स्विट्जरलैंड: गायों की घंटी बचाने के लिए होगी वोटिंग
गाय के गले में बंधी घंटी रात-बिरात, किसी भी पहर, बिना रोक-टोक के बजती रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए स्विट्जरलैंड के एक गांव ने वोटिंग कराने का फैसला लिया है.
वोटिंग से होगा घंटी का फैसला
घास के हरे मैदान. लहराती सी चढ़ती-ढलती जमीन. और, वहीं कहीं घास चरती गायों का एक झुंड, जिनके गले में टंगी घंटी अलसाई सी, डोलती हुई धुन बिखेर रही हो. ये सारे फ्रेम जोड़ दें, तो स्विट्जरलैंड के किसी गांव की तस्वीर बन जाएगी. हो सकता है आपको ये रोमानी लगे, लेकिन वहां कई लोगों को ये शोर लगता है. इनके मुकाबले कई लोग ऐसे भी हैं, जो घंटी के समर्थक हैं. वो इन घंटियों को बचाने के लिए अभियान चला रहे हैं.
मामला यूं शुरू हुआ
कहानी शुरू हुई, स्विट्जरलैंड के आरवांगेन गांव में रह रहे एक जोड़े से. दोनों किराये के जिस घर में रहते थे, उसके नजदीक ही खेत और मैदान थे. वहां करीब 15 गायों का एक झुंड घास चरता था. गायों के गले में घंटी बंधी थी. वो हिलते-डुलते घास चरतीं और घंटियों की टुन-टुन आवाज आस-पास फैलती. उस जोड़े ने घंटियों से ज्यादा शोर होने की शिकायत दर्ज कराई.
परंपरा, संस्कृति और प्रतिक्रियाएं
इस शिकायत पर बड़ी सख्त प्रतिक्रियाएं आईं. कई लोगों का मानना था कि घंटियों का इस्तेमाल परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है. मांग उठी कि इस परंपरा की हिफाजत के लिए लोकल वोट कराया जाए. आरवांगेन के मेयर ने एफपी को बताया कि पहले-पहल जब उन्हें पता चला कि ऐसी कोई शिकायत दर्ज कराई गई है, तो वह हैरान हो गए. दिलचस्प यह है कि मेयर खुद भी उन्हीं खेतों के पास रहते हैं, जिससे मामला शुरू हुआ.
घंटी के समर्थन में याचिका
स्विट्जरलैंड की प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था में अहम मुद्दों पर जनता के मतदान से फैसला होता है. घंटी के समर्थकों ने भी याचिका तैयार की. मांग रखी गई कि गायों को किसी भी पहर घंटी पहनाने का किसानों के पास जो अधिकार है, वो कायम रहे. गांव की आबादी करीब 4,800 है. अगर वोट देने की पात्रता रखने वाले 10 फीसदी लोगों, यानी इस गांव से 380 दस्तखत मिल जाते, तो वोटिंग हो सकती थी.
जून में हो सकती है वोटिंग
याचिका को खूब समर्थन मिला. करीब 1,099 दस्तखत जमा हो गए. 11 दिसंबर को यह मामला आधिकारिक तौर पर नगरपालिका की असेंबली में पेश किया गया. ग्रामीणों ने तय किया कि इस मामले पर पॉपुलर वोट कराया जाए. संभावना है कि यह मतदान जून 2024 में होगा. वोटिंग हो कि नहीं, इसपर भी बड़ा जोश देखा गया. बैठक में मौजूद 166 लोगों में से बस चार ही थे, जिन्हें वोटिंग के लिए बढ़ने का विरोध किया.
पहले किसानों को राह दिखाती थीं घंटियां
गाय की घंटियां कभी व्यावहारिक जरूरत हुआ करती थीं. गाय घास चरते-चरते दूर चली जाएं, तो उनकी घंटियों की टुन-टुनाहट उनके होने का एलान करतीं. हालांकि अब जीपीएस जैसी तकनीक आ गई है, गले में ट्रैकर डालकर भी काम चल सकता है. लेकिन परंपरा और चाव भी एक चीज है. घंटियों की आवाज, कई लोगों के लिए ग्रामीण जीवन का हिस्सा हैं.
अल्पाइन फार्मिंग के रिवाज
स्विट्जरलैंड में ऊंचे इलाकों में होने वाली खेती के अपने कई रिवाज हैं. मसलन, घंटी पहनाकर गायों को ऊंचाई के चारागाहों की ओर हांकना. जहां गर्मियों के दौरान वे घास चरती हैं. अल्पाइन फार्मिंग की इन परंपराओं को हाल ही में यूनेस्को ने अपनी "इंटेजिबल कल्चरल हैरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी" लिस्ट में शामिल किया है.
विरोध को परंपराओं के लिए खतरा मानने वाले भी हैं
हालांकि घंटी को शोर मानने वाले भी हैं. हालिया बरसों में इनसे जुड़ी शिकायतें भी बढ़ी हैं. चर्च में हर 15 मिनट घंटा बजाए जाने का भी विरोध हुआ है. स्विट्जरलैंड में आप्रवासियों की बड़ी संख्या है. तो कई बार ऐसी शिकायतों पर आप्रवासी बनाम स्थानीय परंपराओं की बहस छिड़ जाती है. कई स्थानीय लोग अपनी परंपराओं, अपने पुरखों की जीवनशैली पर खतरे का डर जताते हैं.