हीरों से चमकता मंथन
२६ जुलाई २०१३हीरों की चमक बहुत लुभाती है लेकिन हीरे की खानों में काम करने वालों की कोई सुध नहीं लेता. यहां कई बार बच्चों से भी काम कराया जाता है, जिनकी सेहत को भी बहुत नुकसान होता है. इस बार के मंथन में हीरों की खानों के साथ साथ अमेरिकन डायमंड के बारे में आप जान सकेंगे. साथ ही पानी के सही इस्तेमाल पर अफ्रीका की एक मिसाल हम आपको दिखाएंगे और यह भी जानेंगे कि इस तरह का काम भारत में कैसे किया जा सकता है. इसके अलावा नए डिजाइनों और तकनीक के मेल पर भी आप हमारा खास अंक देख सकेंगे.
विज्ञानः
भारत उन गिने चुने देशों में हैं, जहां हीरों की खानें हैं. लेकिन इन खानों में काम करने वालों की हालत बहुत अच्छी नहीं है. मध्य प्रदेश के पन्ना खान पर मंथन में रिपोर्ट पेश की गई है, जहां हीरों के तस्कर सक्रिय बताए जाते हैं और कई बार बच्चों से भी काम कराया जाता है. खानों में काम करने वाले लोगों को सांस की बीमारी का खतरा होता है लेकिन उनकी सेहत का कोई ख्याल नहीं रखा जाता है. इस बारे में विस्तार से रिपोर्ट पेश की गई है.
हीरे को लेकर लोगों की कौतूहल और आकर्षण को ध्यान में रखते हुए नकली हीरों पर भी रिपोर्ट पेश की गई है. अमेरिका में पिछले 50-60 साल से प्रयोगशाला में हीरे तैयार किए जा रहे हैं. इनकी चमक बिलकुल असली हीरों जैसी होती है लेकिन इनकी कीमत उससे कई गुना कम होती है. कैसे तैयार किए जाते हैं अमेरिकन डायमंड, इस बारे में अमेरिका की एक प्रयोगशाला से विस्तार में रिपोर्ट दिखाई गई है.
पर्यावरणः
पानी की बचत को लेकर आए दिन बातें होती रहती हैं. भारत उन देशों में है, जहां पानी से बिजली तैयार करने की बहुत संभावना है क्योंकि वहां नदियों का जाल बिछा है. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. चीन के मुकाबले में भारत में छह गुना कम पनबिजली तैयार होती है. छोटी छोटी कोशिशों से पानी की बचत और इसका सही इस्तेमाल किया जा सकता है. अफ्रीकी देश रवांडा के एक शख्स ने अपनी कोशिश से पूरे गांव की बिजली की समस्या हल कर दी है. इस कोशिश पर अफ्रीका से रिपोर्ट मंथन में शामिल की गई है.
इस गंभीर मुद्दे को समझने के लिए जर्मनी में काम कर रहे भारतीय रिसर्चर शिखर कुमार के साथ इंटरव्यू किया गया है. शिखर ने बताया कि किस तरह गंगा जैसी नदियों को बेहतर बनाया जा सकता है और पानी के सही इस्तेमाल को लेकर भारत में क्या कुछ किए जाने की जरूरत है. इसके अलावा उन्होंने यह भी बताया कि इस दिशा में जर्मन तकनीक का इस्तेमाल भारत में किया जा सकता है.
जीवनशैली:
अगर रास्ते बताने वाले जूते तैयार हो जाएं, तो... नई तकनीक के सहारे यह संभव है. नए डिजाइनरों ने रोजमर्रा की जरूरत की चीजों को तकनीक में ढाल कर कुछ नया देने की कोशिश की है. ये जूते भी उसी कड़ी का हिस्सा हैं. इसके अलावा लैंप शेड में फिट हो सकने वाले टेप रिकॉर्डर और दूसरी डिजाइनों पर भी दिलचस्प रिपोर्ट पेश की गई है.
किसी नए देश में सबसे बड़ी मुश्किल भाषा सीखने की होती है. जर्मनी में अगर आपको जर्मन भाषा नहीं आती, तो काम चलाना मुश्किल है. नई भाषा सीखने के लिए या तो घर पर ट्यूटर की जरूरत है या फिर स्कूल जाने की. लेकिन नई तकनीक ने ऐसे ऐप तैयार कर दिए हैं, जो बड़े व्यवहारिक रूप से भाषा सिखा सकते हैं. मंथन में हमारी कोशिश है नई भाषा सिखाने की.
रिपोर्टः अनवर जमाल अशरफ
संपादनः आभा मोंढे