का अहसास हुआ तो उन्हें मुस्लिमों का ख्याल आया.    

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तस्वीर: AP

दलितों और पिछड़े वर्ग के लोगों को रिआया मानने वाली मायावती ने पहली बार मुस्लिम जनता को भी लुभाने की कोशिश की. बहुजन समाज पार्टी ने 85 मुस्लिम उम्मीदवारों को पार्टी का टिकट दिया. मदरसों के विकास के लिए करोड़ों रुपये का बजट बनाया. राज्य की 18 फीसदी आबादी मुस्लिम है और 403 में से 130 सीटों पर वोटिंग को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं. मायावती ने चुनाव माथे पर आने के बाद तो उन्हें लुभाने की बहुत कोशिश की लेकिन पांच सालों के कार्यकाल में कुछ नहीं किया. नतीजतन उनका ये दांव भी काम नहीं आया.

मायावती के राज्य में उत्तर प्रदेश ने ऐसा नहीं कि सिर्फ समस्याएं और विवाद ही देखे. उत्तर प्रदेश भारत के उन पांच राज्यों में है जिसने आर्थिक मोर्चे पर पिछले पांच वर्षों में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया. राज्य में आर्थिक विकास की दर 7.28 फीसदी रही है जो बाकी राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है. पर पांच साल की सरकार से लोग सिर्फ इतनी ही उम्मीद नहीं रखते. आंकड़े कुछ भी कहें राज्य की हालत खस्ता है. जिस तरह की आर्थिक गतिविधियां और लोगों के जीवन में सुधार कार्यकाल पूरा करने वाली दूसरी सरकारों के राज्यों में आई है वैसी उत्तर प्रदेश में नहीं.

मायावती का शासन अच्छी वजहों से ज्यादा उनकी और उनके कार्यकर्ताओं की ऊल जुलूल हरकतों से चर्चा में रहा है. चाहे करोड़ों रुपये की नोटों की माला पहनने की बात हो या उनके खिलाफ बयान देने की वजह से यूपी के कांग्रेस अध्यक्ष के घर जलाए जाने का मामला या खुद की देवी के रूप में पूजा के लिए अपनी मूर्तियां शहर के पार्कों में लगवाना. पिछले साल विकिलीक्स के दस्तावेजों में तो यहां तक पता चला कि उन्होंने अपने सैंडल मंगाने के लिए मुंबई तक जेट विमान दौड़ा दिया था. वैसे मायावती ने इन आरोपों से इनकार किया और जूलियन असांज को पागल तक करार दे दिया.

मायावती शायद यह भूल गईं कि भूख मिटाने के लिए मूर्तियों की नहीं खाने की जरूरत होती है, पार्क कितना भी सुंदर क्यों न हो वो सिर पर छत की जगह नहीं ले सकता, एक के बाद एक कर उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और अपराधों में शामिल होने के आरोप लगते रहे और वो उनकी छुट्टी करती गईं लेकिन अगली बार ऐसा न हो इसके लिए कोई इंतजाम नहीं किया गया. मायावती अपनी बीएसपी को किसी राजनीतिक पार्टी की तरह नहीं किसी दुकान की तरह चलाती हैं जहां सिर्फ उनकी मर्जी चलती है और सामने खड़ा हर शख्स उसे सिर झुका कर अदब से सुनता है.

यहां तक की चुनावी घोषणा पत्र जारी करने की औपचारिकता भी उनकी पार्टी, रैलियों में होने वाले उनके भाषणों से पूरा करती है. ऐसे में वो किसी की सलाह मानेंगी इसकी तो कल्पना बेमानी है पर इस हार से शायद उन्हें सबक मिले और यह अहसास जगे कि सरकार बनाना और चलाना है तो हाथों को काम और पेट को खाना देना होगा. सिर्फ पत्थर की मूर्तियों से बात नहीं बनेगी. सत्ता के मद में सामने वाले को रौंदता हाथी हार की बेड़ियों में जकड़ा गया है और अब उसके हौसले पस्त हैं. लोकतंत्र मुस्कुरा रहा है.

रिपोर्टः एन रंजन

संपादनः ए जमाल

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