हिटलर के कारण बदनाम हुआ स्वास्तिक कैसे उबरे
९ दिसम्बर २०२२शीतल देव हैरान रह गईं जब उन्हें क्वींस के अपार्टमेंट बिल्डिंग कॉपरेशन बोर्ड ने दिवाली की सजावट को "अपमानजनक" बताते हुए उसे हटाने की मांग की. पेश से डॉक्टर देव ने दिवाली की सजावट में "हैप्पी दिवाली" लिखा था और उसके साथ एक स्वास्तिक लगाया था.
भारत में सदियों से स्वास्तिक का निशान हिंदू, बौध और जैन धर्म के माने वालों के लिए शांति और अच्छे भविष्य के लिए एक पवित्र धार्मिक प्रतीक रहा है. ये लोग इस चिन्ह को इसी रूप में पूरी दुनिया में इस्तेमाल करते हैं. पश्चिमी देशों के लिए लेकिन यही निशान अडॉल्फ हिटलर के क्रॉस का है जो नफरत और होलोकॉस्ट की याद दिलाता नाजी जर्मनी के भयानक करतूतों की निशानी है. गोरे वर्चस्ववादी और नवनाजी आज भी इस निशान का इस्तेमाल कर डर और नफरत फैलाते हैं.
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दोनों निशानों में थोड़ा फर्क है लेकिन अकसर इसे लेकर पश्चिमी देशों में उलझन पैदा होती है. पिछले कुछ दशकों में उत्तरी अमेरिका एशियाई लोगों की तादाद तेजी से बढ़ी है इसके साथ ही पवित्र प्रतीक के रूप में स्वास्तिक के इस्तेमाल और इस पर दावेदारी भी बढ़ रही है. अमेरिका में इन अल्पसंख्यकों को उत्तरी अमेरिका के मूल लोगों का भी साथ मिल रहा है. इन मूल निवासियों के पूर्वज इस चिन्ह का इस्तेमाल उपचार के कुछ अनुष्ठानों में करते रहे हैं.
देव और उन जैसे लोगों का मानना है कि पवित्र निशानी की सिर्फ इसलिए बलि नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह उसके किसी बुरे संस्करण से मिलता जुलता है. देव ने कहा, "मेरे लिए यह अस्वीकार्य है." हालांकि फिर भी कुछ लोगों के लिए स्वास्तिक को बुरी यादों से मुक्त करने के बारे में सोचना कल्पना से परे है.
डराने वाला बुरा निशान
खासतौर से होलोकॉस्ट पीड़ित इसे देख कर एक बार फिर उस पीड़ा की अनुभूतियों में खो सकते हैं. जुइश फेडरेशंस ऑफ नॉर्थ अमेरिकाज सेंटर ऑन होलोकॉस्ट सर्वाइवर केयर की प्रबंध निदेशक शेल रूड वेर्निक का कहना है, "उस पीड़ा की एक निशानी यह है कि यह व्यक्ति के सुरक्षा के अहसास को मिटा देती है. स्वास्तिक एक पूरे समाज को खत्म कर देने के विचार का प्रतीक है." वेर्निक के दादा दादी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ऑस्ट्रिया में भटके हुए लोगों के एक शिविर में मिले थे. वेर्निक अपने दादा दादी के साथ ही और भी कई बुजुर्गों की सेवा करती हैं. उनका कहना है कि इन लोगों ने जो भयावह समय झेला, स्वास्तिक उसी का प्रतीक है. वह कहती हैं, "मैं स्वास्तिक को नफरत के एक प्रतीक के रूप में ही पहचानती हूं."
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न्यूयॉर्क में रहने वाले स्टीफन हेलर डिजाइन हिस्टोरियन और स्वास्तिकाः सिम्बल बेयॉन्ड रेडेम्पशन के लेखक हैं. उनका कहना है कि स्वास्तिक, "बहुत से लोगों के लिए एक आरोपित प्रतीक है जिनके बहुत से अपनों को आपराधिक और क्रूर तरीके से हत्या कर दी गई." हेलर की दादी मां होलोकॉस्ट में मारी गईं. उनका कहना है, "एक गुलाब का आप कुछ भी नाम रख दें, तो वो रहेगा गुलाब ही. आखिर में यह एक प्रतीक है जो दृश्य और भावनात्मक रूप में आपको प्रभावित करता है."
