13 साल से अमेरिका को गुमराह कर रहा था पाकिस्तान
६ मई २०११नई जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान सरकार "आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के सिलसिले में ज्यादा मदद करने के लिए राजी नहीं है." अमेरिकी संस्था नैशनल सेक्यूरिटी आर्काइव ने सूचना के अधिकार के तहत कुछ दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं जो पहले गुप्त रखे जा रहे थे. इनमें लिखा है कि पाकिस्तानी अधिकारी अमेरिका से बढ़ते दबाव के बावजूद ओसामा मामले पर कार्रवाई करने से इनकार करते रहे. अमेरिकी दूतावास से रिलीज हुए केबल में लिखा है, पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना था कि "बिन लादेन वाला मामला अमेरिका और तालिबान के बीच का मामला है, पाकिस्तान का नहीं." आर्काइव का कहना है कि तालिबान और अमेरिका, दोनों के साथ संबंध जोड़ने के नाते पाकिस्तान बिन लादेन के मामले को संभालने की कोशिश कर रहा था. पाकिस्तानी सरकार एक तरफ तालिबान सरकार को समर्थन देती रही, जिसने बिन लादेन को सुरक्षित रखा और दूसरी तरफ उसने अमेरिका से कहा कि वह "बिन लादेन के मामले को बहुत गंभीरता से ले रहा है."
तालिबान और अमेरिका के बीच फंसा पाकिस्तान
दिसंबर 1998 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने उस वक्त के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात की. तब के एक संदेश के मुताबिक पाकिस्तान बिन लादेन के मामले में कोई प्रगति नहीं दिखा रहा था. पाकिस्तान में अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों का मानना था कि शरीफ सरकार बिन लादेन के मामले में कुछ ज्यादा नहीं कर सकती क्योंकि ऐसा करने से पाकिस्तान में मुख्य धार्मिक और राजनीतिक गुट सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेंगे. लिखा है, "बिन लादेन पर हमलों को लेकर पाकिस्तान की सरकार को देश में राजनीतिक परेशानियों का सामना करना पड़ा है, खासकर धार्मिक पार्टियों को लेकर, उन्हें खुश रखने में और सड़कों पर उतरने से रोकने में."
29 मई 1999 को भेजे गए एक संदेश में लिखा है कि तालिबान के उप प्रमुख सैयद उल रहमान हक्कानी ने ओसामा के बारे में कहा कि वह एक "बम है जो विस्फोट करने के लिए तैयार है." उस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार थी. इस दौरान अमेरिकी अधिकारी ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए और भी ज्यादा कोशिश करने लगे.
एक और संदेश में पाकिस्तानी सरकार के हवाले से लिखा है कि शरीफ उस वक्त भारत के साथ संबंधों में कश्मीर को लेकर तनाव से परेशान थे और इसलिए बिन लादेन के मामले में ज्यादा कुछ कर नहीं सके. 20 नवंबर 2000 को भेजे गए एक संदेश के मुताबिक तब के अमेरिकी रक्षा मंत्री थॉमस पिकरिंग ने पाकिस्तानी अधिकारियों से मुलाकात की. उन्होंने बैठक में पाकिस्तान के साथ अपनी निराशा जताई और कहा कि अमेरिका का अच्छा दोस्त होने के बाद भी वह ओसामा बिन लादेन को पकड़ने में किसी तरह की मदद नहीं कर रहा था. पाकिस्तान ने बार बार कहा कि तालिबान सरकार के साथ बातचीत से मामला सुलझाया जा सकता है, हालांकि पिकरिंग ने इसे मानने से इनकार किया.
रिपोर्टःपीटीआई/एमजी
संपादनः ओ सिंह