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लद्दाख में 16 दिनों से क्यों आमरण अनशन पर हैं सोनम वांगचुक

२१ मार्च २०२४

लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद्, इनोवेटर और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक पिछले 16 दिनों से आमरण अनशन पर हैं. आखिर वांगचुक किन मांगों को लेकर अनशन पर हैं.

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पिछले 16 दिनों से अनशन पर हैं सोनम वांगचुक
पिछले 16 दिनों से अनशन पर हैं सोनम वांगचुक तस्वीर: Sajjad Hussain/AFP

21 मार्च 2024, सोनम वांगचुक के आमरण अनशन का 16वां दिन रहा. वांगचुक पिछले 16 दिनों से सोशल मीडिया पर अपनी भूख हड़ताल के बारे में सुबह और रात वीडियो अपडेट डाल रहे हैं.

वांगचुक ने अपने अनशन का नाम क्लाइमेट फास्ट यानी पर्यावरण उपवास दिया है. 16वें दिन उन्होंने एक्स पर एक वीडियो पोस्ट में कहा, "गुड मार्निंग दोस्तो, आज मैं अपने पर्यावरण उपवास के 16वें दिन की शुरूआत कर रहा हूं. मैं सिर्फ नमक और पानी का सेवन कर रहा हूं. लेकिन अब इसका असर मुझ पर दिखने लगा है."

वांगचुक ने बताया, "कल और आज मैं एनर्जी के मामले में कमजोर महसूस कर रहा हूं. हां, बाहर खुले में बहुत ठंड है. बीती रात तापमान माइनस आठ डिग्री था. मेरे साथ करीब 120 लोग बाहर सो रहे थे."

वांगचुक अपने वीडियो में पूर्व में आंदोलनकारियों द्वारा की गई भूख हड़ताल को लेकर सरकार की संदेवनशीलता का भी जिक्र करते हैं. वो कहते हैं कि जब अन्ना हजारे ने 2011 में लोकपाल कानून की मांग को लेकर भूख हड़ताल की तो उस वक्त की मौजूदा सरकार ने उनके हड़ताल के 13वें दिन लोकपाल बिल संसद से पारित कर दिया था.

वांगचुक कहते हैं कि यह सरकार की संवेदनशीलता दिखाता है. वांगचुक अपने वीडियो में कहते हैं, "वास्तव में इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन की वजह से ही 2014 में बीजेपी की मौजूदा सरकार सत्ता में आई. और बेशक हमें उनसे सत्य और न्याय के उच्चतम मानक की अपेक्षा करनी चाहिए."

इसी वीडिया में वह उस दौर को भी याद करते हैं जब उनके पिता ने आमरण अनशन किया था. वांगचुक बताते हैं कि 1986 में उनके पिता ने आमरण अनशन किया था.

वांगचुक कहते हैं, "यह अनशन लद्दाख के आदिवासी लोगों के अधिकारों को लेकर था और अनशन के 16वें दिन उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी दिल्ली से उड़ान भरकर आईं और जूस के ग्लास के साथ उनका अनशन तुड़वाया. बाद में उनकी मांगों को पूरा किया. एक बार फिर यह घटना सरकार की ओर से जनता के आंदोलनों के प्रति संवेदनशीलता दर्शाती है."

वांगचुक क्यों कर रहे हैं पर्यावरण उपवास

सोनम वांगचुक केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा उपायों की मांग को लेकर 6 मार्च से लेह में भूख हड़ताल पर हैं. हर दिन उनके साथ सैकड़ों लोग समर्थन जताने के लिए भूखे रहते हैं और कड़ाके की ठंड में खुले आसमान के नीचे सोते हैं.

वांगचुक की मांग लद्दाख को पूर्ण राज्य देने की और संविधान की छठी अनुसूची लागू कराने की है. 6 मार्च को अनशन की शुरूआत करते हुए वांगचुक ने कहा था, "मैं आज फिर आप लोगों से मुखातिब हूं. मगर इस बार एक अनशन शुरू करने के लिए...आमरण अनशन. चुनाव आने के संदर्भ में इसे हम चरणों में करेंगे. 21-21 दिन के चरणों में, जब तक हमारे लद्दाख की आवाज सुनी नहीं जाती...जब तक सरकार लद्दाख पर ध्यान न दें."

इससे पहले 3 फरवरी को लेह में इन मांगों के समर्थन में बड़ा प्रदर्शन हुआ था. उस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में लोग कड़ाके की ठंड के बावजूद सड़कों पर उतरे आए थे.

बुधवार को कमजोर दिख रहे वांगचुक ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, "खुले आसमान के नीचे यह जलवायु अनशन भारत सरकार को छठी अनुसूची के तहत नाजुक ईकोसिस्टम और आदिवासियों की रक्षा के लिए किए गए वादों को याद दिलाने के लिए है."

जलवायु परिवर्तन का असर

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि पिघलते ग्लेशियरों का असर दो अरब लोगों पर पड़ेगा. उन्होंने कहा, "लद्दाख और आसपास के हिमालय के ग्लेशियर ग्रह का तीसरा ध्रुव हैं. इसमें ताजे पानी का सबसे बड़ा भंडार है और दो अरब लोगों को भोजन मिलता है, जो ग्रह की कुल आबादी का एक-चौथाई है. जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ इंसानी गतिविधि और कार्बन उत्सर्जन के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं."

उन्होंने चेतावनी दी कि अगर लद्दाख के नाजुक ईकोसिस्टम में खनन और उद्योगों की अनुमति दी गई, तो "कुछ ही समय में ग्लेशियर पिघल जाएंगे."

उन्होंने कहा, "गाड़ियों से निकलने वाला धुआं सफेद चमचमाती बर्फ पर बैठ जाता है और इसे बहुत तेजी से पिघला देता है. यदि यह जारी रहा तो हम जलवायु शरणार्थी बन सकते हैं. इसका मतलब यह भी है कि पूरे उत्तर भारत में सर्दियों के महीनों से लेकर वसंत तक पानी के भंडार नहीं होंगे."

लद्दाख की लड़ाई

अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. जबकि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी लेकिन लद्दाख में कोई परिषद नहीं होगी. छठी अनुसूची में शामिल किए जाने के बाद लद्दाख के लोग स्वायत्त जिला और क्षेत्रीय परिषद बना सकेंगे. इसके अलावा उनकी मांगों में दो लोकसभा की सीटें और एक राज्यसभा की सीट भी शामिल है.

फरवरी में केंद्रीय गृह मंत्रालय और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस और लेह एपेक्स बॉडी के प्रतिनिधियों के बीच मांगों के समाधान के लिए बातचीत फेल होने के बाद लद्दाख में विरोध प्रदर्शन अब तेज हो गया है.