हलाल मीट पर फ्रांस में राजनीति
१९ मार्च २०१२अप्रैल और मई में राष्ट्रपति पद का चुनाव होना है और उससे पहले मीट की राजनीति होने लगी है. पारंपरिक फ्रांसीसी कसाइयों को हलाल मीट बेचने वालों और सुपर मार्केट से जबरदस्त चुनौती मिल रही है, जो वहां अब चुनावी मुद्दा बन गया है. फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी पुरानी दुकानों के बंद होने से नाखुश हैं और चाहते हैं कि सभी तरह की मीट पर साफ साफ मार्का लगा होना चाहिए कि वह हलाल है, कोशर है या फ्रांसीसी. यहूदी लोग कोशर मीट खाते हैं.
फ्रांस के प्रधानमंत्री फ्रांको फिलां तो एक कदम आगे निकल गए और कह दिया कि मुसलमान और यहूदी जिस तरह से जानवरों को मारते हैं, वह आधुनिक जमाने से मेल नहीं खाता. धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मरीना ले-पेन का कहना है कि मुसलमान कसाइयों की दुकान और फ्रांसीसी रहन सहन पर प्रभाव डाल रहे हैं. उनका कहना था कि पेरिस में सिर्फ हलाल मीट बिक रहा है. हालांकि फ्रांस की कृषि मंत्रालय ने आंकड़े जारी कर इस तथ्य को खारिज कर दिया.
घटती बढ़ती दुकानें
लेकिन यह बात सही है कि फ्रांस में मुसलमानों की मीट की दुकान लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि पारंपरिक तरीके से मीट बेचने वालों की दुकानें बंद हो रही हैं. यूरोप में सबसे ज्यादा मुस्लिम फ्रांस में ही रहते हैं. इस मामले को लेकर प्रदर्शन भी हो रहे हैं और फ्रांस के एक कसाई ने पिछले दिनों कपड़े उतार कर प्रदर्शन किया.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस में 40,000 कसाई थे, जिनकी संख्या घट कर 20,000 रह गई है. हालांकि इस दौरान देश की आबादी कई लाख बढ़ी है. फ्रांस में 10 फीसदी लोग बेरोजगार हैं लेकिन मीट इंडस्ट्री में 4000 पद खाली होने के बाद भी कोई नौकरी करने नहीं पहुंच रहा है.
सुपर मार्केट ने भी मुश्किल बढ़ाई है. फ्रांस की युवा जनता वक्त लगा कर पारंपरिक दुकानों से सामान खरीदने के बजाय सीधे सुपर मार्केट पहुंचती है, जहां पैक किया हुआ माल हमेशा उपलब्ध है. लगभग 50 साल से कसाई का धंधा कर रहे जेरार्ड प्रोवोस्ट का कहना है, "वे सब बिगड़े हुए हैं." प्रोवोस्ट को अपनी पत्नी के साथ दुकान चलाते हैं. उन्हें मुश्किल काम करना पड़ता है और कई बार उनका काम देर रात में ही खत्म होता है.
मेहनत करना सीखो
उत्तरी पेरिस में प्रवासियों की एक बस्ती में दुकान चलाने वाले 49 साल के मुस्लिम दुकानदार यूसुफ आयतबेन अली का कहना है कि आज कल का युवा वर्ग आसान तरीके से पैसा कमाना चाहता है. उनका कहना है, "वे जादू की छड़ी के बारे में सोचते हैं. लेकिन वे दिन खत्म हो गए हैं. अब आपको काम करना होगा." मुस्लिम दुकानदारों ने पुरानी फ्रांसीसी मीट की दुकानों को खरीद लिया है. ऐसी ही एक दुकान चला रहे फरीद नाहिम बताते हैं कि वे लोग लंबे वक्त तक काम करने को तैयार होते हैं. हफ्ते में छह दिन काम करना उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं और आम तौर पर वे परिवार में अपना काम बांट लेते हैं.
फ्रांस में मीट दुकानों का संघ 1894 में बना था. इसके मुखिया डोमिनिक उनगर कहते हैं कि मुसलमानों की कितनी दुकानें हैं, बता पाना मुश्किल है क्योंकि वे संगठित नहीं हैं. फ्रांस के कृषि मंत्रालय का दावा है कि देश में करीब 14 फीसदी जानवरों को हलाल किया जाता है. नाहिम कहते हैं कि मुसलमानों के अलावा गैर मुस्लिम भी उनके बंधे हुए ग्राहक हैं, "मांग बहुत है. इसलिए हम लोग यहां काम कर रहे हैं."
विज्ञान की दुहाई
मुस्लिम और यहूदी परंपरा में जानवरों को "हलाल" तरीके से मारा जाता है, जिसमें उनके शरीर से सारा खून निकल जाता है. मुस्लिम दुकानदारों का कहना है कि यह मीट ज्यादा मजेदार भी होता है और बीमारी का भी कम खतरा रहता है क्योंकि मीट में खून के टॉक्सिन नहीं होते. वे कम कीमत की भी बात करते हैं. आयतबेन बताते हैं कि उनकी दुकान में मीट की कीमत 16 यूरो प्रति किलो है, जबकि पारंपरिक फ्रांसीसी दुकानों में यह कीमत 34 यूरो प्रति किलो तक हो सकती है.
मुसलमानों के लिए यह काम आसान भी होता है क्योंकि यहां उन्हें दूसरे कामों की तरह भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता. समाजशास्त्री पैट्रिक साइमन का कहना है, "यह एक तरीका है कि पेशेवर जगहों पर भेदभाव से बचा जाए और जरूरत भी पूरी हो जाए. मुसलमान तेजी से कारोबारी बनते जा रहे हैं." उनका कहना है कि अगर आप पेरिस में रह रहे हैं और अचानक रात में आपको दूध, अंडे या ब्रेड की जरूरत पड़ जाए, तो आप कहते हैं कि कोने वाले अरब शॉप से ले आओ.
चुनाव मीट मसाला
मीट का यह मसला राष्ट्रपति पद के चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है, जहां बड़े बड़े नेता अपने ही बयानों से चित्त होते जा रहे हैं. ले-पेन ने दावा किया कि पूरे पेरिस में हलाल मीट बिक रहा है. बात गलत साबित हुई और उनकी जगहंसाई हुई. प्रधानमंत्री फिलां ने कह दिया कि मुस्लिम और यहूदी पुरातन धर्म हैं और उनका आधुनिक समय के विज्ञान, तकनीक या स्वास्थ्य के मुद्दों से कुछ लेना देना नहीं. उनकी छिछालेदार हुई और बाद में उन्हें माफी मांगनी पड़ी. सारकोजी ने कहा कि मीट पर मार्का लगाना जरूरी है, बाद में दबाव के आगे कहना पड़ा कि जरूरी नहीं, वैकल्पिक है. साथ ही यह भी कहा कि हलाल मीट में कोई दिक्कत नहीं है.
आयतबेन बेन अली का कहना है, "इतना क्यों परेशान हो रहे हैं. इसका आसान उपाय है. उन्हें मीट को राजनीति में नहीं मिलाना चाहिए. असली मुद्दे खोजना चाहिए."
रिपोर्टः एपी/ए जमाल
संपादनः एन रंजन