नागालैंड में आतंकी समझ भारतीय सेना ने 13 लोगों को मार डाला
६ दिसम्बर २०२१आतंकवादी समझकर भारतीय सेना द्वारा उत्तरपूर्वी राज्य नागालैंड में 6 नागरिकों की हत्या कर देने के बाद विरोध के लिए जमा भीड़ पर गोलियां चलाकर और जानें ले लेने की तीखी प्रतिक्रिया हो रही है.
घटना शनिवार को हुई जब म्यांमार सीमा के पास भारतीय सैनिकों ने एक ट्रक पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. इस ट्रक में मजदूर सवार थे जो काम के बाद घर लौट रहे थे. इस गोलीबारी में छह लोगों की मौत हो गई. जब इन मजदूरों के परिवार इन्हें खोजने निकले और शव मिलने पर सेना से सवाल जवाब किए तो उन्होंने फिर से गोलीबारी की.
नागालैंड के पुलिस अधिकारी संदीप एम तामागाड़े ने कहा, "दोनों पक्षों के बीच विवाद हुआ और सुरक्षाबलों ने गोली चला दी जिसमें सात और लोग मारे गए.” तामागाड़े ने बताया कि जिले में स्थिति बहुत तनावपूर्ण है.
नागालैंड में तनाव
भारतीय सेना ने कहा है कि विरोध कर रहे नागरिकों के साथ विवाद में एक सैनिक की मौत हो गई है और कई जवान घायल हैं. सेना ने कहा कि सैनिक ‘भरोसेमंद सूचना के आधार पर' कार्रवाई कर रहे थे कि इलाके में विद्रोही सक्रिय हैं और उन पर हमला करने की तैयारी में हैं.
सेना ने कहा, "जानों के दुर्भाग्यपूर्ण नुकसान की घटना के कारणों की जांच उच्च स्तर पर की जा रही है और कानून के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी.” नागालैंड के मुख्यमंत्री नाइफू रियो ने जनता से शांत रहने की अपील की है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ”मोन के ओटिंग में नागरिकों के मारे जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना बेहद निंदनीय है. सभी पक्षों से शांति की अपील है.”
मोन जिला नागालैंड की राजधानी कोहिमा से लगभग 350 किलोमीटर दूर है. खराब सड़कों के कारण वहां पहुंचने में एक दिन से ज्यादा का समय लग जाता है. राज्य सरकार के एक अधिकारी के मुताबिक राज्य के वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा सेना के अफसर भी वहां पहुंच गए हैं और वहां मामले की जांच की जा रही है
हर ओर आलोचना
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने भी घटना पर खेद जाहिर किया है और कहा कि सरकारी जांच पीड़ित परिवारों को न्याय सुनिश्चित करेगी. नागालैंड में एनडीपीपी-भारतीय जनता पार्टी की गठबंधन सरकार है. राज्य सरकार ने मरने वालों के परिवारों को पांच-पांच लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान किया है.
विपक्षी नेताओं ने घटना की कड़ी आलोचना की है. ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता साकेत गोखले ने कहा कि जब नागरिकों को इंसान से कम समझा जाता है, तब ऐसा ही होता है. उन्होंने लिखा, "मोन जिले में असम राइफल्स/सेना के अभियान में आम नागरिकों का मारा जाना खौफनाक है. ऐसा ही होता है जब चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत जैसे उच्च पदों पर बैठे लोग इंसान कों अमानुषिक समझते हैं, जिन्होंने हाल ही में भीड़ द्वारा कत्ल को प्रोत्साहित किया था.”
शांति वार्ता पर असर
नागा विद्रोही संगठनों से चल रही शांति वार्ता का इस घटना पर नकारात्मक असर पड़ना तय है. विद्रोही संगठनों ने इसे नागा लोगों के लिए एक काला दिन बताया है.
एक बयान जारी कर एनएससीएन-आईएम ने कहा, "भारतीय सेना इससे कभी अपने हाथ धोने में कामयाब नहीं हो पाएंगी. भारत और नागा पक्षों के बीच दो दशकों से बहुत अच्छे नतीजे दे रही बातचीत जारी रहन के बावजूद नागा लोगों के खिलाफ हिंसा जारी है." बयान में कहा गया कि 1997 में भारत और नागा लोगों के बीच शांति समझौता होने के बाद से यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से एक है.
पिछले दो साल के दौरान भारत सरकार कई विद्रोही संगठनों को शांति वार्ता के लिए मनाने में कामयाब हो गई थी. इनमें खांगो कोनयाक और निकी सुमी के नेतृत्व वाले एनएससीएन के वे धड़े भी हैं जो कभी एनएससीएन-के द्वारा शांति वार्ता के सख्त खिलाफ थे.
एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने भारतीय अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "यह नागालैंड पुलिस का अभियान नहीं था जिसके लिए स्थानीय नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जा सके. यह भारतीय सेना का अभियान था पूरी तरह गलत राह चला गया. यह नागाओं के लंबे समय से जारी भारत विद्रोह को और सही ठहराएगा. कम से कम अस्थायी तौर पर तो यह विद्रोहियों को और मजबूत करेगा. इसे केंद्र सरकार को बहुत सलीके से संभालना होगा और इसकी शुरुआत जिम्मेदार लोगों को पर कार्रवाई होती दिखाने से होगी."
रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)