जर्मनी में क्यों बढ़ रही हैं विनाशकारी बाढ़ की घटनाएं
७ जून २०२४जर्मनी के दक्षिणी इलाकों में लोगों को मजबूरन अपने घर खाली करने पड़े हैं और कई जगहों पर आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई है. बीते सप्ताह इस क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई है.
दरअसल, यहां पिछले कई दिनों से मूसलधार बारिश हो रही थी. शुरुआती आकलन से पता चलता है कि कुछ स्थानों पर 24 घंटे में पूरे महीने के औसत से ज्यादा बारिश हुई. कई नदियां और नाले उफान पर हैं, जिससे कई शहर और गांव जलमग्न हो गए. खास तौर पर, बवेरिया और बाडेन बुटेमबर्ग राज्य इससे काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं.
यह घटना देश के पश्चिमी भाग की आर घाटी में 2021 में आई भयावह बाढ़ के तीन वर्ष बाद घटी है. उस समय बाढ़ की वजह से 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और अरबों यूरो का नुकसान हुआ था.
क्या जर्मनी में बदतर हो रही है बाढ़ की स्थिति
पूर्वी जर्मनी स्थित लाइपजिग यूनिवर्सिटी में मौसम वैज्ञानिक योहानस क्वास कहते हैं कि जर्मनी में लगातार बाढ़ नहीं आ रही है, लेकिन जब भी बाढ़ आती है, वह काफी ज्यादा विनाशकारी होती है. जर्मन मौसम सेवा के मुताबिक, 1881 के बाद से जर्मनी में सालाना होने वाली औसत बारिश में आठ फीसदी का इजाफा हुआ है. भविष्य में इसमें और छह फीसदी की वृद्धि का अनुमान है.
क्वास का कहना है कि जर्मनी में पिछले 100 सालों के दौरान भारी बारिश होने की दर काफी ज्यादा बढ़ गई है. 19वीं सदी के मुकाबले अब मूसलधार बारिश 15 फीसदी ज्यादा हो रही है. करीब 40 साल पहले से तुलना करें, तो यह वृद्धि अब 10 फीसदी ज्यादा है. सिर्फ पिछले साल ही जर्मनी में औसत बारिश 1991-2020 में हुई औसत बारिश की तुलना में 20 फीसदी ज्यादा थी.
सबसे अहम बात है कि बदलाव सिर्फ जर्मनी तक सीमित नहीं है. यूरोपीय संघ के अर्थ ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम कॉपरनिकस के मुताबिक, पिछले साल यूरोप में औसतन सात फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी. इसकी वजह से यूरोप के कई इलाकों में बाढ़ आई और करीब 16 लाख लोग प्रभावित हुए थे.
2023 में यूरोप की एक तिहाई नदियों में पानी का बहाव 'खतरे' के निशान से ऊपर चला गया था और 16 फीसदी नदियों में पानी का बहाव खतरे के निशान से 'बहुत ज्यादा' ऊपर था. इसका मतलब है कि बाढ़ का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया था.
जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसा हो रहा है?
क्वास का मानना है कि जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाला जलवायु परिवर्तन, बाढ़ जैसी मौसमी घटनाओं को विनाशकारी बना रहा है. वह कहते हैं, "इसकी वजह यह है कि वातावरण में मौजूद नमी तापमान के साथ तेजी से बढ़ती है."
जैसे-जैसे हवा गर्म होती है, उसमें नमी को सोखने की क्षमता भी बढ़ती है. हर एक डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर हवा सात फीसदी ज्यादा नमी सोख सकती है. धरती गर्म होने की वजह से जमीन और समंदर से पानी तेजी से भाप बनकर उड़ रहा है. इसकी वजह से भारी बारिश और तेज आंधी-तूफान जैसे चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं.
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, जर्मनी का सालाना औसत तापमान दुनिया के औसत तापमान से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है. जर्मनी में पिछले सालों में औसत तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है.
