महिलाओं के लिए क्या हासिल कर पाईं अंगेला मैर्केल
२७ सितम्बर २०२१2005 में जब अंगेला मैर्केल जर्मनी की पहली महिला चांसलर बनी थीं, तो उन्होंने पूछा था, "किसने सोचा था कि देश का सबसे बड़ा पद इस साल एक महिला को मिलेगा?”
अब 16 साल बाद, पूरी एक पीढ़ी है जो उनके अलावा किसी और को चांसलर के तौर पर जानती ही नहीं है. 2018 में उन्होंने मजाक में कहा था, "मैंने सुना है कि ऐसे सवाल भी पूछे जाते हैं कि कोई पुरुष भी इस पद पर बैठ सकता है या नहीं. यह सच है, मैं बना नहीं रही हूं.”
पूर्वी जर्मनी में पली बढ़ीं अंगेला मैर्केल एक शिक्षक मां और प्रोटेस्टेंट पादरी की बेटी हैं. उन्होंने फिजिक्स में पीएचडी की है और दो बार नोबेल पुरस्कार जीतने वालीं एकमात्र महिला मैरी क्यूरी उनकी आदर्श हैं. जब वह सफलता के पायदान चढ़ रही थीं, तब उन्हें अक्सर कम करके आंका गया. उनकी अपनी पार्टी सीडीयू में उनके सहयोगियों के जरिए भी.
मैर्केल की जीवनी लिखने वालीं जैकलीन बॉयसेन कहती हैं कि बर्लिन की दीवार के गिरने के बाद जब उन्होंने अपना राजनीतिक करियर शुरू किया, तो पूर्वी जर्मनी से आई एक तलाकशुदा महिला जिसका कोई बच्चा नहीं था, उस माहौल में एकदम बाहरी थीं. वही ‘बाहरी महिला' बाद में जर्मनी की पहली महिला चांसलर तक बनीं, और दुनिया की सबसे ताकतवर महिला भी.
मैर्केल, लिंगवाद और पुरुष
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मैर्केल को कई ऐसे पुरुषों से मुकाबला करना था जो आक्रामक थे. कैमरे के सामने इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बैर्लुस्कोनी ने उन्हें इंतजार करवाया, ये कहकर कि एक ‘जरूरी' फोन आ गया था.
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन जब उनसे मिलने आए तो अपने साथ एक विशाल कुत्ता लेकर आए, जिसे बांधा तक नहीं गया था. जबकि वह इस बात से वाकिफ थे कि मैर्केल को कुत्तों से डर लगता है. और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डबल्यू बुश ने उनकी सहमति के बिना उनके कंधे मसल दिए थे.
बाद में महिलाओं ने मैर्केल की इस बात के लिए तारीफ की कि वह बहुत सधे हुए तरीके से पुरुषवाद को संभालती हैं. 2017 की जी20 बैठक में रूसी राष्ट्रपति के साथ बातचीत करते हुए जैसे उन्होंने आंखें घुमाई थीं, वह खूब चर्चित हुआ था.
बॉयसन कहती हैं, "मैर्केल ने एक पुरुषवादी महौल में अधिकार जताना सीखा. कई बार इसके लिए उन्होंने महिला होने का भी हक जताया. लेकिन महिलाओं के लिए उन्होंने कभी खुद को एक असली योद्धा नहीं बनाया.”
मैर्केल जब महिला मामलों की मंत्री थीं, तब भी उन्हें महिलाओं के लिए समानता की नीतियां लागू करवाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जैकलीन बॉयसन के मुताबिक ऐसा इसलिए था क्योंकि वह "पुरुषों द्वारा चुनी जाना चाहती थीं.”
उन्होंने खुद को ‘नारीवादी' कहने में भी खासा वक्त लगा दिया. बड़ी कंपनियों में महिलाओं के लिए मैनेजमेंट कोटा लागू करने की मांग भी वह बरसों तक खारिज करती रहीं. वह ऐसी नीतियों की प्रवर्तक हैं जिनमें सरकार का दखल कम से कम हो और उम्मीद करती रहीं कि कंपनियां अपने आप ज्यादा महिलाओं को मैनेजमेंट की भूमिकाओं में लाएंगी, जो नहीं हुआ. और आखिरकार 2020 में कानूनी बदलाव करना पड़ा.
इसके रास्ते में आईं मुश्किलों के बारे में बात करते हुए मैर्केल ने कहा था, "जब 1990 के दशक में मैंने राजनीति में प्रवेश किया था तब मैं ईमानदारी से मानती थी कि ऐसा करना आसान होगा.”
रणनीति बनाम नीति
इस सबके पीछे एक नीति है. सत्ता में रहने के लिए मैर्केल को अपनी पार्टी का समर्थन चाहिए था. और उनकी दक्षिणपंथी रूढ़िवादी पार्टी अक्सर महिलावादी एजेंडे से कोसों दूर थी. पूर्वी जर्मनी में पली-बढ़ीं मैर्केल का लिए महिलाओं को बाहर जाना, काम करना कुछ अनूठा नहीं था. लेकिन उनकी पार्टी में परिवार का पारंपरिक ढांचा दशकों से चला आ रहा था, यानी एक ऐसी संरचना जिसमें पिता बाहर जाते हैं, धन कमाते हैं और माता बच्चों को संभालने के लिए घर में रहती हैं.
मैर्केल के 16 साल लंबे कार्यकाल के दौरान कई ऐसे कानून पास हुए जिन्होंने परिवार की आधुनिक संरचना में योगदान दिया. मसलन, मातृ अवकाश और वित्तीय सहायता लागू की गई. देशभर में डे-केयर खोले जा रहे हैं और एक नया नियम लागू किया गया है जिसके तहत युवा माताओं के लिए मातृत्व अवकाश के बाद काम पर लौटना आसान होगा.
तस्वीरेंः मैर्केल सामने बदली राजनीति
पर क्या यह सब सफल रहा है? डे-केयर में ज्यादा बच्चों की जगह उपबल्ध कराने के लिए अरबों निवेश किए गए हैं लेकिन लाखों बच्चों को अब भी जगह नहीं मिल पाई है. अब भी यही होता है कि ज्यादातर महिलाओं को ही बच्चों की खातिर अपना करियर छोड़ना पड़ता है. जर्मनी लगभग आधी महिलाएं पार्ट टाइम काम करती हैं. हालांकि ज्यादा संख्या में पुरुष अब पितृत्व अवकाश ले रहे हैं, लेकिन इसकी अवधि महिलाओं से कम होती है.
ग्रीन पार्टी की सांसद फ्रांत्सिस्का ब्रैंटनर ने डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि मैर्केल जर्मनी की पहली महिला चांसलर थीं और उनके पास इतनी ताकत थी कि वह बहुत कुछ कर सकती थीं, और उन्हें करना चाहिए था.
ब्रैंटनर कहती हैं, "महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध लड़ाई, शेल्टर बनाने के लिए धन. महिलाओं के असमान वेतन के खिलाफ संघर्ष, कॉरपोरेट बोर्ड्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व, गरीबी में जीते परिवार और बच्चों के लिए संघर्ष... बहुत कुछ ऐसा था जो वो कर सकती थीं.”
महिला सलाहकारों की टीम
यह भी सच है कि मैर्केल के वक्त में ज्यादा महिलाओं ने जर्मन सरकार में उच्च पद हासिल किए. रक्षा मंत्रालय में कई बार महिलाएं रहीं. मैर्केल की कई करीबी सलाहकार भी महिलाएं थीं.
चांसलरी में राज्य स्तर की चार महिला मंत्री हैं. उनमें से एक कंजर्वेटिव नेता डोरोथी बार हैं, जो अपनी बॉस के बारे में कहती हैं, "रोज तो उन्होंने महिला मुद्दों और महिला अधिकारों पर बात नहीं की, लेकिन जब भी बात की तब उनकी बात सुनी गई.”
तस्वीरेंः कवर गर्ल मैर्केल
विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि महिलाओं के मामले में मैर्केल की विरासत बहुत जटिल है. बहुत कुछ इसलिए बदला होगा क्योंकि मैर्केल ही सर्वोच्च पद पर थीं. जैसे कि परिवार से जुड़ी कई नीतियां उनके राज में आईं. कुछ चीजें मैर्केल की नीतियों के बावजूद बदल होंगी. जैसे कि एलजीबीटीक्यू लोगों के विवाह अधिकार के समर्थन में मैर्केल 2017 में बोली थीं और आखिरकार जर्मनी में कानूनी बदलाव भी हुआ. दुनिया के बहुत से देशों की तरह जर्मनी ने भी अब तक बहुत से मायनों में लैंगिक समानता हासिल नहीं की है.
मैर्केल की सबसे बड़ी विरासत शायद उनका यह साबित कर पाना था कि एक महिला इतने सारे संकटों के दौरान देश का सफलतापूर्वक नेतृत्व कर सकती है. 2018 में उन्होंने कहा था, "आज अगर कोई लड़की कहती है कि वह मंत्री या चांसलर बनना चाहती है तो कोई उस पर हंसता नहीं है.” यह सच है कि आज दुनियाभर में वह बहुत सी महिलाओं की आदर्श हैं.
रिपोर्टः जनीना सेमेनोवा, ओक्साना इवडोकिमोवा