सबसे बड़े कारोबारी साझीदार चीन से मुंह मोड़ रहा है जर्मनी
३ जून २०२२"शिनजियांग पुलिस फाइल्स” वो दस्तावेज हैं जो बताते हैं कि चीन की सरकार अपने देश के अल्पसंख्यक उइगुर मुसलमानों का किस क्रूरता से दमन करती है. इसका प्रकाशन ऐसे समय में हुआ है जबकि तमाम लोग मूल्य आधारित विदेश नीति के बारे में चर्चा कर रहे हैं.
जर्मनी के नेताओं ने इन दस्तावेजों को देखकर चिंता जताई है. विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने निष्पक्ष जांच की मांग की है. जर्मनी के विदेश मंत्रालाय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मानवाधिकार अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का एक मूलभूत हिस्सा है और "जर्मनी वैश्विक स्तर पर इसके संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है.”
जर्मनी में नीति निर्धारक रूस के मामले में चीन की भूमिका को लेकर जर्मनी के साथ चीन के संबंधों को लेकर पहले ही सवाल उठा रहे थे, अब उइगुर मुसलमानों से संबंधित फाइलें लीक होने के बाद यह मांग और तीव्र हो गई है.
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वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडर इस बात पर जोर देते हैं कि जर्मनी की चीन पर आर्थिक निर्भरता को जितना जल्दी हो सके कम किया जाए.
इस हफ्त दावोस में विश्व आर्थिक मंच में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज ने चीन की बढ़ती ताकत पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर चीन एक ‘विश्व शक्ति' है. उन्होंने कहा, "इसका यह मतलब भी नहीं है कि चीन को अलग-थलग करने की जरूरत है और ना ही हम दूसरे रास्तों की ओर रुख कर सकते हैं, जबकि वो शिनजियांग में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं.”
वहीं, वाइस-चांसलर और आर्थिक मंत्री रॉबर्ट हेबेक ने बुधवार को इस बात की वकालत की कि जर्मनी को चीन से दूरी बना लेनी चाहिए. उन्होंने कहा, "हम लोग अब ज्यादा सक्रिय रूप से विविधता की ओर बढ़ रहे हैं और चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रहे हैं. मानवाधिकारों की अनदेखी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.”
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सहयोगी, प्रतियोगी और प्रतिद्वंद्वी
25 वर्षों से चीन और जर्मनी के बीच आर्थिक संबंध बेहद मजबूत रहे हैं. इसे इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2021 तक चीन, जर्मनी का लगातार छह वर्षों से सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार था. द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिए व्यापारिक संबंधों के साथ-साथ राजनीतिक संबंधों को भी मजबूती मिली.
आधिकारिक तौर पर, जर्मनी और चीन के बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी है. दोनों देश हर दो साल पर बैठकें आयोजित करते हैं जिसमें दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष और ज्यादातर कैबिनेट मंत्री भाग लेते हैं.
पिछले साल दिसंबर में सत्तारूढ़ हुई जर्मनी की नई गठबंधन सरकार ने शुरू में अपनी पूर्ववर्ती अंगेला मैर्केल के नेतृत्व वाली रुढ़िवादी सरकार की विरासत को ही आगे बढ़ाने की कोशिश की. सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी और ग्रीन पार्टी ने अपने साझा समझौते में लिखा है, "हम चीन के साथ सरकारी विमर्श जारी रखना चाहते हैं.”
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दस्तावेज के मुताबिक, पहले ये सभी पार्टियां एक मजबूत यूरोपीय दृष्टिकोण रखती थीं, लेकिन हाल ही में जर्मनी-चीन साझेदारी दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता में बदलने लगी है. गठबंधन समझौते के नोट्स से तो यही लगता है. इसके मुताबिक, "चीन के साथ प्रतिद्वंद्विता के दौरान अपने मूल्यों और हितों को बनाए रखने के लिए हमें एक व्यापक रणनीति अपनाने की जरूरत है जो कि यूरोपीय संघ और चीन के बीच संबंधों के फ्रेमवर्क में हो.”
चीन के लिए यह रणनीति जर्मनी के विदेश मंत्रालय में तैयार की जा रही है. इस बात को कोई भी आसानी से समझ सकता है कि इस रणनीति पर रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन की भूमिका का प्रभाव निश्चित तौर पर पड़ेगा.
इस साल की शुरुआत में इंटरनेशनल पॉलिटिक्स पत्रिका में बर्लिन में स्थित चीन के थिंक टैंक मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज के डायरेक्टर मिक्को हुओतारी ने लिखा था कि चीन के साथ संबंधों की पड़ताल पुतिन के लिए चीन के समर्थन के आधार पर की जानी चाहिए.