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह का अध्ययन 2021 में प्रकाशित हुआ. इसके मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की वजह से 2021 की गर्मियों में जर्मनी, बेल्जियम और नीदरलैंड्स में आई भयानक बाढ़ का कारण बनी बारिश 3 से 19 फीसदी ज्यादा तेज थी. इतना ही नहीं, आमतौर पर होने वाली बारिश के मुकाबले ऐसी भारी बारिश होने की संभावना 1.2 से लेकर 9 गुना तक बढ़ गई है.
ऐसी बाढ़ से निपटने के लिए क्या करें?
जीगन यूनिवर्सिटी में टिकाऊ भवन और डिजाइन पर काम करने वाली सिविल इंजीनियरिंग प्रोफेसर लामिया मेसारी-बेकर का कहना है कि यह हकीकत है कि 2021 की बाढ़ के दौरान जर्मनी में काफी घर ढह गए थे. इसलिए हमें इमारतों का निर्माण इस तरह करने की जरूरत है कि वह बाढ़ के पानी का सामना कर सकें. भूकंप-रोधी डिजाइन की तरह यह भी महत्वपूर्ण है.
इमारतों को बाढ़ से निपटने लायक बनाने के लिए नींव की गहराई, संरचनात्मक डिजाइन और निर्माण सामग्री को चुनते समय खासतौर पर ध्यान देने की जरूरत है. मेसारी-बेकर बताती हैं, "हमें मजबूत बेसमेंट बनाना चाहिए, ताकि उसमें पानी भर सके और लोगों को जल्दी से सुरक्षित रूप से बाहर निकलने का मौका मिल सके. साथ ही, बाहरी दीवारों और छतों को भी मजबूत बनाने की जरूरत है."
लाइपजिग के हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर एनवॉयरमेंटल रिसर्च में पर्यावरणीय खतरों और चरम घटनाओं के विशेषज्ञ प्रोफेसर क्रिस्टियान कुहलिके ने डीडब्ल्यू को बताया कि दरवाजों और खिड़कियों को मजबूत बनाना चाहिए या ऐसी निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करना चाहिए, जो पानी को सोख ना सकें. इससे भी बाढ़ से बचाव में मदद मिल सकती है.
जर्मनी के शिक्षा और अनुसंधान मंत्रालय की ओर से वित्त पोषित एक परियोजना की सिफारिशों के मुताबिक, बाढ़ से बचाव के लिए कई अन्य तरीके भी अपनाए जा सकते हैं. जैसे, नदियों के किनारे खेल के मैदान और पार्क बनाकर पानी को फैलने की जगह देना, पुलों को मजबूत बनाना ताकि वे बाढ़ के दौरान आने वाले कचरे और मलबे के दबाव को बर्दाश्त कर सकें, बाढ़ आने की चेतावनी देने वाले सिस्टम को ज्यादा कारगर बनाना, ताकि लोग समय रहते सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें वगैरह.
इंपीरियल कॉलेज लंदन के ग्रांथम इंस्टिट्यूट क्लाइमेट चेंज एंड एनवॉयरमेंट में जलवायु विज्ञान की वरिष्ठ व्याख्याता फ्रेडरिक ओटो बताती हैं, "बाढ़ से बचाव के लिए सरकारों और नगर निकायों को पुराने तरीकों को ज्यादा मजबूत बनाने के साथ-साथ, बाढ़ से निपटने के लिए अन्य उपायों को लागू करने की जरूरत है. हालांकि, वातावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गैसों के उत्सर्जन को कम करना और जलवायु परिवर्तन को रोकना ज्यादा किफायती और सुरक्षित है, बजाय इसके कि सिर्फ बाढ़ के दुष्प्रभावों से बचने के उपाय किए जाएं."
बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने के लिए जब हम भविष्य की तैयारियों के बारे में सोचते हैं, तो क्वास जोर देते हैं कि यह जरूरी नहीं है कि हम इसे एक 'नए सामान्य घटनाक्रम' के तौर पर देखें. हम जिस मौसम का सामना कर रहे हैं, वह लगातार बदल रहा है और ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है.
वह कहते हैं, "जब तक हम कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो पर नहीं ले जाते, तब तक बचाव के ये उपाय पूरी तरह कारगर साबित नहीं होंगे, क्योंकि हमें और ज्यादा चरम होते मौसम के हिसाब से खुद को ढालना होगा."