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राजनीति युवाओं की 'पहली पसंद' क्यों नही

२२ अप्रैल २००९

जीवन के अधिकतर क्षेत्र ऐसे हैं जहां युवाओं के प्रदर्शन और उनकी क्षमता को तरजीह दी जाती है लेकिन भारत की राजनीति में ऊंचे पद पर अभी तक युवाओं को मौक़ा कम ही मिल पाया है.

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क्या राजनीति में आगे बढ़ने के अवसर नहींतस्वीर: picture-alliance / dpa

15वीं लोकसभा के गठन के लिए मतदान शुरू हो चुका है. इस बार की लोकसभा का स्वरूप तो चुनावों के बाद ही सामने आ पाएगा लेकिन अगर 14वीं लोकसभा पर एक नज़र डालें तो पिछली लोकसभा में 541 सीटों पर विजयी उम्मीदवारों के लिए बेंगलौर स्थित पब्लिक अफ़ेयर्स सेन्टर ने एक विश्लेषण कराया था जिससे ये बात सामने आई कि संसद में सांसदों की औसत आयु 53 साल है. 65 साल से ज़्यादा उम्र वाले क़रीब 14 प्रतिशत सासंद हैं यानि क़रीब 75 सांसद. जबकि 35 साल से कम उम्र वाले महज़ साढ़े 6 प्रतिशत. यानि 32 सांसद.

UNI Fotos Milind Deora und Salman Khan
युवा नेता मिलिंद देवड़ा के लिए प्रचार करते सलमान ख़ानतस्वीर: UNI

इंजीनियरिंग,बिज़नेस,खेल, फ़िल्म या कोई भी अन्य क्षेत्र हो, व्यक्ति की क्षमता और उसके प्रदर्शन को तरजीह दी जाती है लेकिन राजनीति और शायद भारतीय राजनीति में उम्र को प्राथमिकता दी जाती है. देश की पहली लोकसभा में 40 साल से कम उम्र के 140 सांसद थे और फिर 1957 के चुनावों में ये संख्या 164 तक पहुंची. लेकिन उसके बाद साल दर साल युवा सांसदों की संख्या में गिरावट आती गई. देश युवा होता गया और संसद की औसत आयु बढ़ती गई.

एक ऐसे समय में जब भारत में युवा हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं तो कई हलकों से ये मांग उठने लगी है कि युवाओं को राजनीति में और अवसर मिलने चाहिएं ताकि उनकी क्षमताओं का उपयोग राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में किया जा सके. ख़ासकर ऐसे समय में जब राजनीति में अपराधीकरण और भ्रष्टाचार के आरोप तेज़ हुए हैं.

Generalsekretär der Kongress Partei Rahul Gandhi Indien
राजनीतिक विरासत आगे बढ़ने में सहायक!तस्वीर: UNI

हर पार्टी युवाओं को लुभाने का प्रयास तो करती हैं लेकिन जब टिकट देने की बात की जाती है तो तरजीह अधिकतर मामलों में पुराने नेताओं को ही दी जाती हैं. यानि युवाओं से पुराने नेताओं को फिर से चुनने का आह्वान किया जाता है. वैसे कई युवाओं ने बहुत कम उम्र में ही संसद तक सफ़र तय किया है लेकिन उनकी संख्या को देख कर ही ये मान लेना कि युवाओं को मौक़ा राजनीति में मिल रहा है ग़लत होगा.

कांग्रेस के पूर्व नेता राजेश पायलट के पुत्र सचिन पायलट, माधवराध सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांग्रेस के पूर्व सांसद जितेन्द्र प्रसाद के बेटे जतिन प्रसाद, पूर्व नेता और अभिनेता सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त केन्द्रीय मंत्री मुरली देवड़ा के पुत्र मिलिंद देवड़ा, मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव सहित कई अन्य युवा सांसद. यहां दिक़्कत ये है कि इनमें से कोई भी ज़मीनी राजनीति कर संसद तक नहीं पहुंचा है.अधिकतर युवा नेताओं ने चुनावों में अपनी राजनीतिक विरासत को ही भुनाया है जबकि ज़मीनी राजनीति करने वाले युवा नेता अभी भी ऊपर आने का रास्ता तलाशने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

Manmohan Singh und LK Advani
युवाओं में उत्साह कैसे पैदा करेंतस्वीर: Fotoagentur UNI

कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट का कहना है कि ये सच है कि राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को आसानी से इस क्षेत्र में मौक़ा मिलता है लेकिन देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में जनता जनार्दन होती है. अगर कोई उम्मीदवार सही प्रदर्शन न करे और अपने संसदीय क्षेत्र का ख़्याल न रखे तो जनता उसे अगले चुनाव में हरा सकती है. सचिन पायलट का कहना है कि पांच सालों के दौरान उन्होंने कई इलाक़ों का दौरा किया और पाया कि स्थानीय स्तर पर कई युवा अब राजनीति में दिलचस्पी ले रहे हैं लेकिन इसके बावजूद अभी राष्ट्रीय स्तर पर बहुत कुछ किए जाने की ज़रूरत है.

अब तक युवाओं ने राजनीति के क्षेत्र में ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई और उसे एक करियर के तौर पर नहीं चुना. चाहे कारण सामाजिक सुरक्षा हो, राजनीति का अपराधीकरण हो, सामाजिक दबाव हो या फिर आरामदेह ज़िंदगी को त्याग कर संघर्षपूर्ण जीवन अपनाने की अनिच्छा. ऐसे में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में 'आ रहा बदलाव' क्या युवाओं को प्रेरित करेगा राजनीति को एक करियर के रूप में अपनाने की, इसका जवाब ढूंढ पाना अभी तो मुश्किल लग रहा है.

- सचिन गौड़