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रोंगटे खड़े करतीं अपराधियों की बनाई फिल्में

१८ मार्च २०११

कठघरे में खड़ा 18 साल से कम उम्र का एक कातिल बच्चा, सिर्फ कातिल नहीं होता. वह एक कहानी का किरदार भी होता है. उसके अपराधी बन जाने की कहानी. भारत के शहरों में बिखरी पड़ीं ऐसी कुछ कहानियां अब फिल्मी पर्दे पर नजर आएंगी.

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किरण रावतस्वीर: AP

मुंबई के कुछ बाल अपराधियों की कहानियों पर कुछ फिल्में बनाई गई हैं. इनमें से तीन फिल्मों को मुंबई के महबूब स्टूडियों में दिखाया गया तो देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए. बुधवार शाम को जान, शान और ईमान नाम की तीन फिल्में दिखाई गईं.

इन फिल्मों को बच्चों ने ही बनाया है. समाजसेवी संस्था आंगन की मदद से बच्चों ने न सिर्फ फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी, बल्कि उन्हें फिल्माया और तैयार भी किया. इस पूरी योजना में डायरेक्टर किरण राव और अनुराग कश्यप और पटकथा लेखक विजय कृष्ण आचार्य और विक्रमादित्य मोटवाने जैसे बॉलीवुड के जाने माने लोग भी शामिल हुए.

किरण राव बताती हैं कि उन्होंने जब बच्चों की कहानियों सुनीं तो वह अपने आपको इस योजना का हिस्सा बनने से रोक नहीं पाईं. उन्होंने कहा, "मुझे महसूस हुआ कि उनकी कहानियां बेहद महत्वपूर्ण हैं. हममें से ज्यादातर लोग इन कहानियों को नजरअंदाज कर देते हैं. इसलिए इस तरह की योजनाओं का हिस्सा बनना जरूरी है ताकि बच्चों को आपराधिक जगहों से हटाने की कोशिश की जा सके. बच्चों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है."

फिल्मों के जरिए बाल अपराधी रहे बच्चों ने उन हालात के बारे में बताया है जिन्होंने उन्हें अपराध की दुनिया में धकेल दिया. उसके बाद वे जेलों और बाल सुधार गृहों में रहे जो उनमें से बहुतों के लिए खौफनाक अनुभव साबित हुआ.

मशहूर और सम्मानित फिल्मकार अनुराग कश्यप को किशोर लड़कों की बनाईं ये फिल्म खासी पसंद आईं. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि वे बहुत अच्छे ढंग से कही गई सच्ची कहानियां हैं. उनकी मदद करना, उन्हें समाज का हिस्सा बनाना हमारी जिम्मेदारी है."

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः महेश झा

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