1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

60 साल बाद भी चीन को क्यों चुभते हैं दलाई लामा?

१५ मार्च २०१९

तिब्बतियों के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को निर्वासन में रहते हुए 60 साल हो गए हैं, लेकिन अब भी वह तिब्बत में रहने वाले अपने अनुयायियों के दिल में बसते हैं और यही बात चीनी अधिकारियों को परेशान करती है.

https://p.dw.com/p/3F8XF
Indien Dharamshala Dalai Lama trifft Wissenschaftler aus China
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

चीन के तिब्बती पहाड़ी इलाके के उत्तरी छोर पर स्थित है टक्टसर जहां पर 1935 में एक किसान परिवार में दलाई लामा का जन्म हुआ था. यह जगह ना सिर्फ दलाई लामा को मानने वालों को अपनी तरफ खींचती है बल्कि विदेशी पर्यटक भी यहां बड़ी संख्या में आते हैं. ऐसे में, यहां कड़ी सुरक्षा भी होती है.

हाल में रॉयटर्स के पत्रकारों ने टक्टसर का दौरा किया जिसे चीनी भाषा में होंग्या के नाम से जाना जाता है. वहां सशस्त्र पुलिसवालों ने पत्रकारों को उस रास्ते की तरफ नहीं जाने दिया जो एक गांव की तरफ जाता है. वहां पर लगभग 60 घर हैं. सुरक्षाकर्मियों और सफेद कपड़े पहने हुए दर्जनों अधिकारियों ने यह कहते हुए पत्रकारों को वहां जाने से रोक दिया कि यह निजी संपत्ति है और जनता के लिए खुली नहीं है.

Das Geburtshaus des Dalai Lama in Taktser
इसी घर में दलाई लामा का जन्म हुआतस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

जब इस बारे में छिंगहाई की प्रांतीय सरकार और चीन के स्टेट काउंसिल इंफर्मेशन कार्यालय से पूछा गया तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया. माना जाता है कि इस गांव में अब भी दलाई लामा का परिवार रहता है. उन्हें लकड़ी के दरवाजों और कंक्रीट की बड़ी दीवारों के पीछे रखा गया है. जब भी किसी संवेदनशील राजनीतिक घटना की वर्षगांठ होती है तो चीनी अधिकारी इस गांव में बाहरी लोगों को जाने से रोक देते हैं.

चीन नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दलाई लामा को एक खतरनाक अलगाववादी मानता है और वह 83 वर्षीय इस धार्मिक नेता को "साधु के वेश में एक भेड़िया" करार देता है. दूसरी तरफ, दलाई लामा किसी भी तरह की हिंसा भड़काने के आरोपों को खारिज करते हैं. उनका कहना है कि वह बस तिब्बत के लिए वास्तविक स्वायत्तता चाहते हैं.

वह दिन जब दलाई लामा भाग कर भारत आए

चीन में रहने वाले 60 लाख से ज्यादा तिब्बतियों में ज्यादातर अब भी दलाई लामा का बहुत सम्मान करते हैं. हालांकि चीन में दलाई लामा की तस्वीर और उनके प्रति सम्मान के सार्वजनिक प्रदर्शन पर प्रतिबंध है. 1959 में दलाई लामा को एक सैनिक के वेश में तिब्बत से भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी.

उस वक्त अफवाह उड़ी थी कि चीनी सैनिक उनके अपहरण या हत्या की योजना बना रहे हैं. इससे तिब्बत में बगावत शुरू हो गई. लेकिन चीन ने जल्द ही उसे दबा दिया और दलाई लामा को तिब्बत छोड़ना पड़ा. तब से वे कभी तिब्बत वापस नहीं जा सके हैं.

Der 14. Dalai Lama, Tenzin Gyatso (1935-) als Kind in Amdo, kurz nachdem er als die Reinkarnation des 13. Dalai Lama identifiziert wurde.
तस्वीर: picture-alliance/CPA Media Co. Ltd

दलाई लामा का नाम पहले ल्हामो थोंडुप था. वह सिर्फ दो साल के थे जब उन्हें तिब्बतियों के सबसे अहम अध्यात्मिक नेता दलाई लामा का नया अवतार घोषित किया गया. और इस तरह उन्हें ल्हासा में रहने वाले अपने परिवार से अलग कर दिया गया.

दलाई लामा के चीन से भागने की वर्षगांठ चीन के सियासी कैलेंडर की सबसे संवेदशील तारीखों में से एक होती है. एक ऐसी ही तारीख है 1989 में बीजिंग के थिएनानमन चौक पर लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों को कुचलना. इस घटना को इस साल जून में 30 वर्ष पूरे हो रहे हैं. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी नहीं चाहेगी कि इसे लेकर किसी तरह का विवाद हो.

चीनी संसद के हालिया सत्र के दौरान तिब्बत के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख वु इंगची ने कहा कि तिब्बत के लोग दलाई लामा से ज्यादा लगाव चीन की सरकार से रखते हैं. उनके मुताबिक, "दलाई लामा ने तिब्बत के लोगों के लिए एक भी अच्छी चीज नहीं की है."

दलाई लामा की उम्र बढ़ रही है. ऐसे में, बहुत से तिब्बतियों को डर है कि चीन की सरकार उनकी जगह अपने किसी पसंदीदा व्यक्ति को नियुक्त कर देगी. दलाई लामा ने कहा कि उनके अवतार को चीन नियंत्रित इलाके के बाहर से ढूंढा जा सकता है. या फिर दलाई लामा नाम की संस्था उनके साथ ही खत्म हो सकती है.

एके/आईबी (रॉयटर्स)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें