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इतिहासजर्मनी

6 साल बाद सुलझी 1,800 बरस पुराने कंकाल के ताबीज की पहेली

१३ दिसम्बर २०२४

कुछ साल पहले जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में करीब 1,800 साल पुराना एक कंकाल मिला, जिसके गले में एक ताबीज था. इसपर लिखी 18 पंक्तियों की एक पहेली बूझने में छह साल लगे. अब, जब वो लिखावट पढ़ ली गई, तो एक सनसनीखेज बात सामने आई है.

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फ्रैंकफर्ट सिल्वर इंस्क्रिप्शन की एक तस्वीर
यह ताबीज, आल्प्स पर्वत के उत्तर की ओर मिली ईसाई धर्म से संबंधित सबसे पुरानी खोज मानी जा रही हैतस्वीर: Denkmalamt der Stadt Frankfurt am Main/Michael Obst/Archäologisches Museum Frankfurt

साल 2018 की बात है, जब जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में खुदाई के दौरान एक इंसान का कंकाल मिला. इसे तीसरी शताब्दी में, सन् 230 से 270 के बीच कभी दफनाया गया होगा. कंकाल की गरदन के हिस्से पर एक बड़ा पुराना ताबीज था, मात्र 3.5 सेंटीमीटर आकार का. इसमें चांदी की एक पतली तहनुमा परत पर 18 पंक्तियों में कुछ लिखा था. लिखावट क्या थी, बड़ी गिचपिच सी एक पहेली थी जो समझ ही नहीं आ रही थी. इसे नाम दिया गया: फ्रैंकफर्ट इंस्क्रिप्शन.

फ्रैंकफर्ट में मिला सिल्वर इंस्क्रिप्शन
फ्रैंकफर्ट में मिला ताबीज इस मायने में भी अनूठा है कि यह पूरी तरह लैटिन में लिखा हैतस्वीर: Leibniz-Institut für Archäologie in Mainz (LEIZA)/Archäologisches Museum Frankfurt

"होली! होली! होली!"

अब जाकर पता चला कि वो प्राचीन कंकाल ऐसे इंसान का है, जो बिना संदेह एक ईसाई श्रद्धालु था. तकनीक की मदद से लिखावट को भी बूझ लिया गया है. लैटिन भाषा में लिखी 18 पंक्तियों में ईसा मसीह की तारीफ की गई है, जिसमें ये शब्द शामिल हैं, "होली! होली! होली!"

फ्रैंकफर्ट के मेयर माइक योसेफ ने इस खोज को "सनसनीखेज" बताया है. उन्होंने कहा, "फ्रैंकफर्ट इंस्क्रिप्शन एक वैज्ञानिक सनसनी है. यह हमें फ्रैंकफर्ट में ईसाई धर्म के इतिहास को पीछे ले जाने पर मजबूर करेगा, करीब 50 से 100 साल पहले तक."

मार्कुस शॉल्त्स, फ्रैंकफर्ट की गोएठे यूनिवर्सिटी में पुरातत्व के प्रोफेसर हैं. जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए से बातचीत में उन्होंने बताया कि यह ताबीज, आल्प्स पर्वत के उत्तर की ओर मिली ईसाई धर्म से संबंधित सबसे पुरानी खोज है.

जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में मिला तीसरी शताब्दी के इंस्क्रिप्शन की एक तस्वीर
लैटिन भाषा में लिखी 18 पंक्तियों में ईसा मसीह की तारीफ की गई है, जिसमें ये शब्द शामिल हैं, "होली! होली! होली!"तस्वीर: Prof. Dr. Markus Scholz/Archäologisches Museum Frankfurt

रोमन काल के एक शहर पर बसा है फ्रैंकफर्ट

आज का फ्रैंकफर्ट, रोमन काल के नीडा शहर के अवशेषों पर बसा है. यहां मिला  प्राचीन कंकाल तीसरी शताब्दी का है. माना जाता है कि इस कालखंड में क्रिश्चियन धर्म मानने वाले लोगों पर उत्पीड़न का जोखिम था. खुद को जाहिरी तौर पर ईसाई बताना काफी जोखिम की बात थी क्योंकि धार्मिक उत्पीड़न के कारण जान तक जा सकती थी.

