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समाज

बंद कर देने से क्या नहीं रहेगा पाताल लोक?

शिवप्रसाद जोशी
२८ मई २०२०

पाताल लोक वेब सीरीज ने लोकप्रियता में कई मशहूर सीरीज को पीछे छोड़ दिया है और लगता है कि विवादों के मामले में भी नंबर वन रहने वाली है. सीरीज पर मानहानि करने, जातिगत और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/7xim.gs

मशहूर फिल्म अभिनेत्री और फिल्म निर्माता अनुष्का शर्मा की निर्माण कंपनी क्लीन स्लेट की ओर से एमेजॉन प्राइम पर पिछले दिनों रिलीज हुई वेब सीरीज पाताल लोक जर्बदस्त हिट हो चुकी है. सीरीज को मिल रहे व्यूज से अंदाजा लग रहा है कि इसे बड़े पैमाने पर देखा जा रहा है और युवा दर्शक इसे खासतौर पर पसंद कर रहे हैं. कुछ व्यक्तियों, नेताओं, सामुदायिक और धार्मिक संगठनों की ओर से पुलिस के पास सीरीज को बंद करने या बदलाव करने की मांग और शिकायतें आने लगी हैं लेकिन निर्माताओं की ओर से इस बारे में अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. सीरीज का विरोध करने वालों में एक सांसद और एक विधायक भी हैं.

वृहद् हिंदी पट्टी में भाषा, जाति, धर्म और यौनिकता से लेकर नौकरशाही, पुलिस, मीडिया, राजनीति और इन सबसे गुंथे हुए एक बड़े पॉलिटिक्ल और सोशल सिस्टम के अंधेरों-उजालों, नाइंसाफियों और यातनाओं और आत्मसंघर्षों की छानबीन करती ये सीरीज अपने कलाकारों के सशक्त अभिनय और बतौर निर्माता अनुष्का शर्मा के साहसिक कदम के लिए भी याद की जा रही है. सीरीज पुलिस सिस्टम की अंदरूनी विसंगतियों और विद्रूपों को उभारते हुए व्यापक सामाजिक संकटों की शिनाख्त करती है. वहां दलित चेतना के उभार से जुड़ी चुनौतियों की तलाश भी की गई है जिसकी झलक हाल में आए चमार पॉप और दलित रैप या दलित बैंड जैसी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में देखी जा सकती है और पूर्वोत्तर की नागरिक व्यथा की भी.

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फिल्म निर्माता के रूप में अनुष्का शर्मा का पहली बार भीषण ट्रोलिंग के पाताल से सामना हुआ है.तस्वीर: Getty Images/AFP

हिंदू और मुसलमान, अपमान की शब्दावली और हम और वे वाली मानसिकता से भी सीरीज में सामना कराती है और कई ऐसे सवाल छोड़ती है जो दर्शक को सोचने पर विवश करते हैं. समाज में अंतर्निहित सौतेले व्यवहार का मुकाबला नागरिक विवेक और धैर्य से करते रहने के कठिन इम्तहान से गुजरता किरदार हमारे सामने लगातार कुछ सवाल भी छोड़ता जाता है. सीरीज की नौ कड़ियों में पात्रों का समावेश कुछ इस तरह है कि वो जो पाताल लोक की दुर्दशा के कथानक को अपनी अपनी निराशाओं, पराजयों और लालसाओं के जरिए ठोस जमीन मुहैया करा देते हैं. हालांकि सीरीज अपने पहले सीजन के अंत तक पहुंचते पहुंचते कुछ जानी पहचानी कमजोरियों का शिकार भी होती है और अपने उन चार पात्रों को सहसा भुला देती है जिनसे ये सीजन खुलता है, पाताल लोक के भयावह अंधेरों का सामना करती स्त्री पात्रों की और भूमिकाएं खोलने की जरूरत भी इस सीजन को थी.

वैसे पाताल लोक के बहाने इस बात पर भी मुहर लग गई है कि कंटेंट अगर दर्शकों को लुभा जाए तो वीडियो स्ट्रीमिंग सेवाएं एक नया दृश्य अनुभव बना सकती हैं लेकिन अगर कंटेंट कमजोर या सुस्त है तो ये प्लेटफॉर्म उतना ही चुनौतीपूर्ण भी बन जाता है. और सवाल सिर्फ वेब पर लंबे समय तक टिके रहने का ही नहीं है. सवाल यूजर की पसंद को दूर तक खींच ले जाने वाले कौशल का भी है. इस मामले में पाताल लोक एक सफल आकर्षण साबित हुई है. लेकिन इस सफलता के साथ कुछ सवाल भी हैं. एक तो ये सवाल कि दूसरा सीजन आएगा या नहीं और आएगा तो कब तक. इसे लेकर निर्माताओं और स्ट्रीमिंग सेवा पर भी दबाव रहता है. दूसरे सीजन से जुड़ी अपनी कई तरह की समस्याएं हैं, कहानी, प्लॉट, किरदार, लॉजिस्टिक्स, समय और संसाधन. खैर, ये समस्याएं सुलझ भी जाएं तो एक तीसरी मुश्किल बनी रहती है और वो है सीरीज की कहानी से जुड़े विवाद की.

