2050 तक खतरनाक स्तर तक पहुंच जाएगी जंगलों में लगने वाली आग
२७ फ़रवरी २०२२उत्तरी अर्जेंटीना में दमकलकर्मी कई हफ्तों से लगी आग पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं. तेज हवाओं, हल्की बारिश और लंबे समय तक पड़े सूखे के कारण, आग ने करीब 8,000 वर्ग किलोमीटर में फैले जंगल, दलदल और खेतों को नष्ट कर दिया है. यह प्यर्टो रिको के कुल क्षेत्रफल से थोड़ा ही कम है. अर्जेंटीना की सरकार ने अनुमान लगाया है कि आग की इस घटना की वजह से करीब 15.4 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है.
यहां रहने वाले जॉर्ज अयाला ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "ऐसा हमारे साथ कभी नहीं हुआ है. इस तरह की स्थितियां पहले कभी नहीं रही हैं.” आने वाले वर्षों और दशकों में जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं के तेजी से बढ़ने और भयावह होने की आशंका है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और नॉर्वे की पर्यावरण से जुड़ी गैर-लाभकारी संस्था जीआरआईडी-अरेंडल ने एक नई रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि आर्कटिक जैसे असामान्य क्षेत्रों में भी बड़े स्तर पर जंगलों में लगने वाली आग की घटनाएं तेजी से बढ़ेंगी. 2030 तक ऐसी घटनाओं में 14 फीसदी और इस सदी के मध्य यानी 2050 तक 30 फीसदी की वृद्धि देखने को मिल सकती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही हम उत्सर्जन को काफी कम कर दें, लेकिन पूरी दुनिया में जंगलों में लगने वाली आग की घटनाओं में वृद्धि देखने को मिल सकती है. 2100 तक ऐसी घटनाएं 50 फीसदी तक बढ़ सकती हैं.
शोधकर्ताओं ने इन आपदाओं को मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन से जोड़ा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लंबे समय तक पड़ने वाले सूखे, तेजी से बढ़ते तापमान और तेज हवाएं आग की तीव्रता और इसके विस्तार को बढ़ा देती हैं.
रिसर्च रिपोर्ट के लेखकों का कहना है, "जंगल में लगने वाली आग की वजह से जलवायु परिवर्तन पर काफी ज्यादा असर पड़ता है, क्योंकि इनकी वजह से ज्यादातर संवेदनशील और कार्बन युक्त पारिस्थितिक तंत्र जैसे दलदल और वर्षावन नष्ट हो जाते हैं. जैसे ही ये पारिस्थितिक तंत्र नष्ट होते हैं, उनमें संग्रहित CO2 वायुमंडल में शामिल हो जाता है. इससे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है. साथ ही, दलदल नष्ट होने से भविष्य में कार्बन को संग्रह करने की उनकी क्षमता भी कम हो जाती है.” वे आगे कहते हैं, "इससे स्थिति विस्फोटक हो जाती है और बढ़ते तापमान को रोकना मुश्किल हो जाता है.”
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दुनिया के गरीब देश भी हो रहे प्रभावित
यह भविष्यवाणी अब सच होने लगी है कि आग 'दुनिया के सबसे गरीब देशों को असमान रूप से प्रभावित करती है'. पिछले कुछ वर्षों में उत्तरी अमेरिका, ब्राजील, यूरोप के कुछ हिस्सों, साइबेरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसी जगहों पर आग लगने की विनाशकारी घटनाएं देखने को मिली हैं. इन घटनाओं ने पूरी दुनिया के पारिस्थितिक तंत्र और समुदायों को तबाह कर दिया है.
रिपोर्ट के अनुसार, जंगल की आग का असर फसल के उत्पादन, घर, इंसानों की सेहत और प्राकृतिक पर्यावरण पर होता है. आग बुझने के बाद भी, इसका असर कई वर्षों तक देखने को मिल सकता है. खासकर, दुनिया के उन हिस्सों में जहां पुनर्निर्माण और बदलते वातावरण के साथ तालमेल बैठाने के लिए संसाधनों की कमी है.