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इस तथ्य के मद्देनजर प्रोफेसर शॉल्त्स कहते हैं, "लेकिन, फ्रैंकफर्ट में रहने वाले एक इंसान को अपना धार्मिक विश्वास इतना अहम लगा कि वह इसे अपनी कब्र में भी साथ ले गया." जर्मन अखबार 'डॉयचलैंडफुंक' ने प्रोफेसर मार्कुस शॉल्त्स के हवाले से बताया कि ऐसे ताबीजों को 'फिलेक्टरीज' कहा जाता था. मान्यता थी कि ये पहनने वाले की रक्षा करते हैं.

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"द येरुशलम पोस्ट" की खबर के अनुसार, ताबीज के भीतर मिला चांदी का फॉइल इतना नाजुक था कि खोलने भर से इसके बिखरने की आशंका थी. शोधकर्ताओं ने जर्मनी के 'लाइबनित्स सेंटर फॉर आर्कियोलॉजी' से मदद मांगी. यहां विशेषज्ञों ने  कंप्यूटर टोमोग्रैफी की नई और उन्नत तकनीक से इसे वर्चुअली खोला और फिर लिपि को पढ़ा गया.

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कई तरह से अनूठा है फ्रैंकफर्ट इंस्क्रिप्शन

प्रोफेसर मार्कुस शॉल्त्स ने जर्मन समाचार वेबसाइट 'टी ऑनलाइन' को बताया कि इंस्क्रिप्शन की शुरुआत संत टाइटस से की गई है, जो कि शुरुआती दौर के एक क्रिश्चियन मिशनरी और प्रारंभिक चर्च के एक प्रमुख लीडर थे. वह पेगन थे और फिर धर्मपरिवर्तन करके ईसाई बने थे. प्रोफेसर शॉल्त्स यह भी बताते हैं कि ऐसे ताबीज आमतौर पर अलग-अलग ईश्वरों से मुखातिब होते थे और लिपियां भी अलग-अलग इस्तेमाल की जाती थीं.

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फ्रैंकफर्ट में मिला ताबीज इस मायने में भी अनूठा है कि यह पूरी तरह लैटिन में लिखा है. इस पर प्रोफेसर शॉल्त्स ने टी-ऑनलाइन को बताया, "यह उस दौर के हिसाब से बहुत असामान्य है. आमतौर पर ताबीजों में ऐसे लेख ग्रीक या हिब्रु में लिखे जाते थे."

प्रोफेसर शॉल्त्स यह भी बताते हैं कि इसमें लिखने का तरीका और शब्द भी बेहद जटिल है. इन्स्क्रिप्शन में यह भी खास है कि इसमें ईसाई धर्म को छोड़कर किसी भी अन्य धर्म या धार्मिक मान्यता का जिक्र नहीं है. आमतौर पर 5वीं  शताब्दी तक के ऐसे मूल्यवान धातु से बने ताबीजों में हमेशा कई धार्मिक मतों का जिक्र होता है.

जर्मन अखबार 'स्टड्ट फ्रैंकफुर्ट अम माइन' ने शहर की संस्कृति व विज्ञान प्रमुख डॉक्टर ईना हार्तविश से बात की. उन्होंने भी इस खोज को "बहुत अभूतपूर्व" बताते हुए कहा, "यह असाधारण खोज रिसर्च के कई पक्षों पर असर डालेगी और काफी लंबे वक्त तक वैज्ञानिकों को व्यस्त रखेगी. यह ना केवल पुरातत्व, बल्कि धर्म संबंधी अध्ययनों, भाषा शास्त्र और मानव विज्ञान से भी जुड़ा है. फ्रैंकफर्ट में इतनी अहम खोज होना सचमुच बहुत अनोखी बात है."

एसएम/वीके (डीपीए)