नेताओं के खिलाफ करीब 5,000 मामले लंबित
४ फ़रवरी २०२२सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के जल्द फैसले के लिए विशेष अदालतों के गठन पर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. ताजा आंकड़े इसी मामले पर सुनवाई के दौरान सामने आए. अदालत को दी गई एक ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि एक तरफ तो मामले पर सुनवाई चलती जा रही है और दूसरी तरफ इस तरह के लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है.
रिपोर्ट इस मामले में एमिकस क्यूरे के रूप में अदालत को सलाह दे रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने पेश की है. रिपोर्ट में बताया गया कि दिसंबर 2018 में इस तरह के 4,110 मामले लंबित थे, अक्टूबर 2020 में यह संख्या बढ़ कर 4,859 हो गई और अब यह संख्या बढ़ कर 4,984 हो गई है.
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सालों पुराने मामले
इनमें से 1,899 मामले तो पांच सालों से भी ज्यादा पुराने हैं और 1,475 मामले दो साल से लेकर पांच साल तक पुराने हैं. और यह हाल तब है जब अदालत लगातार इन मामलों की निगरानी कर रही है और इस विषय में कई निर्देश पारित कर चुकी है. दिसंबर 2018 से लेकर अभी तक 2,775 मामलों का निपटारा भी हो चुका है, लेकिन इसके बावजूद कुल लंबित मामलों की संख्या बढ़ गई है.
4,984 लंबित मामलों में से 3,322 मामले मजिस्ट्रेट अदालतों में लंबित हैं जबकि 1,651 मामले सेशंस अदालतों में लंबित हैं. एमिकस क्यूरे ने कहा कि आंकड़े दिखाते हैं कि संसद और विधान सभाओं में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसलिए यह बेहद जरूरी है कि इस तरह के लंबित मामलों में जल्दी फैसले आएं.
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इसके लिए उन्होंने सुझाव दिया कि इन मामलों को सुन रही अदालतों को आदेश दिया जाए कि वो केवल इन्हीं मामलों को सुनेंगी. बाकी मामलों पर सुनवाई इन मुकदमों के पूरा हो जाने पर ही होगी. एमिकस क्यूरे ने यह भी सुझाव दिया कि मुकदमे में सुनवाई रोज हो और सुनवाई कभी स्थगित नहीं की जाए.
कैसे हो समाधान
अगर अभियुक्त मुकदमे में देरी करवाए तो उसकी जमानत खारिज कर दी जाए. अगर सरकारी वकील सहयोग ना कर तो राज्य सरकार के मुख्य सचिव से उसकी शिकायत की जाए और आवश्यक कदम उठाए जाएं. इसके अलावा सभी ट्रायल कोर्ट पांच साल से ज्यादा से लंबित सभी मामलों पर हाई कोर्ट को विस्तृत रिपोर्ट दें, देर होने के कारण गिनाएं और समाधान बताएं. हाई कोर्ट रिपोर्ट का अध्ययन कर आवश्यक कदम उठाएं.
इन अदालतों में कार्रवाई वर्चुअल रूप से बिना किसी बाधाे के चल सके इसके लिए केंद्र सरकार धनराशि उपलब्ध करवाए. इसके अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई और एनआईए में लंबित पड़े मामलों की निगरानी के लिए एक समिति का गठन हो, जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज हों या हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश.