1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मुशर्रफ़ का राजनीति में जाने का संकेत

१६ फ़रवरी २०१०

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने स्वदेश लौट कर राजनीति में शामिल होने का संकेत दिया है. लेकिन कहा कि फ़ैसला वोटरों के हाथ में है. उन्होंने यह भी कहा कि अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सेना को जल्द नहीं हटना चाहिए

https://p.dw.com/p/M2pg
लंदन में हैं मुशर्रफ़तस्वीर: AP

लंदन में एक थिंकटैंक चैथम हाउस की बैठक के दौरान मुशर्रफ़ ने कहा, "मैं अपने देश को प्यार करता हूं और पाकिस्तान के लिए कुछ भी कर सकता हूं." पिछले साल राष्ट्रपति पद से हटने के बाद मुशर्रफ़ इन दिनों स्वनिर्वासन में रह रहे हैं.

मुशर्रफ़ ने कहा, "पाकिस्तान के लिए कोई कुछ भी कर सकता है. हालांकि इस बारे में फ़ैसला पाकिस्तान लोगों को करना होगा." मुशर्रफ़ ने चुटकी लेते हुए कहा, "मैं अब सेना में नहीं हूं. एक आम नागरिक हूं और कोई भी ज़िम्मेदारी निभा सकता हूं." 1999 में सेना प्रमुख रहते हुए मुशर्रफ़ ने नवाज़ शरीफ़ की सरकार को सत्ता से बेदख़ल कर देश की बागडोर संभाली थी. वह लगभग दस साल तक सत्ता में रहे.

मुशर्रफ़ ने कहा, "मुझे राजनीतिक प्रक्रिया, चुनावों की प्रक्रिया के माध्यम से आना पड़ेगा. मैं सोचता हूं कि यह ठीक है. इससे मुझे वह वैधता मिलेगी जो कभी मेरे पास नहीं थी." हालांकि मुशर्रफ़ ने यह नहीं कहा कि वह कब पाकिस्तान लौटेंगे. पाकिस्तान में उन पर 2007 में जजों को हिरासत में लेने मुक़दमा लंबित है. उन्होंने 3 नवंबर 2007 को इमरजेंसी लगाई और 60 जजों को बर्ख़ास्त कर दिया.

Pakistan Oberster Gerichtshof in Islamabad
सुप्रीम कोर्ट में मुशर्रफ़ के ख़िलाफ़ मुक़दमातस्वीर: Abdul Sabooh

इन दिनों पाकिस्तान में राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी के ख़िलाफ़ भी न्यायपालिका में ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा है. दरअसल जजों की नियुक्ति पर राष्ट्रपति की सिफ़ारिशों को न्यायपालिका ने ख़ारिज कर दिया. सोमवार को देश भर में हज़ारों वकीलों से ज़रदारी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए.

अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर मुशर्रफ़ ने कहा कि वहां से विदेशी सेना की वापसी की बातें शांति स्थापित करने की कोशिशों पर ग़लत असर डाल रही हैं. दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के ख़िलाफ़ सैन्य का कार्रवाई का उन्होंने समर्थन किया लेकिन कहा कि विश्व शक्तियों को अफ़ग़ान मिशन के बारे में अपने वादों को पूरा करना चाहिए. मुशर्रफ़ कहते हैं, "हमने वहां और तीस हज़ार अमेरिकी सैनिक भेजे हैं. अभियान चल रहा है. बहुत अच्छी बात है. लेकिन हम वहां से दो साल बाद भागने की बात कर रहे हैं. अगर मैं तालिबान कमांडर होता तो दो साल तक बिल्कुल चुप बैठा रहता." मुशर्रफ़ को डर है कि दो साल में विदेशी सेना हटने के बाद तालिबान फिर अफ़ग़ानिस्तान पर क़ाबिज़ हो सकता है. भारत भी यही चिंता जताता रहा है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह