लॉकडाउन की वजह से ग्रामीण इलाकों में बच्चों पर बढ़ा खतरा
३ अगस्त २०२०कैलाश सत्यार्थी चिलड्रेन्स फाउंडेशन की ओर से ‘'ए स्टडी ऑन इम्पैक्ट ऑफ लॉकडाउन एंड इकोनॉमिक डिस्रप्शन ऑन लो-इनकम हाउसहोल्डस् विद स्पेशल रेफरेंस टू चिल्ड्रेन'' शीर्षक अध्ययन रिपोर्ट में यह बातें कही गई हैं. संगठन ने खासकर ग्रामीण इलाकों में बच्चों पर लॉकडाउन के असर पर एक रिपोर्ट जारी की है. इस अध्ययन के लिए दो चरणों में आंकड़े जुटाए गए हैं और बाल सुरक्षा, बाल अधिकार, बाल तस्करी और बाल विवाह जैसे मुद्दों पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों की टिप्पणियां भी शामिल की गई हैं. फाउंडेशन ने अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी दिवस के मौके पर राष्ट्रीय स्तर पर ‘जस्टिस फॉर एवरी चाइल्ड' अभियान की भी शुरुआत की है.
बच्चों पर रिपोर्ट
फाउंडेशन ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की वापसी से प्रभावित राज्यों के 50 से ज्यादा गैर-सरकारी संगठनों और लगभग 250 परिवारों से बातचीत के आधार पर तैयार अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना महामारी की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान कुछ राज्यों में श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने की समीक्षा की जानी चाहिए और एहतियाती उपाय करने चाहिए. रिपोर्ट में दलील दी गई है कि श्रम कानूनों के कमजोर पड़ने से बच्चों की सुरक्षा प्रभावित होगी. इसके चलते बाल मजदूरी के मामले बढ़ सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 21 फीसदी परिवार आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों से मजदूरी कराने पर मजबूर हैं. रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए आसपास के गांवों में निगरानी तंत्र को और विकसित करना जरूरी है. इससे लॉकडाउन से प्रभावित परिवारों के बच्चों को बाल मजदूरी के दलदल में फंसने से रोका जा सकेगा. फाउंडेशन का कहना है कि पंचायतों और ग्रामीण स्तर पर दूसरे सरकारी अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे काम पर जाने की बजाय स्कूल जाएं.
रिपोर्ट में लॉकडाउन के बाद बच्चों की तस्करी के मामले बढ़ने का भी अंदेशा जताया गया है. अध्ययन के दौरान लगभग 89 फीसदी गैर-सरकारी संगठनों ने अंदेशा जताया कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद वयस्कों के साथ बच्चों की तस्करी भी बढ़ सकती है. लगभग 76 फीसदी संगठनों ने कहा है कि लॉकडाउन के बाद यौन व्यापार के लिए मानव तस्करी तेजी से बढ़ने का अंदेशा है. इनमें बच्चों की संख्या ज्यादा हो सकती है. गैर-सरकारी संगठनों ने लॉकडाउन के बाद बाल विवाह के मामले बढ़ने का भी अंदेशा जताया है. इसे ध्यान में रखते हुए रिपोर्ट में निगरानी बढ़ाने के साथ ही कानून लागू करने वाली तमाम एजेंसियों से और सतर्क रहने को कहा गया है.
स्थिति पर चिंता
फाउंडेशन ने अपनी रिपोर्ट में संबंधित राज्य सरकारों से बाल मजदूरों, बंधुआ मजदूरों और बाल तस्करी की चपेट में आने वाले बच्चों को इस दलदल से निकालने के बाद उनको मुआवजे की राशि का तत्काल भुगतान करने की सिफारिश की है. इस मुआवजे की सहायता से शोषण से मुक्त कराए गए बच्चों को दोबारा बाल मजदूरी और यौन शोषण के दलदल में धंसने से बचाया जा सकेगा. रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार गरीब परिवार परिवार का पेट पालने के लिए बच्चों को यौन व्यापार के दलदल में धकेल रहे हैं. फाउंडेशन ने कहा है कि मौजूदा स्थिति में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका का विस्तार जरूरी हो गया है. इसके अलावा गांवों में और बाहर से आने-जाने वाले बच्चों की निगरानी के लिए पंचायतों को एक विस्थापन रजिस्टर बनाना चाहिए और स्थानीय ब्लाक-स्तरीय अधिकारियों को नियमित रूप से उस रजिस्टर की निगरानी और जांच करनी चाहिए.
इस अध्ययन रिपोर्ट के सामने आने के बाद बाल अधिकारों के रक्षा के हित में काम करने वाले कई संगठनों ने मौजूदा परिस्थिति पर चिंता जताई है. पश्चिम बंगाल बाल अधिकार संरक्षण आयोग की प्रमुख अनन्या चटर्जी कहती हैं, "लॉकडाउन ने खासकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है. लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूरों की वापसी का सबसे ज्यादा असर बच्चों और महिलाओं पर पड़ा है. ऐसे में बाल मजदूरी और यौन शोषण की घटनाएं बढ़ना स्वाभाविक है. संबंधित अधिकारियों को इस पहलू पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए ताकि हालात को गंभीर होने से बचाया जा सके.”
बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले एक संगठन की कार्यकर्ता सोमलता कहती हैं, "ग्रामीण इलाकों में होने वाली ऐसी ज्यादातर घटनाएं पुलिस तक नहीं पहुंच पातीं. इसलिए सही तस्वीर सामने नहीं आएगी. चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन (मुंबई) के नीशीथ कुमार कहते हैं, "हाल के कुछ वर्षों में बाल मजदूरी के खिलाफ शिकायतों की तादाद तेजी से बढ़ी है. आंकड़ों से साफ है कि लोगों में बाल मजदूरी के खिलाफ जागरुकता बढ़ी है. लेकिन यह काफी नहीं है. अब कोरोना और लॉकडाउन के चलते पैदा होने वाले आर्थिक संकट ने स्थिति को कई दशक पीछे धकेल दिया है.” इन संगठनों का कहना है कि संबंधित सरकारों को गैर-सरकारी संगठनों को साथ लेकर इस समस्या पर समय रहते ध्यान देना होगा ताकि ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके.
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