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"लोगों को हथियार दे कर नक्सलियों के खिलाफ उतारना खतरनाक"

६ अप्रैल २०११

सुप्रीम कोर्ट ने नक्सलियों से लड़ने के लिए स्थानीय लोगों को हथियार देने के विचार को खारिज किया है. अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार से विशेष पुलिस अधिकारियों का ग्रुप कोया कमांडो बनाने पर सफाई मांगी है.

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तस्वीर: Wikipedia/LegalEagle

जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी और एसएस निज्जर की बेंच ने कहा, "यह कोया कमांडोज क्या है. उन्हें कौन नियुक्त करता है और उन्हें कैसे ट्रेनिंग दी जा रही है. उन लोगों को लड़ने के लिए हथियार देना बहुत खतरनाक है." सुप्रीम कोर्ट ने बेंच छत्तीसगढ़ सरकार से कोया कमांडो दल बनाने पर हलफनामा दायर करने को कहा है. सरकार से पूछा गया है कि इन लोगों को किसी नियम के तहत हाथियार और गोला बारूद दिया जा रहा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को होगी.

बेंच ने कहा, "हलफनामे में बताया जाए कि किस नियम के तहत कोया कमाडो नियुक्त किए गए हैं और किस नियम में मुताबिक उन्हें हथियार दिए गए हैं. यह हमें यह बताया जाना चाहिए." दंतेवाड़ा इलाके के एक कबीले के नाम पर विशेष पुलिस अधिकारियों को कोया कमांडो का नाम दिया गया है.

यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र नक्सल विरोधी ग्रुप बनाने पर अपनी नाराजगी जताई है. फरवरी 2009 में भी अदालत ने सवाल उठाया कि कैसे सरकार आम लोगों या फिर सलवा जुड़ुम से जुड़े लोगों को हथियार देकर मैदान में उतार सकती है. सलवा जुड़वा भी सरकार की तरफ से माओवादियों से लड़ने के लिए बनाया गया आम लोगों का गुट है.

वहीं छत्तीसगढ़ सरकार का कहना है कि सलवा जुडुम मर रहा है और वह उसे कोई सहारा नहीं दे रही है. अदालत राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में सलवा जुड़ुम के अस्तित्व के खिलाफ दायर याचिका पर सुनाई कर रही थी. यह याचिका समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर, इतिहासकार रामचंद्र गुहा और पूर्व नौकरशाह ईएएस शर्मा ने दायर की है जो चाहते हैं कि अदालत राज्य सरकार से सलवा जुडुम को कथित तौर पर समर्थन न देने का निर्देश दे.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ओ सिंह

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