हुओतारी इस बात पर जोर देते हैं कि ‘जर्मनी को उन क्षेत्रों में चीन पर निर्भरता कम करने को प्राथमिकता देनी चाहिए जिनकी वजह से तनाव या संकट की स्थिति में जर्मनी की रणनीतिक क्षमता तक प्रभावित हो जाती है.'
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चीन के साथ एक नए ऊर्जा युग की शुरुआत?
ऊर्जा के क्षेत्र में रूस पर निर्भरता जर्मनी के लिए जितनी दर्दनाक और महंगी थी, चीन के साथ आर्थिक संबंध उससे कहीं ज्यादा सख्त और तनाव भरे हैं. जर्मनी ने जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का लक्ष्य तय कर रखा है. ऐसे कुछेक मामलों में दोनों के बीच रणनीतिक स्तर पर संघर्ष साफ दिखाई दे रहा है. ऊर्जा के स्रोत के रूप में जर्मनी तेल, गैस और कोयले की जगह छत पर सोलर पैनल लगवाने की योजना का तेजी से विस्तार कर रहा है. इन सोलर पैनलों को लगाने में एक बेहद महत्वपूर्ण चीज की जरूरत होती है और वह है- पॉलीसिलिकॉन. वैश्विक स्तर पर इस पॉलीसिलिकॉन का 40 फीसदी उत्पादन अकेले चीन में ही होता है, खासतौर पर चीन के उत्तर-पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में. वही शिनजियांग, जो उइगुर मुसलमानों की जन्मभूमि है.
फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्री के बीडीआई लॉबी ग्रुप के एग्जिक्यूटिव बोर्ड मेंबर और चीन मामलों के जानकार वोल्फगांग नीडरमार्क कहते हैं, "खनिज संसाधनों जैसे रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में हमारी चीन पर निर्भरता है. हमें इस निर्भरता पर नियंत्रण रखना चाहिए और नए क्षेत्रों में निवेश करना चाहिए.”
बीडीआई तानाशाहों के साथ व्यापारिक संबंधों पर पुनर्विचार कर रहा है.
डीडब्ल्यू से बातचीत में नीडरमार्क कहते हैं, "हम ऐसे देशों के साथ आर्थिक सहयोग जारी रखना चाहते हैं जहां उदारवादी लोकतंत्र नहीं है. यह एकमात्र तरीका है जिससे यूरोपीय संघ एक मजबूत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिक साझीदार बना रह सकता है. लेकिन हम ऐसे देशों पर किसी तरह की निर्भरता को कतई स्वीकार नहीं कर सकते.”
कौन, किस पर निर्भर है?
चीन में ईयू चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष जॉर्ग वुटके कहते हैं कि व्यापार के मामले में चीन यूरोपीय बाजार पर ज्यादा निर्भर है और इस मामले में यूरोप की चीन पर निर्भरता कम है. डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में वुटके कहते हैं, "हम चीन को हर दिन छह अरब यूरो की कीमत के सामान निर्यात करते हैं, जबकि चीन हमें हर दिन 1.3 अरब के सामान निर्यात करता है, लेकिन आयात और निर्यात बड़े व्यापारिक फलक का एक छोटा हिस्सा भर है.”
वो कहते हैं, "जब हम निवेश की बात करते हैं तो तस्वीर बिल्कुल अलग दिखती है. कार, केमिकल और मशीन बनाने वाली तमाम बड़ी यूरोपियन कंपनियों ने चीन में बड़ा निवेश किया है जहां वो उन सामानों का निर्माण करती हैं जिनकी खपत चीनी बाजारों में होती है.”
जर्मनी के आर्थिक मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 तक चीन में जर्मनी का प्रत्यक्ष निवेश कुल 86 अरब यूरो का था. चीन में जर्मन निवेश बहुत फायदेमंद रहे हैं. वुटके कहते हैं, "इस लाभ की वजह से जर्मनी में शेयर कीमतें काफी बढ़ गईं और बड़ी संख्या में रोजगार भी सृजित हुए.”
वुटके कहते हैं कि चीन में होने वाले इन निवेशों की वजह से जर्मनी में लाखों लोगों को नौकरी मिली हुई है. ये नौकरियां इंजीनियरिंग सेवाओं, इंजन पार्ट्स और कई चीजों के निर्माण वाले क्षेत्रों में मिली हुई हैं.
प्रेक्षकों का अनुमान है कि चीन के बारे में जर्मनी की विदेश नीति में कुछ बड़े बदलाव हो सकते हैं. इन बदलावों का पहला रुझान तो तभी मिल गया जब मई में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने सुदूर पूर्व की अपनी पहली यात्रा के लिए अपने पूर्ववर्ती नेताओं के विपरीत चीन की बजाय जापान का चुनाव किया.