भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर रहा कोविड
१८ जून २०२१दत्तात्रेय बगल ने पिछले महीने अपने खेत के पास नदी किनारे पिता की चिता को जलते हुए देखा. गन्ना किसान दत्तात्रेय और उनके भाई ने पिता को खोने का दुख अलग कर कोरोना के कारण परिवार पर आर्थिक बोझ का सामना करने की कोशिश में लगे हुए हैं. महाराष्ट्र के किसान भाइयों ने अपने छोटे से खेत के लिए ट्रैक्टर खरीदने की योजना बनाई थी. लेकिन भाइयों ने अपना सारा पैसा परिवार के सदस्यों के इलाज के लिए खर्च कर दिया.
परिवार के तीन और सदस्य इलाज के बाद बच गए. लेकिन पिता की मौत हो गई. पश्चिमी घाट के पास खेती करते हुए दत्तात्रेय कहते हैं, "अस्पताल का बिल 8,20,000 रुपये आया था. इतना ही नहीं हमारी पूरी बचत खत्म हो गई और हमें रिश्तेदारों से उधार लेने के लिए भी मजबूर होना पड़ा."
दत्तात्रेय खुद भी उस वक्त कोरोना से संक्रमित हो गए जब उनका पूरा परिवार इस बीमारी से जूझ रहा था. वे बताते हैं, "हमने अपने पिता को खो दिया और कर्ज भी लिया. कर्ज तो हम किसी तरह से दो से तीन साल में चुका देंगे. लेकिन निजी नुकसान जो हमें हुआ उसकी भरपाई नहीं हो सकती है."
भारत के विशाल सुदूर इलाकों में इस तरह के मामले बहुत आम हो गए हैं. कोरोना की दूसरी लहर, जो दो महीने पहले चरम पर थी, उसने ग्रामीण इलाकों को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है. संक्रमण को रोकने के लिए राज्य सरकारों द्वारा लगाया गया लॉकडाउन दर्द को और बढ़ाने का काम किया है. लेकिन इसी महीने मानसून आने से थोड़ी राहत की उम्मीद है. इस बार सामान्य बारिश होने का अनुमान है.
लॉकडाउन का प्रभाव
सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र के सांगली जिले के योगेश पाटिल जैसे कुछ किसान के पास बीज खरीदने के लिए पैसे तक नहीं हैं. गर्मी के मौसम में बोई जाने वाली फसलों के लिए वे बीज नहीं खरीद पाए. पाटिल ने कहा, "एक एकड़ जमीन पर टमाटर लगाकर मैं एक लाख रुपये से अधिक कमाने की कोशिश कर रहा था. लेकिन लॉकडाउन की वजह से कीमतें गिर गईं और मैं उत्पादन लागत की वसूली भी नहीं कर सका."
भारत की दो तिहाई से ज्यादा आबादी गांवों या छोटे शहरों में रहती है. और ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई है. इस तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था जो कुछ भी वापस उछाल मारती है तो उसमें कृषि क्षेत्र की बड़ी मदद देने की संभावना नहीं है. ग्रामीण परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं, वे कृषि उत्पादन के लिए खरीदारी नहीं कर पा रहे हैं. या फिर वे बाजार में पैसे खर्च नहीं कर पा रहे हैं.
महिंद्रा फाइनेंस के प्रबंध निदेशक रमेश अय्यर कहते हैं, "इस बार सीमांत इलाकों में भावनाएं बहुत कमजोर हैं और जिनके पास पैसे हैं वे खर्च करने के बजाय बचत करना चुन रहे हैं."
ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण की गति धीमी
ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस के प्रसार ने चिकित्सा के बुनियादी ढांचे की कमी को भी उजागर किया है और महामारी के प्रभाव को अभी भी आकलन किया जा रहा है. कोरोना जांच की संख्या और संक्रमितों की संख्या पर सवाल उठते आ रहे हैं. भारत का टीकाकरण अभियान भी बहुत धीमा है और संभावित तीसरी लहर की आशंका लोगों को आर्थिक दृष्टिकोण पर पूरा विश्वास नहीं दिला पा रही है.
एलएंडटी फाइनैशियल मैनेजमेंट में मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे कहती हैं, "ग्रामीण मांग और व्यवसायों को लेकर गंभीर चिंताएं हैं." महाराष्ट्र के एक और किसान गजानन पाटिल कहते हैं, "हम जुताई, बुवाई और उर्वरक लाने के लिए ट्रैक्टर किराए पर लेते हैं लेकिन डीजल के दाम रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं. जुताई का रेट भी 30 फीसदी तक बढ़ गया है. फसल को बाजार तक ले जाने का खर्च भी बढ़ गया है."
एए/सीके (रॉयटर्स)