हर साल 6 लाख मरते हैं पैसिव स्मोकिंग से
२६ नवम्बर २०१०वैज्ञानिक पत्रिका लांसेट में विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की एक स्टडी प्रकाशित हुई है जिसमें यह रहस्योद्घाटन किया गया है. पैसिव स्मोकिंग पर यह पहली विश्वव्यापी स्टडी है. इसके अनुसार दुनिया भर में 40 फीसदी बच्चे, 35 फीसदी महिलाएं और 33 फीसदी मर्द बिन चाहे सिगरेट का धुंआ पी रहे हैं.
पैसिव स्मोकिंग के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के अनुसार पौने चार लाख लोग दिल की बीमारियों के कारण मरते हैं तो डेढ़ लाख से अधिक लोग सांस की बीमारी के कारण. इसके अलावा 37 हजार लोग अस्थमा से और साढ़े 21 हजार फेफड़े के कैंसर से मरते हैं.
वैज्ञानिकों ने इस स्टडी के लिए 2004 के आंकड़ों का उपयोग किया है क्योंकि उसके बाद सभी 192 देशों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. मरने वालों में 47 फीसदी महिलाएं, 26 फीसदी मर्द और 28 फीसदी बच्चे हैं. परोक्ष धूम्रपान से मरने वाले किशोरों की संख्या विकासशील देशों में खासकर अधिक है.
स्टडी के लेखकों का कहना है कि बच्चे मुख्य रूप से अपने घर पर पैसिव स्मोकिंग का शिकार होते हैं. अगर घर में कोई सिगरेट पीता हो तो वे इस खतरे से बच नहीं सकते. खासकर गरीब देशों में धूम्रपान और संक्रमण मौत की घातक जोड़ी हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों का कहना है कि भवनों और दफ्तरों में धूम्रपान पर रोक लगाने वाले कानून दिल की बीमारी और मौत के खतरे को कम कर सकते हैं. इससे चिकित्सा के क्षेत्र में खर्च भी कम होगा.
जिन देशों में धूम्रपान विरोधी कानून लागू किया जा चुका है वहां दुनिया की आबादी का सिर्फ साढ़े सात प्रतिशत हिस्सा रहता है. स्टडी के लेखकों का कहना है कि सवा अरब तंबाकू पीने वाले पौने पांच अरब लोगों को पैसिव स्मोकिंग करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: वी कुमार