केपटाउन विश्वविद्यालय के ग्लाइनिस हम्फ्री ने भी इस रिपोर्ट को तैयार करने में अपना योगदान दिया है. वह कहते हैं, "आग से हवा, मिट्टी और पानी, तीनों पर असर पड़ता है. आग का सीधा संबंध कार्बन उत्सर्जन और बारिश के पैटर्न में होने वाले बदलाव से है. यह जलवायु के साथ-साथ इंसानों और पारिस्थितिक तंत्र को पूरी तरह प्रभावित करती है. इससे लोगों के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनकी आर्थिक स्थिति और नौकरी पर भी असर पड़ता है.”
रोकथाम पर ध्यान देने की जरूरत
विशेषज्ञों ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि पूरी दुनिया की सरकार जंगल में लगने वाली आग को बुझाने पर ही ज्यादातर पैसा खर्च करती है. यह आग ना लगे, इसकी रोकथाम के लिए योजना बनाने और उससे जुड़ी तैयारियों पर ना के बराबर पैसे खर्च किए जाते हैं. आग लगने की घटनाओं से जुड़े खतरों का सामना करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए, सरकार को अपने खर्च के तरीके में मौलिक बदलाव करने की जरूरत होगी. सरकार को रोकथाम पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने कहा, "जंगल की आग से निपटने के लिए मौजूदा सरकार अक्सर गलत जगह पर पैसा लगाती है. हमें इस आग से निपटने के लिए बेहतर तरीके से तैयारी करनी होगी, ताकि जोखिम को कम किया जा सके. हमें आग लगने की घटनाओं को कम करने के लिए ज्यादा निवेश करना होगा, स्थानीय समुदायों के साथ काम करना होगा और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को मजबूत करना होगा.”
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रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार अपने कुल निवेश का दो-तिहाई हिस्सा आग से निपटने से जुड़ी योजना बनाने, उसकी रोकथाम के लिए कारगर उपाय अपनाने, और आग लगने के बाद उससे तुरंत निपटने की तैयारी के लिए खर्च करे. हम्फ्री ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "यह काफी जरूरी है कि आग को भी बाढ़ और सूखे की तरह आपदा मानी जाए और उसका भी बेहतर प्रबंधन किया जाए.”
स्थानीय जानकारी का इस्तेमाल
तेजी से बदलती जलवायु की वजह से जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं कैसे बढ़ रही हैं और उन घटनाओं को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है, इसे बेहतर तरीके से समझने की जरूरत है. रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि निवेश का कुछ हिस्सा आग लगने की घटनाओं की निगरानी करने और उनका विश्लेषण करने पर खर्च किया जाना चाहिए. साथ ही, वे इस मामले में स्थानीय जानकारी के इस्तेमाल की भी बात करते हैं.
इसमें छोटी-छोटी झाड़ियों को नियंत्रित तरीके से जलाना भी शामिल है, क्योंकि आग लगने के दौरान ये छोटी-छोटी झाड़ियां ही ईंधन का काम करती हैं और आग को दूर-दूर तक फैलाती हैं. साथ ही, ऐसे छोटे-छोटे पेड़ लगाने चाहिए जो सूखा दूर करने में मदद करती हैं.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन में अग्नि प्रबंधन विशेषज्ञ के रूप में काम करने वाले पीटर मूर ने कहा, "जैसे-जैसे देश विकसित होते हैं, उनकी अर्थव्यवस्थाएं विकसित होती हैं और जनसांख्यिकी बदलती है, तो कई पारंपरिक प्रथाएं या तो समय के साथ कम हो जाती हैं या बदल जाती हैं.”
डीडब्ल्यू को मूर ने बताया कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और पश्चिमी अमेरिका में स्थानीय प्रथाओं को पहचाना और लागू किया जाने लगा है. इंटरनेशनल सवाना फायर मैनेजमेंट इनिशिएटिव जैसे संगठनों ने ऑस्ट्रेलिया से लेकर बोत्सवाना जैसी जगहों पर स्थानीय जानकारी का इस्तेमाल किया और फिर से वे पौधे लगाए जो आग को रोकने में मदद करते हैं. साथ ही, उन उपायों को लागू किया, जो आग लगने से होने वाली जोखिमों को कम करते हैं.
मूर ने जोर देकर कहा कि डॉक्यूमेंटेशन करके और इन जानकारियों को सभी लोगों तक पहुंचाकर, इन पारंपरिक तरीकों को बचाया जा सकता है. लोगों को समझाया जा सकता है कि पारंपरिक उपाय कितने जरूरी हैं और इनका कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है.