समुद्र के अंदर भागेगा रोबोट
१५ मई २०११1 जून 2009 को एयर फ्रांस का एक विमान रियो द जेनेरो से पेरिस की उड़ान के दौरान अटलांटिक महासागर के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. समुद्र की गहराई में उसके मलबे की खोज के लिए पहली बार ऑटोनॉमस अंडरवाटर वेहिकल या एयूवीएस का इस्तेमाल किया गया. इनमें से एक जर्मनी के कील इंस्टिट्यूट ऑफ ओसियन साइंसेज, आईएफएम गेओमार में बना था. अब तक के मानव रहित सबमेरिनों के बदले ये समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक व्यापक क्षेत्र में खोजबीन करने के काबिल हैं. चार मीटर लंबी, सिगार की शक्ल की इन पनडुब्बियों में की गई प्रोग्रामिंग के आधार पर समुद्र के नीचे वे खुद जरूरत के मुताबिक रास्ता तय कर सकती हैं. इनमें साइडस्कैन सोनार लगे रहते हैं, जो साउंडवेव के जरिए समुद्र की धरातल का थ्री डाइमेंशन फोटो प्रस्तुत करते हैं.
"हम इनसे पत्थरों की किस्म के बारे में तो पता नहीं लगा सकते हैं, लेकिन साउंडवेव के जरिए जान सकते हैं कि वे कितने कड़े हैं. अगर उनका रिफ्लेक्शन हल्का हो, तो वह तलछठ होगी, लेकिन हार्ड रिफ्लेक्शन का मतलब होगा कड़ा पत्थर या धातु. वैसे इमिटेशन मेटिरियल का रिफ्लेक्शन इन दोनों के बीच होगा." -आईएफएम गेओमार के पीटर हैर्तिष
पनडुब्बी के वापस आने के बाद ही उसके आंकड़ों की जांच की जा सकती है. वैसे एयूवी के जरिए डाटा ट्रांसफर संभव है लेकिन सिर्फ आपातस्थिति में ही ऐसा किया जाता है. इस तरह पनडुब्बियों के लौटने के बाद ही आम तौर पर जांच होती है. और पनडुब्बियां अब तक हमेशा लौट आई हैं, जैसाकि पेटर हैर्तिष कहते हैं. उनकी राय में यह एक बहुत बड़ी कामयाबी है.
"ये उपकरण हाल ही में बने हैं. विश्व में बस तीन ऐसी पनडुब्बियां हैं. अमेरिका मे हमारे साझीदार वूड्स होल ओसियानोग्राफिक इंस्टिट्यूशन में दो, और हमारे पास एक." -पीटर हैर्तिष
दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज के मलबों को खोजने के लिए तीनों पनडुब्बियों का इस्तेमाल किया गया. उन्होंने पाया कि तीनों रोबोटों के बीच बहुत अच्छा तालमेल था, बिल्कुल किसी झुंड की मछलियों की तरह. हैर्तिष के मुताबिक ये पनडुब्बियां एक दूसरे से संपर्क में रहती हैं और एक दूसरे को सूचित करती रहती हैं कि कौन किधर जा रहा है. इस तरह वे आपस में बांटकर एक बड़े इलाके की जांच कर सकती हैं.
दो साल की अपनी खोज के दौरान एयूवी पनडुब्बियों ने ब्राजील के तट के सामने 2000 वर्ग किलोमीटर से बड़े क्षेत्र में हवाई जहाज के मलबों को ढूंढा. 20 सेंटीमीटर तक के छोटे इलाके तक उन्होंने स्कैन किया.
"अब यह दुनिया का वह इलाका है, जहां समुद्र के धरातल की सबसे अच्छी खोज हो चुकी है. आम तौर पर इतना बारीक नक्शा हमें नहीं मिलता है. हमें कहीं कोई तलछट, या कहीं कोई ज्वालामुखी दिख जाता है. विज्ञान की दृष्टि से यह जानना बेहद दिलचस्प है कि समुद्र के नीचे किसी पहाड़ के नजदीक का धरातल कैसा दिखता है. ये अनोखे परिणाम हैं और हम बेहद उत्सुक थे, क्योंकि हमें कहा गया था कि खोज के बाद हमें ये आंकड़े दे दिए जाएंगे."
पेटर हैर्तिष कहते हैं कि कई पीढ़ियों तक वैज्ञानिकों को इनसे फायदा होता रहेगा. उनका कहना है कि इस इलाके में समुद्र के नीचे पत्थरों की जांच जारी रहनी चाहिए. उनका कहना है कि यह अब भी एक अहम सवाल बना हुआ है कि समुद्र के धरातल पर कैसा विकास हो रहा है? वहां नई चट्टानें कैसे बन रही हैं? और इस लिहाज से यह एक दिलचस्प इलाका है, जहां जांच की जा सकती है कि चट्टान कैसे बदल रहे हैं, ज्वालामुखियों का कैसा विकास हो रहा है. तो मैं मानता हूं कि इन परिणामों के आधार पर हमारी संस्था से एक आध डॉक्टरेट थीसिस जरूर निकलेगी.
रिपोर्टः उज्ज्वल भट्टाचार्य
संपादनः ए जमाल