श्रीलंका की अपनी जांच शुरू, यूएन पैनल किया खारिज
१२ अगस्त २०१०राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने "सीखे गए सबक और मेलमिलाप" नाम से एक आयोग बनाया है, जो 25 साल तक चले गृह युद्ध के आखिरी निर्णायक आठ वर्षों की जांच पड़ताल करेगा. मई 2009 में श्रीलंकाई सेना ने तमिल विद्रोहियों का सफाया कर इस युद्ध को खत्म किया.
वहीं मानवाधिकार संगठन अकसर श्रीलंका की सेना पर युद्ध अपराध के आरोप लगाते रहे हैं. कहा जाता है कि युद्ध खत्म होने से ठीक पहले हजारों आम तमिल लोगों को मारा गया. पश्चिम देश इस मामले की एक स्वतंत्र जांच की मांग करते रहे हैं जिसे राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने हमेशा खारिज किया है. अब उन्होंने भविष्य में किसी तरह के जातीय संघर्ष को टालने के इरादे से अपना एक आयोग नियुक्त किया है.
पूर्व अटॉर्नी जनरल सीआर डे सिल्वा को इस आयोग का मुखिया बनाया गया है. उन्होंने कहा, "अगर ऐसी सामग्री है जिससे पता चलता है कि युद्ध अपराध हुए हैं. हम इसकी जांच करेंगे. अगर मानवाधिकारों का उल्लंघन मिला तो हम उनकी पहचान करेंगे और अधिकारियों से जांच की सिफारिश करेंगे."
यह आयोग देश के उन उत्तरी इलाकों का दौरा कर सकता है, जो गृह युद्ध के मुख्य केंद्र रहे और जहां इससे प्रभावित तमिल लोग रहते हैं. राष्ट्रपति राजपक्षे के भाई और देश के रक्षा मंत्री गोटभाया राजपक्षे इसी महीने आयोग के सामने अपनी गवाही देंगे. वह उन कई अधिकारियों और राजनेताओं में शामिल हैं जिनकी आयोग के सामने पेशी होनी है.
उधर, आलोचकों का कहना है कि इस आयोग की जांच में कुछ भी निकल कर सामने नहीं आएगा. राजनीतिक विश्लेषक कुशल परेरा कहते हैं, "यह आयोग सिर्फ नाटक है. इस में सभी लोग राष्ट्रपति राजपक्षे की पसंद के हैं. अगर उन्होंने संसद के सलाह मशिवरे से इसे नियुक्त किया होता तो थोड़ा बहुत इसमें भरोसा होता."
इस बीच श्रीलंका ने संयुक्त राष्ट्र की तरफ से इस बारे में बनाए गए पैनल पर कड़ी आपत्ति जताई है और उसने इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताया है. यह पैनल "जवाबदेही के मुद्दे" पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून को सलाह देगा. श्रीलंका ने पश्चिम जगत पर दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप भी लगाया है. मानवाधिकारों के उल्लंघन के नाम पर श्रीलंका को अगले हफ्ते से यूरोपीय संघ की तरफ से सालाना 15 करोड़ डॉलर की व्यापार रियायत मिलनी बंद हो जाएगी.
संयुक्त राष्ट्र के पैनल के विरोध में पिछले महीने श्रीलंका के एक मंत्री ने पांच दिन की भूख हड़ताल की थी. अमर्यादित विरोध प्रदर्शनों के दौरान कोलंबो में संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों को दफ्तर जाने से भी रोका गया.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः वी कुमार