अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों की बढ़ती परेशानी
३० जनवरी २०२४इन आठ दंपतियों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील की थी कि अदालत उन्हें सुरक्षा दिलाए और उनके वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप रोके. आठों ने अलग-अलग अपीलें दायर की थीं. आदेश भी अलग-अलग दिए हैं लेकिन आठों आदेश के शब्द एक जैसे ही हैं.
इन दंपतियों में हिंदू महिलाओं से शादी करने वाले पांच मुसलमान पुरुष और मुस्लिम महिलाओं से शादी करने वाले तीन हिंदू पुरुष हैं. अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि आठों शादियां में 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम' का पालन नहीं हुआ है, इसलिए अपील को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.
क्या कहता है कानून
आदेश में यह विस्तार से नहीं बताया गया है कि इन विवाहों में धर्मांतरण रोकने के लिए लाए गए इस कानून का उल्लंघन कैसे हुआ है. 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम' को उत्तर प्रदेश सरकार अध्यादेश के जरिए नवंबर, 2020 में लाई थी. बाद में विधानसभा में विधेयक लाकर इस पर कानून बनाया गया था.
अधिनियम के सेक्शन छह में लिखा है कि अगर कोई शादी सिर्फ "अवैध धर्मांतरण" के उद्देश्य से की गई है तो उस शादी को निरस्त घोषित कर दिया जाएगा. इससे बचने के लिए धर्म बदलने वाले व्यक्ति को कम से कम 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को तय फॉर्म में सूचना देनी होगी.
उसके अलावा धर्मांतरण कराने वाले व्यक्ति को एक महीने पहले (डीएम) को तय फॉर्म में सूचना देनी होगी. इसके बाद (डीएम) पुलिस द्वारा जांच कराएंगे यह मालूम करने के लिए कि प्रस्तावित धर्मांतरण का "असली इरादा, उद्देश्य और वजह" क्या है. अगर इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन पाया जाता है तो प्रस्तावित धर्मांतरण को अवैध माना जाएगा. कानून के उल्लंघन के लिए पांच साल जेल तक सजा का प्रावधान है.
इस आदेश के बाद अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. भारत में अक्सर अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों को लेकर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं.
अब कैसे मिलेगी सुरक्षा
कई मामलों में दंपतियों के परिवारों के सदस्य शादी से खुश नहीं होते हैं और दंपति खुद अपने ही परिवार वालों से खतरा महसूस करने लगते हैं. ऐसे में वो अदालत के पास जाकर अपील करते हैं कि अदालत उनकी सुरक्षा का इंतजाम करे. अक्सर अदालतें पुलिस को ऐसे जोड़ों को सुरक्षा देने का आदेश देती हैं. कुछ राज्यों में विशेष रूप से ऐसे जोड़ों की सुरक्षा के लिए 'सेफ हाउसेस' बनाए जाते हैं.
सितंबर 2023 में ऐसे ही एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक दंपति को पुलिस सुरक्षा मुहैया करवाई थी और कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 21 सबको जीवन और निजी स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान करता है, जिसके तहत सबको अपने निजी फैसले लेने का अधिकार है, विशेष रूप से शादी से जुड़े मामलों में. अदालत ने यह भी कहा था कि "एक जीवनसाथी चुनने का अधिकार धर्म से जुड़े मामलों से किसी भी तरह प्रभावित नहीं हो सकता है."