22 साल की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट की गिरफ्तारी का विरोध
१५ फ़रवरी २०२१दिशा को दिल्ली पुलिस ने बेंगलुरु में उनके घर से गिरफ्तार कर रविवार को दिल्ली की एक अदालत में पेश किया. अदालत ने पुलिस को उन्हें पांच दिन तक हिरासत में रखने की अनुमति दी. पुलिस का दावा है कि दिशा "टूलकिट" नाम के उस गूगल डॉक्यूमेंट के एडिटरों में से एक हैं जिसे स्वीडन की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग ने एक बार ट्वीट कर फिर हटा लिया था.
पुलिस मानती है कि दिशा की "टूलकिट" को बनाने और जगह जगह भेजने के पीछे की साजिश में अहम भूमिका है. पुलिस के मुताबिक दिशा ने और लोगों के साथ मिलकर उस गूगल डॉक्यूमेंट को बनाया और उसके लिए एक व्हाट्स ऐप ग्रुप भी शुरू किया. पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि दिशा ने ही उस "टूलकिट" को ग्रेटा को भेजा और ग्रेटा के ट्वीट करने के बाद उसे हटा लेने के लिए भी ग्रेटा को उन्होंने ही कहा.
पुलिस का दावा है कि ये सारी गतिविधियां दिखाती हैं कि इन सब लोगों ने खालिस्तान समर्थक पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन के साथ भारत के खिलाफ असंतोष फैलाने में सहयोग किया. मीडिया में आई खबरों के अनुसार दिशा ने इन सभी आरोपों का खंडन किया और अदालत को बताया कि उन्होंने इस गूगल डॉक्यूमेंट की सिर्फ दो लाइनें संपादित की थीं. उन्होंने खालिस्तानी संगठनों से संबंधित होने का आरोप से भी इंकार किया.
दिल्ली पुलिस ने "टूलकिट" को चार फरवरी को ही संज्ञान में लिया था और कहा था कि उसमें 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा की साजिश रचने की सारी जानकारी थी. ग्रेटा ने इस टूलकिट को तीन फरवरी को ट्वीट कर फिर उस ट्वीट को डिलीट कर दिया था. उन्होंने फिर एक और ट्वीट में उसी टूलकिट का एक संशोधित संस्करण ट्वीट कर कहा था कि पिछले डॉक्यूमेंट को उन्होंने डिलीट कर दिया क्योंकि उसमे ताजा जानकारी नहीं थी.
दिशा को एक युवा पर्यावरण ऐक्टिविस्ट के रूप में जाना जाता है और उनकी गिरफ्तारी का कार्यकर्ताओं से ले कर राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी विरोध किया है. इनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी शामिल हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई लोगों ने दिशा की गिरफ्तारी की आलोचना की है. इनमें अमेरिकी अधिवक्ता और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस और ब्रिटेन की सांसद क्लॉडिया वेब शामिल हैं.
कई जानकार यह भी कह रहे हैं कि टूलकिट मामले में हिंसा की साजिश स्पष्ट नहीं है क्योंकि उसमें किसान आंदोलन के समर्थन में जो कदम उठाने के लिए कहा गया था उनमें सोशल मीडिया पर लिखने, सांसदों को ज्ञापन देने, कुछ निजी कंपनियों से अपने शेयर वापस लेने जैसे कदम शामिल हैं.
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