विकास पर बाबरी कांड की छाप
५ दिसम्बर २०१२भारत की पहचान धर्मनिरपेक्षता से होती है. लेकिन बाबरी मस्जिद की घटना ने इसे बड़ा घाव दिया. बड़े संयोग की बात है कि बाबरी मस्जिद उसी वक्त गिराई गई, जब भारत में दूसरे चरण का आर्थिक विकास हो रहा था और वह तेजी से अंतरराष्ट्रीय शक्ति बनने की ओर बढ़ चली थी.
पूरे दो दशक बीतने के बाद भारत की जनता के लिए बाबरी की याद धुंधली हो गई है. आम भारतीय मंदिर मस्जिद के पचड़े में पड़ने की जगह आर्थिक विकास से जुड़ना चाहता है. भारत के समकालीन इतिहास पर किताब लिखने वाले गुरचरण दास का कहना है, "मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकता हूं कि आज कुछ इस तरह का हो सकता है. इसकी सबसे बड़ी वजह मध्यम वर्ग का विकास है. जैसे जैसे मध्य वर्ग आगे बढ़ता है, वह अपना आर्थिक विकास करना चाहता है, अपने बच्चों का भविष्य बनाना चाहता है, निवेश करना चाहता है. उन्हें सफलता का स्वाद मिल चुका है और अब वे नेताओं के बहकावे में नहीं आ सकता."
दास मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास नीचे से ऊपर की ओर हो रहा है और इसमें सरकार बहुत बड़ी भूमिका में नहीं है. उनका मानना है कि अयोध्या कांड से भारत की धर्मनिरपेक्षता की छवि पर जरूर धब्बा लगा हो लेकिन नेताओं को भी पता है कि अब धर्म के नाम पर राजनीति का वक्त पूरा हो चुका है. वह कहते हैं कि बीजेपी में सभी धर्मों के प्रति सम्मान बढ़ रहा है. बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने की मुहिम अपनी रथ यात्रा से तेज की थी और उनके नेतृत्व में ही कारसेवक वहां जमा हुए थे. छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या की बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया.
कट्टरपंथी हिन्दुओं का मानना है कि जिस जगह मस्जिद बनाई गई, भगवान राम का जन्म ठीक वहीं हुआ था, लिहाजा इस जगह पर दूसरे धर्म की इमारत नहीं खड़ी हो सकती. इस घटना ने भारत को झकझोर कर रख दिया और लगभग 15 फीसदी वाली मुस्लिम आबादी घबरा गई. इसके बाद मुंबई के दंगे और 10 साल बाद गुजरात के दंगों ने हालात और खराब किए. लेकिन इन घटनाओं को छोड़ कर भारत धर्मनिरपेक्षता और विकास की लकीर पर बढ़ने लगा.
लेकिन भारतीय संस्कृति में धर्म का बहुत बड़ा योगदान है और इसे बिलकुल किनारे नहीं किया जा सकता. बाबरी मस्जिद गिराए जाने के 20 साल बाद तनाव और जज्बात भड़क सकते हैं. अयोध्या में खास सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अरुण कुमार का कहना है, "हमने सभी एसपी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग की है और शांति बनाए रखने के उपाय किए गए हैं."
उभरते भारत ने भले ही कट्टर धार्मिक नेताओं को नकार दिया हो लेकिन कुछ नेता बाज नहीं आते. बाबरी मस्जिद कांड के वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह का कहना है कि उन्हें आज भी इस घटना का कोई अफसोस नहीं, "मुझे अभी भी उम्मीद है कि मैं अपने जीवनकाल में वहां मंदिर बनता हुआ देख पाऊंगा."
अयोध्या आखिरी बार उस वक्त चर्चा में आया, जब दो साल पहले अदालत ने इस मामले में पहला फैसला सुनाया. जमीन को तीन हिस्सों में बांट दिया गया. हालांकि यह कानूनी फैसला था, लेकिन जानकारों का कहना है कि इसमें ज्यादा ध्यान सौहार्द बनाए रखना था. राजनीति और इतिहास के जानकार रुद्रांगशु मुखर्जी का कहना है, "सिर्फ गुजरात का काला धब्बा ही उसके बाद समस्या बनी है. लेकिन अभी भी कहीं न कहीं तनाव फैला है, जो नजर नहीं आता. मुसलमानों का डर अभी खत्म नहीं हुआ है. हालांकि बीजेपी समझ चुकी है कि सिर्फ हिन्दुत्व के एजेंडे को लेकर वह राजनीति में कामयाबी हासिल नहीं कर सकती."
जिस तरह भारत की अर्थव्यवस्था बदली है, बीजेपी की राजनीति भी बदली है. भारत में 2014 में तय वक्त पर चुनाव होने हैं और कोई ताज्जुब नहीं कि अगर पहले ही हो जाएं. बीजेपी खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने की कोशिश कर रही है और राम मंदिर का मुद्दा कहीं पीछे छूट गया है.
एजेए/ओएसजे (एएफपी)