1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हर जगह बलात्कार का डर

२८ दिसम्बर २०१२

दिल्ली में हुए बलात्कार कांड पर हंगामा मचा है लेकिन भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाली महिला से पूछें तो वो यही बताएगी यौन हमले का डर लगातार उनके साथ चलता है.

https://p.dw.com/p/17AgK
तस्वीर: AFP/Getty Images

सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों की आंच से माहौल गर्म है. विरोध के लिए सड़कों पर उतर रही ज्यादातर महिलाएं इस डर को अपनी जिंदगी में शामिल पाती हैं. महिला अधिकारों की बात करने वाले आरोप लगाते हैं कि भारत में इस तरह की हरकतों को अंजाम देने वाले लोगों को रोकने के लिए जरूरी तंत्र है ही नहीं.

करीब सवा अरब की आबादी वाले देश में आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक हर 28 मिनट में किसी न किसी महिला से बलात्कार होता है. महिला अधिकारों की बात करने वाले कहते हैं कि देश में कानून का पालन और अभियोजन के तरीके बेहद खराब हैं.

Indien Demonstration Vergewaltigung Bus
तस्वीर: Reuters

कोलकाता में महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था स्वयं की संयोजिका सुकन्या गुप्ता कहती हैं, "देश का ढांचा ऐसा नहीं है कि महिलाओं की रक्षा की जा सके या उन पर हमला करने वालों को जांच और जल्द सुनवाई के जरिए सजा दी जा सके. आजादी के छह दशक बीत चुके हैं, ऐसे अपराधों को अब सहन नहीं किया जा सकता. डर की जंजीर को तोड़ना होगा." बड़े शहरों में तो महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती ही हैं गांवों में भी बलात्कार की घटनाएं आम हैं. इन इलाकों में तो अकसर पीड़ित को ही सजा भी भुगतनी पड़ती है.

हर तरफ असुरक्षा

दिसंबर में उद्योग संगठन एसोचैम की तरफ से जारी सर्वे के नतीजे बताते हैं कि देश के सभी प्रमुख आर्थिक गतिविधियों वाले इलाके में 92 फीसदी कामकाजी महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती है खास तौर से रात में. बड़े शहरों में असुरक्षा के मामले में दिल्ली सबसे ऊपर है जहां 92 फीसदी महिलाओं के मन में डर पल रहा है, इसके बाद बेंगलोर 85 फीसदी महिलाओं के साथ दूसरे नंबर पर है और कोलकाता तीसरे नंबर पर है जहां की 82 फीसदी महिलाओं को डर लगता है. सूचना तकनीक, होटल, नागरिक विमानन, स्वास्थ्य सेवा और कपड़ा उद्योग जैसे प्रमुख क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाएं भी खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं. एसोचैम की रिपोर्ट कामकाजी और घरेलू दोनों प्रकार की महिलाओं से बातचीत पर आधारित है.

Indien Vergewaltigung Proteste
तस्वीर: Reuters

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, मुंबई, कोलकाता, बैंगलोर, हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे और देहरादून की महिलाओं से सर्वे के दौरान हुई बातचीत में पता चला कि यह सबका मानना है कि महिला सुरक्षा देश की चुनौतियों में सबसे बड़ी है. एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा, "महिला कर्मचारी अपनी सुरक्षा को लेकर अस्पताल जैसी जगहों पर भी बेहद चिंतित रहती हैं."

खराब ढांचा और रवैया

एसोचैम का कहना है कि उच्च क्षमता वाले जीपीएस तंत्र की जरूरत है जिससे कि सार्वजनिक परिवहन इस्तेमाल करने वाली महिला पर संकट के समय में तुरंत पहुंचा जा सके. महिला कर्मचारियों को सुरक्षा देने के लिए कंपनियों और फर्मों को भी छोटे छोटे सुरक्षा उपकरण देने चाहिए जिनका वह हमले की स्थिति में इस्तेमाल कर सकें. कुछ जानकार टैक्सी ड्राइवरों की पुलिस जांच की भी सलाह देते हैं.

सर्वे में यह भी पता चला कि रोशनी के खराब इंतजाम, आपात स्थिति में मदद का ना मिलना और अपर्याप्त पुलिस सुरक्षा के कारण महिलाएं खुद को असुरक्षित और असुविधाजनक स्थिति में पाती हैं. सुकन्या गुप्ता कहती हैं, "ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई एकदम नहीं हो रही और इससे महिलाओं के खिलाफ हमला करने के लिए लोगों को बढ़ावा मिलता है." हाल की घटना के बाद पार्क स्ट्रीट बलात्कार कांड की पीड़ित लड़की ने बताया कि उसे अब भी न्याय मिलने का इंतजार है. दो आरोपी फरार हैं और सुनवाई अब तक शुरू नहीं हो सकी है.

कानून की कमजोरी

दिल्ली के सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी ने बताया कि भारत में बलात्कार से जुड़े कानूनों की तुरंत समीक्षा के साथ ही बलात्कार की परिभाषा को भी फिर से तय करने की जरूरत है. रंजना कुमारी ने कहा, "कानून में संशोधन सात साल से अटका पड़ा है. नए संशोधन काफी सलाह मशविरा के बाद तैयार किए गए हैं लेकिन सरकार इसे संसद में पास कराने पर गंभीर नहीं है."

देश के युवा भी स्थितियों में पूरी तरह से बदलाव चाहते हैं. सिर्फ कानून और तंत्र ही नहीं उनका इरादा असुरक्षा के पूरी तरह से खत्म होने तक रुकने का नहीं है.

एनआर/एमजे (आईपीएस)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें