स्कूल में सीखिए ख़ुश रहना, क़िस्मत बनाना
२३ जनवरी २०१०लक यानी क़िस्मत. आप हैरान हो रहे होंगे के कोई क़िस्मत कैसे पढ़ सकता है. क्या है ये सब्जेक्ट और क्या आइडिया था इसको पढ़ाने के पीछे, इस सब्जेक्ट को शुरू करने वाले हाइडलबर्ग के पहले जर्मन स्कूल विलि हैलपाक के प्रिंसिपल एर्नस्ट फ़्रित्स शूबर्ट बताते हैं, "हम मानते हैं कि ये बहुत ज़रूरी है कि बच्चों को जीवन जीने के तरीके सिखाने के लिए लाइफ स्किल एजुकेशन दी जाए. इसमें हम बच्चों को ज़िम्मेदारी, बड़ों के लिए आदर जैसी चीज़ें सिखाते हैं. इससे बच्चे सिर्फ़ अपने ही नहीं बल्कि समाज के और लोगों के बारे में भी सोचें." अब जर्मनी की नॉर्थ राइन वेस्ट फालिया राज्य के एक स्कूल में इसी कॉन्सेप्ट पर एक शुरुआत की गई है.
डिप्रेशन आम
आजकल छोटे छोटे बच्चों में डिप्रेशन जैसी शिकायतें आम होती जा रही हैं. इनका सबसे बड़ा कारण माना जाता है बच्चों पर बढ़ते पढ़ाई के बोझ को. जर्मनी के कुछ स्कूलों ने भी यह बात मानी और शुरुआत हो गई इस अनोखे विषय लक की. इस सब्जेक्ट में बच्चों को जीवन में खुश रहना सिखाया जाता है. उन्हें बताया जाता है कि कैसे अपनी लाइफ में संतुष्ट रहा जा सकता है. हालांकि आज की दुनिया में ऐसा करना आसान नहीं है. प्रिंसिपल शूबर्ट बताते हैं, "इस विषय को पढ़ाते समय टीचर थिएटर, पॉज़िटिव थिंकिंग और खेलकूद जैसी चीज़ें सिखाते हैं."
ख़ास पाठ्यक्रम
इस विषय के लिए एक ख़ास पाठ्यक्रम बनाया जाता है. इसमें बच्चों को जीवन की छोटी छोटी खुशियों को जीना सिखाया जाता है. हैपीनेस नाम के एक टॉपिक के तहत बच्चों को हंसने की अहमियत बताई जाती है. बच्चों के जीवन में खुशी के रंग बिखेरने आसान नहीं होते. विलि हैलपाक स्कूल में यह सब्जेक्ट पहली क्लास से ही शुरू कर दिया जाता है.
जिस सब्जेक्ट का मक़सद बच्चों की टेंशन भगाना हो तो एग्ज़ाम की बात करना तो ग़लत होगा ना. इसलिए इस सब्जेक्ट को पढ़ने का सबसे बड़ा मज़ा है कि बच्चों को एग्ज़ाम नहीं देने पड़ते. लेकिन एग्ज़ाम होते ज़रूर हैं. प्रिंसिपल श्यूबर्ट कहते हैं, "टीचरों को ये विषय पढ़ाने के लिए एक ख़ास सर्टिफिकेट प्राप्त करना ज़रूरी है. लेकिन बच्चे इस सब्जेक्ट में सिर्फ अलग अलग प्रोजेक्ट और डॉक्यूमेंट्स ही बनाते हैं."
ये हुई न मज़ेदार बात, बच्चों को यह विषय पढ़ाने के लिए पहले टीचरों को पास करना पड़ता है एक स्पेशल एग्ज़ाम. हालांकि इस सबजेक्ट के पढ़ाए जाने को लेकर बच्चों की अलग अलग राय हैं. कुछ बहुत ख़ुश हैं को कुछ मानते हैं कि ख़ुशी पढ़ाई नहीं जा सकती, वह तो इंसान के अंदर से आती है.
रिपोर्टः तनुश्री सचदेव
संपादनः ए कुमार