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25 साल की दोस्ती या चीन से होड़

राहुल मिश्र
२६ जनवरी २०१८

अपने 69वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत ने दस दक्षिण-पूर्वी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है. ये सभी देश आसियान क्षेत्रीय संगठन के सदस्य हैं.

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Indien Republic Day Parade
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

यह अपने आप में एक अभूतपूर्व और महत्वपूर्ण कदम है. आजादी के बाद अपने 70 साल के इतिहास में भारत ने पहले किसी भी क्षेत्रीय संगठन को ना इतनी महत्ता दी, और ना ही इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों को एक साथ गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित किया. हालांकि, विगत वर्षों में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे, और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद जैसी हस्तियां भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत कर चुकी हैं.

निस्संदेह यह कोई आम बात नहीं है- आयोजन के परिप्रेक्ष्य में तो बिल्कुल भी नहीं, और इसका बयान-ए-हाल एक आम दिल्लीवासी बड़ी तल्खी के साथ दे सकता है. हालांकि मोदी सरकार के कुछ आलोचकों ने इसे महज एक फोटो-ऑप कह कर नकारने की कोशिश जरूर की है, मगर इस बात का निर्धारण प्रधानमंत्री मोदी और आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक के बाद आए प्रेस रिलीज और संयुक्त मसौदों से ही करना चाहिये, उसके पहले नहीं. विश्व के तमाम समीक्षकों की, और शायद चीन की भी, निगाह इस बात पर लगी है कि भारत इस आयोजन से क्या हासिल करना चाहता है? और क्या भारत अपने कूटनीतिक मकसद में सफल हो पायेगा? इन दोनों सवालों के जवाब फिलहाल भविष्य की गोद में हैं.

Indien Republic Day Parade
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

जो भी हो, इस आयोजन से कुछ बातें तो फौरी तौर पर साफ हो ही चली हैं. पहला यह कि भारत ने भले ही अब इंडो-पैसिफिक और चतुष्कोणीय संस्थाओं पर खासा ध्यान देना शुरु किया है और जापान और अमेरिका उसके प्रमुख मित्र राष्ट्रों की श्रेणी में आ चुके हैं, लेकिन भारत आज भी आसियान को उतनी ही महत्ता देता है जितनी कि 1992 में जब भारत ने लुक ईस्ट की नीति पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के निर्देशन में शुरु की थी.

प्रधानमंत्री मोदी, जिनकी सरकार ने 2014 में एक लिहाज से अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा, और विदेश मामलों की प्रमुख हिलेरी क्लिंटन की प्रेरणा से एक्ट ईस्ट नीति की शुरुआत की थी, वे भी आसियान को एक्ट ईस्ट नीति के केन्द्र में रखते हैं.

Indien Staatsgäste beim Tag der Republik
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

दूसरे, भारत ने हमेशा से माना है कि उसके लिए सभी पड़ोसी देश और मित्र राष्ट्र एक समान हैं. उनमें शक्ति और समृद्धि के आधार पर पंडित नेहरू के समय से ही भारत ने कभी भेदभाव नहीं किया है. लाओस से लेकर इंडोनेशिया और कंबोडिया से लेकर मलेशिया- सभी देश, जिनसे भारत के व्यापारिक, सामरिक संबंधों का स्तर जो भी रहा हो, उन सभी अतिथियों का एक कतार में आना यह पूरी तरह सिद्ध करता है. यह सुखद संयोग ही है कि आसियान भी इस बात को लेकर हमेशा कटिबद्ध रहा है.

आसियान को लेकर तमाम रणनीतिकार यह मानते रहे हैं कि चीन की आर्थिक और सैन्य शक्ति बढने के साथ धीरे-धीरे आसियान सदस्य देशों में भी मतभेद पनप रहे हैं. निवेश, कूटनीतिक सहयोग और कुछ हद तक बेहतर भविष्य की आकांक्षा में कुछ देश चीन की ओर खिंच रहे है तो वहीं वियतनाम जैसे देश चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक शक्ति को संशय की नजर से देखते हैं. ऐसे में आसियान देशों को एक मंच पर एक समूह के तौर पर लाकर भारत ने आसियान को मजबूती दी है और उनका मनोबल बढ़ाया है.

हालांकि इसमें दो राय नहीं है कि आसियान, खास तौर पर इसके पुरजोर समर्थक सिंगापुर को भारत से तमाम अपेक्षाएं हैं जिनमें भारत पूरी तरह खरा नहीं उतर पा रहा है. मसलन, व्यापार और निवेश के मामले में भारत चीन और जापान से काफी पीछे है. 2016 में चीन के 10 अरब डॉलर निवेश के मुकाबले भारत सिर्फ 1 अरब निवेश ही कर सका.

चीन के आसियान सदस्य देशों से 450 अरब डालर के दोतरफा व्यापार के मुकाबले भारत सिर्फ 70 अरब डालर का ही व्यापार करता है जिसका अधिकांश हिस्सा सिंगापुर, इंडोनेशिया और मलेशिया से आता है. अपने तमाम संपर्क परियोजनाओं जैसे कालादन और त्रिपक्षीय राजमार्गों में भी भारत की गति धीमी रही है.

Indien Staatsgäste beim Tag der Republik
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

जहां तक चीन का सवाल है तो चीनी सरकार के कुछ हलके और चीनी मीडिया इस आयोजन से खासे परेशान हो सकते हैं पर भारत को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखने का चीन का दृष्टिकोण बेमानी है. सिंगापुर के निवर्तमान प्रधानमंत्री गोह चोक तांग के शब्दों मे कहे तो भारत और चीन मानो आसियान रूपी हवाई जहाज के दो पंख हैं- दोनों का होना, और दोनों का समान ऊर्जा और ताकत से आसियान के साथ चलना बेहद जरूरी है.

इस संदर्भ में जहां भारत को अपनी कथनी और करनी में सामंजस्य बिठाना होगा, खास तौर पर अर्थ और व्यापार के क्षेत्र में, तो वहीं चीन को एक शांतिप्रिय और अच्छे पड़ोसी की मिसाल कायम करनी होगी. यह न सिर्फ आसियान की जीत होगी बल्कि भारत और चीन की भी, जो आगे चल कर एशियन सेंचुरी का मार्ग प्रशस्त करेगी.

(लेखक मलय यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर और एशियाई मामलों के जानकार हैं.)