50 साल की जर्मन लीग
१० अगस्त २०१३जर्मन फुटबॉल संघ डीएफबी के अध्यक्ष वोल्फगांग नियर्सबाख का मानना है कि कामयाबी की ऐसी मिसाल "इस देश के किसी और संस्थान" में नहीं दिखती. बुंडेसलीगा दुनिया के सबसे लोकप्रिय और मुनाफे वाली लीगों में गिना जाने लगा है. हर हफ्ते लाखों दर्शक टेलीविजनों पर, स्टेडियमों और पबों में अपने साथियों के साथ प्रिय क्लबों के मुकाबलों का मजा लेते हैं.
जर्मनी की फुटबॉल लीग को 2013 में तो मानो पंख ही लग गए, जब पहली बार चैंपियंस लीग फाइनल में इसकी दो टीमों ने खिताबी मुकाबला किया. दर्शकों के मामले में भी यह दूसरे लीग फुटबॉल से आगे निकल चुका है. इस साल हर मैच में औसतन 42,612 लोगों ने स्टेडियमों में मैच देखे. इसका मतलब सीटों का करीब 93 फीसदी इस्तेमाल हुआ. 50 साल पहले तो इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, खास तौर पर इसलिए कि उस वक्त जर्मनी दो हिस्सों में बंटा था और दोनों हिस्सों में जबरदस्त तनाव हुआ करता था.
जर्मन फुटबॉल लीग यानी बुंडेसलीगा की शुरूआत बहुत मुश्किल हालात में हुई. लगभग नौ घंटे की गरमागरम बहस के बाद 28 जुलाई 1962 को 129 प्रतिनिधियों ने 16 क्लबों के साथ लीग की शुरुआत करने का फैसला किया. उस वक्त राष्ट्रीय कोच सेप हैरबर्गर ने कहा, "इस फैसले में मैं खुश हूं. आखिरकार हमने फैसला कर लिया." डीएफबी प्रमुख नियर्सबाख आज उस फैसले के बारे में कहते हैं, "जर्मन फुटबॉल के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण घटना थी. इन लोगों ने उस दिन एक मील का पत्थर रखा."
कुल 46 क्लबों ने नए लीग की सदस्यता के लिए अर्जी दी. इनमें हैम्बर्ग भी था जो अब बुंडेसलीगा खेलने वाला इकलौता संस्थापक सदस्य है और कभी भी लीग से बाहर नहीं हुआ है. रिकॉर्ड चैंपियन और जर्मनी का सबसे लोकप्रिय क्लब बायर्न म्यूनिख इसके संस्थापक सदस्यों में नहीं था. 1965 में बुंडेसलीगा में 18 टीमों को शामिल कर लिया गया और जर्मनी के एकीकरण के बाद 1991 में टीमों की संख्या 20 कर दी गई ताकि पूर्वी जर्मनी की टीमों को भी मौका मिल सके. हालांकि बाद में इसे फिर से घटा कर 18 कर दिया गया.
बुंडेसलीगा की शुरुआत खेल के लिए हुई थी और पैसों पर ज्यादा ध्यान नहीं था. तय किया गया कि कोई भी खिलाड़ी महीने में 1200 मार्क (600 यूरो) से ज्यादा नहीं कमा सकेगा. इस बात पर आज के खिलाड़ियों को शायद हंसी आए क्योंकि जर्मनी और बायर्न म्यूनिख के कप्तान फिलिप लाम महीने में करीब छह लाख यूरो कमाते हैं. उस वक्त के खिलाड़ी फुटबॉल के अलावा घर चलाने के लिए दूसरे काम भी किया करते थे.
बुंडेसलीगा की स्थापना के अगले साल इसका सीजन शुरू हुआः 1963 में. पहले मैच का पहला गोल मिनट भर के अंदर ही दाग दिया गया. डॉर्टमुंड के टीमो कोनिएत्स्का ने 58वें सेकंड में ही टीम के लिए गोल कर दिया. हालांकि इस क्षण की आज न तो वीडियो रिकॉर्डिंग है और न ही कोई तस्वीर. आज निचले पायदानों पर रहने वाला कोलोन पहले सीजन का चैंपियन बना.
1970 के दशक में जर्मन फुटबॉल लीग स्कैंडलों में फंस गया. ओबरहाउजेन और बीलेफेल्ड की टीमों ने लीग में बने रहने के लिए अंक तालिका में धांधली की. बाद में 2005 में पूर्व रेफरी रोबर्ट हॉयत्सर लॉटरी कांड में हिस्सेदारी ने सनसनी जरूर फैलाई लेकिन इसके बावजूद लीग को छवि को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ.
इससे पहले 1973 में फुटबॉल के इस मुकाबले को स्पांसर मिलने लगे. ब्राउनश्वाइग की टीम के खिलाड़ी पहली बार विज्ञापनों से पटे टीशर्ट पहनकर मैदान पर उतरे, जो उस वक्त के लिए नई बात थी.
मैदान में बदलाव नहीं
नियम कायदे और लाइसेंस के लिए 2000 में फ्रैंकफर्ट में जर्मन फुटबॉल लीग डीएफएल का गठन कर दिया गया, जो मार्केटिंग और लाइसेंस जैसी चीजों को देखती है. साल 2011 में बुंडेसलीगा ने 1.75 अरब यूरो का राजस्व हासिल किया.
जबरदस्त आर्थिक बदलाव और चकाचौंध बुंडेसलीगा की कामयाबी के राज हैं. लेकिन जर्मनी के मशहूर कोच रहे ऑटो रेहागेल का कहना है कि असल राज उसके सीधे सादे होने में है. खेल में बुनियादी तौर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है. रेहागेल कहते हैं, "ग्राउंड 60X100 मीटर का ही होता है, बदला नहीं है. कोई भी फुटबॉलर पहले 10 सेकेंड से कम तेज नहीं दौड़ता था, आज भी ऐसा नहीं है. सिर्फ अपने वन टच फुटबॉल के कारण खेल तेज हो गया है."
रिपोर्टः थोमस क्लाइन/एजेए
संपादनः महेश झा