क्या भारत का भी हो सकता है श्रीलंका जैसा हाल?
१९ जुलाई २०२२प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 जुलाई को झारखंड के देवघर में बीजेपी की एक रैली के दौरान दिए भाषण में कहा कि आजादी के बाद से आज तक सत्ता में रहने वाली पार्टियों ने देश में वोट पाने के लिए लोक लुभावने वादे कर 'शॉर्ट कट' की राजनीति की है.
मोदी ने आगे कहा कि 'शॉर्ट कट' की राजनीति से 'शॉर्ट सर्किट' हो सकता है और लोगों को इस तरह की राजनीति से दूर रहने के लिए कहा. 16 जुलाई को प्रधानमंत्री ने एक बार फिर इसी मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए बुंदेलखंड के जालौन में कहा कि लोगों को वोट लेने के लिए 'रेवड़ी' बांटने की राजनीति करने वालों से बच कर रहना चाहिए.
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कई समीक्षकों ने अंदाजा लगाया है कि मोदी ने इन बयानों में श्रीलंका को नाम तो नहीं लिया लेकिन वो इस समय अपने सबसे बुरे आर्थिक-राजनीतिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका का ही उदाहरण देना चाह रहे थे.
इस वजह से भारत और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना की जा रही है और आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं निकट भविष्य में भारत की हालत भी श्रीलंका जैसी न हो जाए. इसके लिए सबसे पहले तो दोनों अर्थव्यवस्थाओं को समझना होगा.
श्रीलंका से तीस गुना ज्यादा जीडीपी
श्रीलंका की आबादी करीब दो करोड़ है, यानी दिल्ली की आबादी से भी कम. विश्व बैंक के मुताबिक 2021 में श्रीलंका की जीडीपी थी 84.52 अरब डॉलर जब कि भारत की जीडीपी थी 3,170 अरब डॉलर, यानी श्रीलंका से तीस गुना से भी ज्यादा.
यह बात सही है कि अर्थव्यवस्था का आकार उसे दिवालिया हो जाने से बचाने की गारंटी नहीं दे सकता. उसके लिए अर्थव्यवस्था के कुछ मानदंडों को देखना पड़ता है, जैसे जीडीपी के बढ़ने की दर, बेरोजगारी दर, महंगाई दर, विदेश से कितना ऋण लिया हुआ है, ऋण का जीडीपी से क्या अनुपात है आदि.
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इसके अलावा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले स्थानीय मुद्रा कितनी मजबूत है, सरकार के पास विदेशी मुद्रा का भंडार कितना है जैसे मानदंडों से भी अर्थव्यवस्थाओं की हालत का पता लगाया जा सकता है.
श्रीलंका के मौजूदा संकट के पीछे कई कारण हैं. पिछले कई सालों से यह देश कई आर्थिक संकटों से गुजर रहा था, लेकिन 2019 में ईस्टर पर हुए बम धमाकों ने एक बड़ा झटका दिया. पर्यटन श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हुआ करता था और धमाकों के बाद सुरक्षा की चिंताओं की वजह से पर्यटकों का आना काफी कम हो गया.
कई बुरे आर्थिक फैसले
इससे देश की कमाई और विशेष रूप से विदेशी मुद्रा की कमाई के सबसे बड़े स्रोत को चोट पहुंची. कई बड़ी परियोजनाओं को बनाने के लिए गए विदेशी कर्ज का बोझ उठाने के लिए सरकार को कमाई की बेहद जरूरत थी लेकिन ऐसे समय में तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने देश के इतिहास में सबसे बड़ी टैक्स छूट लागू कर दी.
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इससे सरकार की कमाई और गिर गई. उसके बाद कोविड-19 महामारी और तालाबंदी के कारण एक बार फिर पर्यटन ठप पड़ गया. फिर अप्रैल 2021 में राजपक्षे ने रासायनिक खाद के आयात पर बैन लगा दिया. किसानों से उम्मीद थी कि वो आर्गेनिक खेती की तरफ बढ़ेंगे लेकिन अचानक लागू किए गए इस कदम ने उन्हें चौंका दिया.
इसके लिए तैयारी ना होने की वजह से वो लड़खड़ा गए और धान की फसल को भारी नुकसान पहुंचा. इसके बाद धान के और खाने पीने की अन्य चीजों के दाम बढ़ गए. फिर यूक्रेन युद्ध की वजह से खाने पीने की चीजों और तेल के दाम और बढ़ गए.
श्रीलंका का आयात खर्च लगातार बढ़ता ही गया और अंत में विदेशी कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त धन नहीं बचा. इसके बाद देश ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. जून 2022 में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने घोषणा कर दी कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था ढह चुकी है.
क्या भारत भी उसी ओर बढ़ रहा है
भारत के मौजूदा आर्थिक हालात को देख कर कुछ लोग कह रहे हैं कि भारत भी श्रीलंका की ही राह पर बढ़ रहा है. लेकिन विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं है.
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दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच अंतर को रेखांकित करते हुए अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने बताया कि जहां भारत ऊर्जा और कुछ हाई-टेक चीजें छोड़ कर जरूरत की अधिकांश चीजों का उत्पादन खुद करता है, वहीं श्रीलंका कभी भी आत्म-निर्भर हो ही नहीं सकता.
कुमार ने बताया कि इसीलिए श्रीलंका को आयात के लिए बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत होती है. उन्होंने आगे बताया कि जहां श्रीलंका में खाद्यान्न का संकट पैदा हो गया था, वहीं भारत के पास जरूरत से ज्यादा अनाज का भंडार है.
भारत में तेल की कमी जरूर है लेकिन उसका आयात करने के लिए उसके पास करीब 10 महीनों का विदेशी मुद्रा भंडार है, जबकि श्रीलंका के पास एक दिन के खर्च के लिए भी यह भंडार नहीं बचा था. भारत की कमियों को स्वीकार करते हुए कुमार ने कहा कि देश में बजटीय घाटा बढ़ा हुआ है लेकिन उन्होंने बताया कि वो भी आपातकाल जैसी स्थिति में नहीं पहुंचा है.
भारत की अपनी कमजोरियां भी हैं
हांलांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत भी कई आर्थिक संकटों से गुजर रहा है जिन पर ध्यान देने की जरूरत है. अर्थशास्त्री आमिर उल्ला खान ने बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था तो बिल्कुल भी श्रीलंका के जैसी नहीं है लेकिन राजनीति जरूर श्रीलंका की राजनीति की तरह हो रही है.
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खान कहते हैं कि इस समय भारत की नीति काफी अन्तरोन्मुख और वैश्वीकरण विरोधी होती जा रही है. ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार श्रीलंका जितना कम तो नहीं हुआ है लेकिन आयात खर्च के लगातार बढ़ने और निर्यात के गिरने से भंडार तेजी से कम हो रहा है.
डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत भी गिर रही है और खान कहते हैं कि ऐसे में भारत से निर्यात बढ़ना चाहिए था लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति भी चिंताजनक है.