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यूएन रिपोर्ट ने चेताया खुद को बचाना है तो प्रकृति को बचाओ

६ मई २०१९

संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर हम प्रकृति को बचाने में असफल रहते हैं तो इंसानों का अस्तित्व भी खतरे में आ जाएगा. रिपोर्ट में जीवों की 10 लाख किस्मों पर लुप्त होने का खतरा बताया गया है.

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Sundarbans Honey Collection Bildergalerie
तस्वीर: DW/M.M. Rahman

धरती पर मौजूद 10 लाख से ज्यादा जीवों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. संयुक्त राष्ट्र और 130 देशों के समर्थन से तैयार एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है. रिपोर्ट में साफ चेतावनी है कि अगर जैव विविधता को खो दिया तो इंसान के अस्तित्व के लिए इसका असर जलवायु परिवर्तन के खतरे जैसा ही होगा. यूएन बायोडाइवर्सिटी के प्रमुख रॉबर्ट वाटसन ने वैश्विक जैवविविधता और ईकोसिस्टम पर की गई इस बड़ी स्टडी पर बात करते हुए बताया, "होगा यूं कि जैवविविधता को गंवाते गए तो गरीबी घटाने, पर्याप्त भोजन, पानी की व्यवस्था करने, इंसान की सेहत सुधारने की हमारी क्षमता कम हो जाएगी. नतीजतन कोई भी नहीं बचेगा."

सन 2005 के बाद अपनी तरह की इस पहली रिपोर्ट में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन बायोडाइवर्सिटी एंड ईकोसिस्टम सर्विसेज (IPBES) ने इंसान के सामने आ सकने वाले खतरनाक नतीजों की बात की है. इन खतरों में पूरी की पूरी किस्मों के सामूहिक खात्मे और प्रकृति के बर्बाद हो जाने जैसी बातें हैं. दुनिया भर के 400 से भी अधिक विशेषज्ञों ने इस पर मिल कर काम किया है. वे सब मानते हैं कि अगर जीवों की किस्मों और ईकोसिस्टम में हो रही गिरावट को नहीं रोका गया तो हर उस चीज का अकाल झेलना पड़ेगा जो इंसान के अस्तित्व के लिए जरूरी हैं.

पिछले 50 सालों में धरती और सागर के इस्तेमाल के तरीकों में इतने बदलाव आए हैं, जिनसे जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्रजातियों के नष्ट होने की दर बढ़ी है. रिसर्चरों ने इसमें सामूहिक रूप से खपत बढ़ाने और सरकारों का संसाधनों पर ध्यान ना देने जैसे इंसान के बदलते व्यवहार का बड़ा हाथ पाया है. रिपोर्ट में लिखा है, "आने वाले दशकों की सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि मानव जीवन में प्रकृति के अमूल्य योगदान का संरक्षण हो सके."

Australien Great Barrier Reef
समुद्री जीवों पर भी पड़ा है बुरा असर.तस्वीर: picture-alliance/Kyodo

जैवविविधता का आशय उन सब जीवों से है जो हमारी धरती पर पाए जाते हैं. इसमें बैक्टीरिया से लेकर, पौधे, जानवर, वर्षावन, कोरल रीफ सब कुछ आता है. जितना इन्हें गिनना मुश्किल है उतना ही इनके योगदान को मापना भी. फिलहाल करीब 15 लाख प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कुल प्रजातियों की संख्या एक करोड़ से दो अरब के बीच कुछ भी हो सकती है. कई जीव तो इतने छोटे होते हैं जिन्हें डीएनए के क्रम के आधार पर पहचाना जा सकता है. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की प्रमुख वैज्ञानिक रेबेका शॉ बताती हैं, "बायोडाइवर्सिटी की बात हो तो शायद आप बाघ या ध्रुवीय भालू को बचाने के बारे में सोचें. हालांकि वे भी अहम हैं लेकिन ऐसी भी कई प्रजातियां हैं, जो ना तो दिखती हैं और ना ही कभी उनकी बात होती है."

जैसे मधुमक्खियों के बिना परागण नहीं होगा, फसलें और पेड़ नहीं फलेंगे और पेड़ नहीं होंगे तो कार्बन डायोक्साइड को ऑक्सीजन में कौन बदलेगा. फिर इंसान और दूसरे जीव सांस तक नहीं ले पाएंगे. ऐसी कई प्रक्रियाएं हैं जिनमें से किसी एक जीव के गायब हो जाने से अप्रत्याशित परिणाम झेलने पड़ सकते हैं. रिपोर्ट में बताया गया कि अगर फौरन कुछ नहीं किया गया तो आने वाले कुछ ही दशकों में करीब एक चौथाई पौधों और जानवरों की किस्में लुप्त हो सकती हैं.

नदियों को मैला करने, जंगलों को मिटाने, बेहिसाब मछलियां पकड़ने से, कीड़े मारने से इंसान प्रकृति पर बहुत ज्यादा दबाव डाल रहा है. यूएन पर्यावरण के कार्यकारी प्रमुख जॉइस मसुया ने बताया, "हमारी कभी खत्म ना होने वाली मांग के चलते धरती के संसाधनों पर तेज गति से गायब होने का संकट मंडरा रहा है और इससे पूरे विश्व का ईकोसिस्टम प्रभावित होगा. रिपोर्ट में बताया गया है कि इंसान की गतिविधियों के कारण पर्यावरण के करीब दो तिहाई हिस्से में बड़े बदलाव आ चुके है.

खेती के क्षेत्र में बहुत ज्यादा बदलाव आए हैं. अब वैश्विक उपज के दो-तिहाई से भी बड़ा हिस्सा केवल नौ तरह की किस्मों से आता है. इसके कारण जिस जमीन में खेती होती है उस मिट्टी की विविधता पर मार पड़ी है. खाद्यान्नों इसके असर के अलावा मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता कम होती है जिसका नतीजा कहीं नमी की कमी तो कहीं बाढ़ के रूप में दिखता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर अब से भी "तुरत और लक्षित प्रयास" किए जाएं तो प्रकृति को बचाया जा सकता है. लक्ष्य होना चाहिए कि 2050 और आगे तक के लिए नीतियों में जरूरी परिवर्तन किए जाएं. नीति निर्माताओं के लिए दिए गए तमाम सुझावों के अलावा वैज्ञानिकों ने आम लोगों से भी अपने रोजमर्रा के जीवन में जिम्मेदारी भरा व्यवहार करने की मांग की है.

अजित निरंजन/आरपी

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