यमन में लड़ाई, कहां जाएं कैंसर के मरीज
यमन में तीन साल से सऊदी सैन्य गठबंधन और ईरान समर्थित हूथी बागियों के बीच लड़ाई चल रही है. अस्पताल भी बमबारी से महफूज नहीं हैं. ऐसे में, कैंसर जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों को हर गुजरता दिन मौत के करीब ले जा रहा है.
बेबस बाप
खालिद इस्माइल अपनी बेटी रजिया का दायां हाथ चूम रहे हैं. 17 साल की कैंसर पीड़ित रजिया का बायां हाथ काट दिया गया है. वह कहते हैं, "जंग से हमारी जिंदगी तबाह हो गई. हम विदेश जा नहीं सकते और इसीलिए मेरी बेटी का ठीक से इलाज नहीं हो पाया."
कोई मदद नहीं
पिछले दो साल से यमन के नेशनल ओंकोलॉजी सेंटर को कोई सरकारी आर्थिक मदद नहीं मिली है. कैंसर के मरीजों का इलाज करने के लिए बना यह सेंटर अब विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और दानदाताओं की मदद से चल रहा है.
सिर्फ बच्चों के लिए
कैंसर सेंटर में बिस्तरों की संख्या बहुत ही कम है और जो हैं उन्हें सिर्फ बच्चों को दिया जाता है. इस सेंटर में हर महीने सिर्फ छह सौ नए मरीज दाखिल किए जाते हैं. इतने मरीजों के इलाज के लिए इस सेंटर के पास पिछले साल सिर्फ दस लाख डॉलर थे.
वेटिंग रूम में ही थेरेपी
वयस्क मरीजों की थेरेपी इस सेंटर के वेटिंग रूम में बेंचों पर ही कर दी जाती है. लड़ाई से पहले इस सेंटर को 1.5 करोड़ डॉलर सालाना दिए जाते थे और देश के दूसरे अस्पतालों में भी दवाएं यहीं से जाती थीं, लेकिन अब हालात बहुत बदल गए हैं.
दवाओं की कमी
सेंटर में एक कैंसर पीड़ित अपने इलाज के इंतजार में है, लेकिन यमन में दवाओं की कमी है. सऊदी गठबंधन ने हवाई और जलमार्गों की निगरानी सख्त कर दी है, ताकि विद्रोहियों को हथियार न पहुंचाए जा सकें. लेकिन इससे दवाओं की सप्लाई भी प्रभावित हुई है.
डॉक्टरों की किल्लत
साल के अली हजाम मुंह के कैंसर से पीड़ित हैं. एक राहत संस्था इनके जैसे मरीजों को रहने की जगह देती है. यमन के अस्पतालों में सिर्फ बिस्तरों की कमी ही नहीं है, बल्कि डॉक्टर भी बहुत कम हैं. ऊपर से गरीब लोगों के इलाज का खर्च उठाना भी बहुत मुश्किल होता है.
मानवीय त्रासदी
14 साल की आमना मोहसिन कैंसर पीड़ितों को रहने के लिए दिए गए एक मकान में खड़ी है. यमन में लाखों लोग भूख और बीमारियों से जूझ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि यह लड़ाई अब तक 50 हजार से ज्यादा लोगों को निगल गई है.