दर्शक भले ही मंत्रमुग्ध हैं लेकिन सीरीज पर हिंदूद्वेषी होने का आरोप लगा है. ट्विटर आदि सोशल मीडिया नेटवर्किंग प्लेटफॉर्मों पर ट्रोल्स की भरमार देखी जा रही है. आरोप लगाया गया है कि हिंदुओं, सिखों और गोरखों की भावनाओ का अपमान किया गया है और इस तरह सांप्रदायिक, जातीय और नस्ली सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश की गई है. यूपी के एक बीजेपी विधायक का आरोप है कि जिस फोटो को कथित रूप से मॉर्फ कर सीरीज में इस्तेमाल किया गया, उसमें वे दिख रहे हैं और उनकी मानहानि हुई है और जिस गुर्जर जाति से वे आते हैं, उसका भी अपमान हुआ है. हिंदू धर्म के कथित अपमान पर भी उन्होंने अनुष्का शर्मा के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. और तो और, मीडिया में उनके एक बयान ने खासा ध्यान खींचा जिसमें वे कथित तौर पर ये सलाह देते हुए पाए गए कि विराट कोहली को अनुष्का शर्मा से तलाक ले लेना चाहिए!

इसी तरह दिल्ली के एक सिख संगठन के पदाधिकारी ने सिख पात्र को खराब ढंग से चित्रित करने का आरोप लगाया है. गोरखा समुदाय के एक अधिवक्ता ने भी अनुष्का शर्मा के खिलाफ रिपोर्ट कराते हुए सीरीज पर आरोप लगाया है कि नेपाली शब्द के साथ गाली का इस्तेमाल कर समुदाय का अपमान हुआ है. सिक्किम के सांसद इंद्राहुंग सुब्बा ने भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय से शिकायत की है.

इन तमाम शिकायतों पर क्या कार्रवाई होगी या निरस्त कर दी जाएंगी? हो सकता है कि इस मामले को और तूल देने की कोशिश की जाए. वैसे कट्टरपंथी संगठनों की ओर से प्रतिबंध लगाने जैसी मांगें नई नहीं है. इस विवाद से पहले ही पाताल लोक अपना काम कर चुकी है. और इसे हाल के वर्षों की श्रेष्ठतम वेब सीरीज में गिना जाने लगा है. समीक्षकों के मुताबिक नेटफ्लिक्स की चर्चित सेक्रड गेम्स सीरीज से भी इसने बाजी मार ली है. यहां तक कि इसकी तुलना विश्वविख्यात मनी हाइस्ट सीरीज से भी की जाने लगी है. फिल्मकार अनुराग कश्यप ने पाताल लोक की दिल खोलकर तारीफ करते हुए कहा है कि देश में निर्मित ये अब तक का सर्वश्रेष्ठ क्राइम थ्रिलर है और वास्तविक भारत की शिनाख्त कर पाने की वजह से ऐसा हुआ है. मनोज वाजपेयी और आलिया भट्ट जैसे बहुत से सितारों ने भी सीरीज को मानीखेज बताया है.

डिसक्लेमर के रूप में सीरीज कहती है कि ये काल्पनिक कथा है और इसका किसी जीवित व्यक्ति, वस्तु, संगठन या स्थान या धर्म या जाति या संप्रदाय से कोई वास्ता नहीं है और न ही किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का इरादा है. इस डिसक्लेमर के बाद जातिगत या धार्मिक आधार पर विरोध करने वालों या इसे हिंदू बनाम मुस्लिम का मुद्दा बनाने की कोशिश करने वालों की कार्रवाइयां कितनी देर टिकी रह पाती हैं, ये भी देखना चाहिए क्योंकि समकालीन समय के अनुभव तो बताते हैं कि बात सेक्रड गेम्स की हो या पाताल लोक की, सोशल मीडिया दौर में विवाद इतना आसानी से पीछा नहीं छोड़ते.

फिल्म निर्माता के रूप में अनुष्का शर्मा का पहली बार भीषण ट्रोलिंग, निंदा और अनर्गल टिप्पणियों के पाताल से सामना हुआ है. उनके लिए भी ये एक बड़ा इम्तहान होगा. उनके चाहने वालों ने वैसे उनके ही मीम्स के जरिए उनकी हौसलाअफजाई तो कर दी है, जहां स्वर्ग, धरती और पाताल तीनों भागों में उनके निभाए चर्चित अभिनयों की तस्वीरें लगाई गई हैं. कथित तीनों लोकों के उनके चित्रों में एक समानता है और वो ये कि वो निर्भीक और आत्मविश्वास से भरी नजर आती हैं.

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