लीबियाई सेना को पश्चिम की मदद
७ दिसम्बर २०१३जवानों को नए बूट दिए गए हैं. उनकी ड्रेस बिलकुल फिट आ रही है और उस पर अच्छी इस्त्री की गई है लेकिन उन्हें सेना की बारीकियां सीखनीं बाकी हैं. आस पास के हथियारबंद मीलिशिया से टकराने के लिए उन्हें अभी अभ्यास की जरूरत है.
दो साल पहले नाटो की मदद से लीबिया में कर्नल गद्दाफी की सत्ता पलटी गई. इस काम में विद्रोहियों को पश्चिम की सेना ने काफी मदद दी. लेकिन यही विद्रोही अब जी का जंजाल बन गए हैं. उन्होंने अपनी सैनिक क्षमता और पश्चिम से मिले हथियारों के बल पर अलग अलग मांगें शुरू कर दी हैं. कई तेल क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है.
प्रधानमंत्री का अपहरण
लीबिया एक बहुत बड़ा तेल उत्पादक देश है और देश की सेना के समर्थ होने तक पश्चिम किसी तरह विद्रोहियों के खतरे से निपटना चाहता है. प्रधानमंत्री अली जीदान ने पिछले महीने लंदन में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी और ब्रिटिश विदेश मंत्री विलियम हेग से मुलाकात की और मदद की गुहार लगाई. कुछ ही हफ्ते पहले खुद जीदान का कुछ देर के लिए अपहरण कर लिया गया था.
इस बात से सभी सहमत हैं कि लीबिया को मदद की जरूरत है. लेकिन माना जा रहा है कि चार दशक तक गद्दाफी का शासन रहने की वजह से वहां का प्रबंध चरमरा गया है. वहां फैसले लेने में दिक्कत, खराब नेतृत्व और अव्यवस्था का बोलबाला है. इसके अलावा उदारवादी और इस्लामी चरमपंथियों के बीच संघर्ष आम बात है, जो स्थिति को और नाजुक बनाता है. पश्चिमी देशों की कोशिश कोई काम नहीं आ रही है.
नेशनल फोर्सेस अलायंस पार्टी के नेता तौफीक अल शाहिबी का कहना है, "बाहर से जो दबाव बन रहा है, उसी से पता चलेगा कि आगे क्या होगा. अगर हमारे बीच समझौता नहीं होता है, तो हम लीबिया को हरा जाएंगे. अगर हम समझेंगे कि हम बाहर की मदद के बगैर अपने देश को बचा लेंगे, तो यह गलत है."
सेना की टेस्टिंग
लीबिया की नई सेना की टेस्टिंग भी हो रही है. पिछले महीने त्रिपोली में बेहद खराब संघर्ष हुआ, जिसमें 40 लोग मारे गए. हालांकि इसके बाद हथियारबंद विद्रोहियों को राजधानी छोड़ कर जाना पड़ा. वहां अब सेना की गश्त लग रही है. बेनगाजी में भी लीबिया की नई सेना हथियारबंद विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. इस शहर में पिछले महीने चरमपंथी हमले में राजदूत सहित चार अमेरिकी नागरिकों की हत्या कर दी गई थी.
तुर्की, इटली और ब्रिटेन ने वादा किया है कि वे लीबिया के 8,000 सैनिकों और पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग देंगे. इसके अलावा जॉर्डन में भी सैनिकों की ट्रेनिंग हो रही है. लेकिन लीबिया का मामला अरब वसंत देखने वाले दूसरे देशों से अलग है. पश्चिमी देशों का कहना है कि गद्दाफी के लंबे शासनकाल की वजह से स्थिति बहुत खराब हो चुकी है. दावा किया जाता है कि संसद में अलग अलग पार्टियों की अलग अलग विद्रोहियों और हथियारबंद ग्रुपों से साठगांठ है. पश्चिम के एक राजनयिक का कहना है, "हम सेना तैयार करने में मदद कर सकते हैं. लेकिन अगर लीबिया के लोग अपने बुनियादी राजनीतिक विवाद को दूर नहीं कर पाते हैं, तो इसका बहुत ज्यादा फायदा नहीं होगा."
खास ट्रेनिंग
पूर्व विद्रोहियों ने इस साल पूर्व और पश्चिम के कबायली इलाकों में गैस पाइपलाइनों, बंदरगाहों और तेल के कुओं पर कब्जा कर लिया. अधिकारियों का कहना है कि इनसे निपटने के लिए लीबिया से बाहर 5,000 सैनिकों को ट्रेनिंग दी जा रही है, जबकि देश के अंदर 10,000 को. करीब 3,000 सैनिकों को त्रिपोली में ट्रेनिंग दी जा रही है. बेनगाजी में सेना की विशेष टुकड़ी है.
इटली और तुर्की में लीबिया के पुलिसकर्मियों की ट्रेनिंग चल रही है. ब्रिटेन अगले साल 2,000 पैदल सैनिकों को ट्रेनिंग देगा. वॉशिंगटन भी सहयोग पर विचार कर रहा है. वह चाहता है कि बुल्गारिया से होते हुए कुछ लीबियाई सैनिक वहां ट्रेनिंग लें. अमेरिकी सेना के विशेष कमान के कमांडर एडमिरल विलियम मैकरावेन ने कहा कि अमेरिका 5,000-7,000 लीबियाई सैनिकों को ट्रेनिंग देने की सोच रहा है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इनमें से कुछ के मीलिशिया से मिले होने का खतरा भी है.
एजेए/ओएसजे (रॉयटर्स)