लॉकडाउन में वर्क फ्रॉम होम करने वालों की रोजी-रोटी पर आफत
२८ अप्रैल २०२०कोरोना महामारी की वजह से भारत की करीब 130 करोड़ आबादी लॉकडाउन में है. 24 मार्च से शुरु हुए लॉकडाउन को दूसरे चरण में तीन मई तक बढ़ा दिया गया है. इसका बड़ा असर लोगों के रोजगार पर पड़ा है. शुरुआती दौर में असंगठित क्षेत्र के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए लेकिन अब संगठित क्षेत्र के उन लोगों की रोजी-रोटी पर भी असर पड़ रहा है जो घर से अपना काम यानी वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. इसकी वजह है इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम व एक्सेसरीज की बिक्री पर रोक.
सरकार ने दूसरे चरण में कुछ दुकानों को खोलने की तो कुछ को ऑनलाइन बिक्री की इजाजत दी है लेकिन इनमें रोजमर्रा के इस्तेमाल में काम आने वाले सामान जैसे लैपटॉप व मोबाइल चार्जर, हेडफोन, डेटाकार्ड इत्यादि की किसी भी स्थिति में अभी बिक्री की इजाजत नहीं दी गई है. वह भी तब जब कोरोना संकट के इस दौर में पूरी दुनिया में कामकाज के तरीके बदल गए हैं. व्यवस्था ऑनलाइन आधारित हो गई है, घरों में अब स्कूल व दफ्तर सा माहौल है.
काम पूरा नहीं होने से परेशान हैं नौकरीपेशा
मूलरूप से पटना के रहने वाले रवि नोएडा स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं. लॉकडाउन के बाद से वे वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. दो दिन पहले उनके लैपटॉप का चार्जर खराब हो गया. अगल-बगल की सारी दुकानें बंद हैं. जब उन्होंने चार्जर खरीदने के लिए ऑनलाइन सर्च किया तो वहां साफ तौर पर लिखा था, "अभी इस आइटम की डिलीवरी नहीं की जा रही है." इसके बाद उन्होंने एक डीलर से संपर्क किया लेकिन उसने भी डिलीवरी करने से मना कर दिया. अब उनका काम पूरी तरह रुक गया है. रवि कहते हैं, "मेरे लैपटॉप का चार्जर खराब हो गया. अब मैं काम नहीं कर पा रहा हूं. मुझे मजबूरन छुट्टी लेनी पड़ी. इसके अलावा मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है. ये मेरी सारी अनपेड छुट्टी है. पता नहीं कब तक दुकानें खुलेंगी, कब तक चार्जर खरीद पाऊंगा और फिर काम शुरु कर सकूंगा? मैं काफी परेशान हो रहा हूं."
स्कूल कॉलेज बंद हैं. बच्चे ऑनलाइन पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. शिक्षक भी उन्हें ऑनलाइन सामग्री मुहैया करा रहे हैं. पटना के एक मशहूर कोचिंग संस्थान में पढ़ाने वाले केमिस्ट्री के शिक्षक वीरेंद्र प्रियदर्शी भी कुछ ऐसी ही परेशानी से दो-चार हो रहे हैं. उनका लैपटॉप पहले से ही खराब था. अब टैबलेट ने भी काम करना बंद कर दिया. कह रहे हैं, "समझ नहीं आ रहा, कैसे ऑनलाइन क्लास लूंगा. तैयार स्टडी मैटेरियल तो टैब में ही था. ऐसी स्थिति तो अंतत: आत्मघाती ही साबित होगी."
ऑनलाइन क्लास करने वाले बच्चे भी परेशान
कुछ ऐसी ही समस्या से छात्र-छात्राएं व उनके अभिभावक भी जूझ रहे हैं. कोरोना की आंधी ने पढ़ाई-लिखाई का मोड भी बदल दिया. कक्षा दो के बच्चे भी ऑनलाइन पढ़ाई का मतलब समझने लगे हैं. स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई ऑनलाइन हो गई. पेशे से इलेक्ट्रिीशियन राजीव कहते हैं, "घर में पढ़ने वाले दो बच्चे हैं. बेटा इंजीनियरिंग परीक्षा की तैयारी कर रहा है और बिटिया नौवीं की छात्रा है. किसी तरह एक स्मॉर्टफोन से काम चल रहा था. वह भी खराब हो गया. पता नहीं चार्ज क्यों नहीं हो रहा. दोनों बच्चे काफी परेशान हैं. कह रहे हैं कि जो चैप्टर पढ़ा दिया, उसकी दोबारा पढ़ाई होगी नहीं. समझ नहीं आ रहा क्या करूं. कोरोना व लॉकडाउन तो बेड़ा गर्क करके ही मानेगा."
पटना के ही एक स्कूल की नौवीं कक्षा की छात्रा रूपाली के पिता अभिषेक सिंह कहते हैं, "सरकार ने ऑनलाइन पढ़ाने वाले स्कूलों को फीस वसूलने की इजाजत क्या दे दी, सभी ऑनलाइन हो गए. उन्हें अभिभावकों की स्थिति से क्या लेना. घर में एक स्मार्टफोन हो और स्कूल जाने वाले दो-तीन बच्चे हों और उसमें फोन गड़बड़ हो जाए तो स्थिति की कल्पना भर कर लीजिए. घर युद्धस्थल बन गया है लेकिन कोई करे भी तो क्या."
डिजिटल जमाने में महज दिखावा नहीं हैं गैजेट्स
कोरोना महामारी ने लोगों का वर्किंग पैटर्न बदल दिया है. जमाना बहुत तेजी से डिजिटल हो गया. इस स्थिति में ये इलेक्ट्रॉनिक आइटम रोज की जिंदगी का हिस्सा बन गए. इनके साथ न होने से जिंदगी जैसे ठहर सी जा रही है. अभिमन्यु कुमार सिंह पटना में लैपटॉप और मोबाइल एक्सेसरीज का कारोबार करते हैं. दुकान के साथ-साथ वे ऑनलाइन ऑर्डर की सप्लाई भी करते हैं. अभिमन्यु कहते हैं, "लॉकडाउन के पीरियड में रोजाना हमारे पास कई लोगों के फोन आते हैं. किसी को लैपटॉप का चार्जर चाहिए होता है तो किसी को मोबाइल चार्जर. कुछ लोग रिपेयरिंग के लिए भी कहते हैं. लेकिन हम भी मजबूर हैं. लॉकडाउन में इजाजत नहीं मिलने की वजह से किसी को न तो कोई सर्विस दे सकते हैं और न ही किसी सामान की डिलीवरी कर सकते हैं."
वर्क फ्रॉम होम करने या ऑनलाइन पढ़ाई-लिखाई करने वालों का कहना है कि मौजूदा स्थिति में सरकार को इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम को भी आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल करना चाहिए ताकि इनकी दुकानें खुल सकें, बिक्री या रिपेयरिंग का काम हो सके और ई-कॉमर्स वाली कंपनियां भी आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें. अगर इंतजार लंबा हुआ तो कोरोना महामारी के इस दौर में जब लाखों नौकरियों पर पहले से ही संकट के बादल मंडरा रहे हैं, और बहुत सी नौकरियां खतरे की जद में आ जाएंगी. बच्चों का भविष्य भी दांव पर लगा है.
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