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लद्दाख में क्या पहले की स्थिति बहाल हो रही है?

चारु कार्तिकेय
११ फ़रवरी २०२१

भारत और चीन ने लद्दाख की पैंगोंग झील से दोनों सेनाओं के पीछे हटने पर सहमति बनने की घोषणा की है. जानकार सवाल उठा रहे हैं कि गतिरोध के शुरू होने से पहले जो स्थिति थी उसे बहाल किए जाने पर भी सहमति बनी है या नहीं.

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Indien China Konflikt Indian Air Force
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार 11 फरवरी को संसद में बयान दे कर दोनों सेनाओं के पीछे हटने को लेकर चीन के साथ बनी सहमति की पुष्टि की. उन्होंने बताया कि ताजा समझौते के तहत पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों पर दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने से हट जाएंगी. उन्होंने यह भी कहा कि इसके बाद संयोजित और चरणबद्ध तरीके से दोनों सेनाएं आगे की तरफ तैनात की गई टुकड़ियों को वहां से हटा लेंगी.

महीनों से चल रहे इस गतिरोध की समाप्ति के लिए दोनों सेनाओं के बीच कायम हुई इस सहमति की घोषणा चीनी रक्षा मंत्रालय ने बुधवार शाम को ही कर दी थी, लेकिन भारत सरकार ने तब कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. संसद में राजनाथ सिंह ने इस बात की पुष्टि की दोनों सेनाओं के आमने सामने से हटने की शुरुआत बुधवार को हो गई थी.

उन्होंने आगे बताया कि चीनी सेना फिंगर आठ के पूर्व की तरफ अपने सैनिकों की तैनाती बरकरार रखेगी और भारतीय सेना के सैनिक फिंगर तीन के पास धन सिंह थापा चौकी पर अपने स्थायी अड्डे पर तैनात रहेंगे. रक्षा मंत्री के अनुसार अप्रैल 2020 के बाद उत्तरी और दक्षिणी दोनों किनारों पर दोनों सेनाओं द्वारा बनाए गए अस्थायी ठिकानों को भी हटा लिया जाएगा.

Indien Himalaya Ladakh Besuch von Narendra Modi
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जुलाई 2020 में लद्दाख में सेना की तैयारियों का निरीक्षण करते हुए.तस्वीर: Reuters/Press information Bureau

इसके अलावा जब तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर सहमति नहीं हो जाती, तब तक उत्तरी किनारे पर पारंपरिक रूप से दोनों पक्षों के अधीन इलाकों में कोई सैन्य गतिविधि नहीं होगी. यहां तक कि उन इलाकों में दोनों सेनाओं को गश्त लगाने की भी इजाजत नहीं होगी. इसे अप्रैल 2020 से लद्दाख में बने हुए सैन्य गतिरोध में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन कुछ जानकार सवाल उठा रहे हैं कि इसका सीमावर्ती इलाके में भारत के अधिकारों पर क्या असर पड़ेगा.

भारतीय सेना से सेवानिवृत्त रक्षा मामलों के जानकार सुशांत सिंह का कहना है कि रक्षा मंत्री के बयान से स्पष्ट है कि इस समझौते का उद्देश्य सीमा पर शांति की बहाली है, गतिरोध से पहले की स्थिति की बहाली नहीं. उन्होंने ट्विट्टर पर लिखा कि इससे चीन को उसकी सेना द्वारा उठाए गए कदमों का फायदा उठाने से रोका नहीं जा सकेगा.

सेना से ही सेवानिवृत्त एक और जानकार अजय शुक्ला ने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि बात सिर्फ पैंगोंग की जा रही है जबकि उससे ज्यादा महत्वपूर्ण गतिरोध डेपसांग में बना हुआ, जिसकी अभी तक कोई बात नहीं की गई है.

रक्षा मंत्री के बयान में इस ओर इशारा भी था. उन्होंने कहा कि पैंगोंग के अलावा बाकी पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर कुछ और बिंदुओं पर सेनाओं की तैनाती को लेकर कुछ मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं और इन पर 48 घंटों के बाद फिर बातचीत होगी. अब देखना यह है कि पैंगोंग के इलाके को लेकर बनी सहमति भी कितनी जल्दी लागू होती है.

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