प्राचीन प्रतीक है स्वास्तिक
सदियों पुराना यह प्रतीक प्रागैतिहासिक काल से ही चला आ रहा है. "स्वास्तिक" शब्द का मतलब है, "अच्छे होने का प्रतीक." इसे प्राचीन धर्म ग्रंथ ऋग्वेद की प्रार्थनाओं में इस्तेमाल किया गया है. बौद्ध धर्म में यह "मांजी" का प्रतीक है जो बुद्ध के कदमों का अर्थ बतलाता है. इसे बौद्ध मंदिरों की जगह के प्रतीक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. चीन में इसे वान कहा जाता है और यह ब्रह्मांड या ईश्वर की अभिव्यक्ति या रचनाशीलता दिखता है. इसी तरह जैन धर्म में यह चार तरह के जन्म का प्रतीक है जो कोई आत्मा आखिर में जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त होने के पहले हासिल कर सकती है. जरतुष्ट यानी पारसी धर्म में यह चार मूल तत्वों जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी का प्रतीक है.
भारत में सिंदूर और हल्दी से बनाए ये प्रतीक चिन्ह दुकानों के दरवाजों, गाड़ियों, भोजन के पैकेटों से लेकर त्यौहारों और खास मौकों पर हर तरफ नजर आते हैं. दूसरी जगहों पर यह रोमन तहखानों, ग्रीक और ईरान के खंडहरों और इथियोपिया और स्पेन के चर्चों में नजर आता है.
स्वास्तिक मूल अमेरिकी लोगों का भी प्रतीक है जिसका इस्तेमाल दक्षिण पश्चिमी कबीले करते थे खासतौर से नावोजो और होपी. नावोजो के लिए यह एक पवित्र तस्वीर है जिसका इस्तेमाल उपचार के रिवाजों और सैंड पेंटिंग में होता था. यूक्रेन के नेशनल म्यूजियम ऑफ हिस्ट्री में स्वास्तिक के 15,000 साल पुराने नमूने हैं. इसके साथ ही प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों में भी इन्हें पाया गया है जो ईसा पूर्व 2600 से 1900 साल के बीच के हैं.
नाजी प्रतीक बहुत नया है
जर्मन पुरातत्ववेत्ता हाइनरिष श्लिमान ने इसे प्राचीन ट्रॉय शहर की खुदाई के दौरान पुनर्जीवित किया और इसे यूरोप और एशिया की साझी आर्य संस्कृति से जोड़ा. इतिहासकार मानते हैं कि इसी बात ने जर्मनी के राष्ट्रवादी गुटों की इसके लिए दिलचस्पी पैदा की और नाजी पार्टी ने इसे 1920 में अपना लिया.
उत्तरी अमेरिका में 20वीं सदी की शुरुआत में स्वास्तिक सिरेमिक टाइलों से लेकर, वास्तु, सेना के प्रतीकों, टीम लोगो, सरकारी इमारतों और मारकेट कंपनियों तक का चहेता था. कोका कोला ने तो स्वास्तिक के पेंडेंट भी निकाले थे. कार्ल्सबर्ग की बीयर की बोतलों पर भी स्वास्तिक के निशान थे. 1940 तक बॉय स्काउट के बैच में भी स्वास्तिक था.
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टी के नकागाकी न्यूयॉर्क में रहने वाले बौद्ध भिक्षु हैं. उनका कहना है कि जब पहली बार उन्हें एक अंतर्धार्मिक सम्मेलन में स्वास्तिक को "दुष्टता के सार्वजनिक प्रतीक" बताये जाने की बात पता चली तो वह हैरान रह गये. उनका कहा है कि "स्वास्तिक" या "मांजी" शब्द सुनने के बाद उन्हें बौद्ध मंदिर का ध्यान आता है क्योंकि जापान में उसका यही मतलब है जहां वो पले बढ़े. नाकागाकी का कहना है, "आप इसे दुष्टता का प्रतीक नहीं कह सकते या हिटलर के कारण दूसरी सच्चाइयों को नहीं झुठला सकते जो हजारों साल से हैं."
नाकागाकी ने इस विषय पर एक किताब भी लिखी है और बताते हैं कि 1930 के दशक तक अमेरिकी अखबारों में नाजी प्रतीक को हाकेनक्रॉयत्स कहा जाता था इसके बाद उसकी जगह स्वास्तिक का इसेतमाल शुरू हुआ. उनका मानना है कि भले ही असहज हो लेकिन इस पर और ज्यादा बातचीत की जरूरत है.
कोएलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका उन कई धार्मिक गुटों में शामिल है जो स्वास्तिक को हाकेनक्रॉयत्स से अलग करने की कोशिश में जुटे हैं. हाल ही में कैलिफोर्निया में एक कानून बनाया गया है जिसके तहत हाकेनक्रॉयत्स का सार्वजनिक प्रदर्शन आपराधिक है लेकिन पवित्र स्वास्तिक को इससे छूट दी है. संगठन के प्रवक्ता पुष्पिता प्रसाद इसे जीत बताते हैं. हालांकि उनका यह भी कहना है कि कानून में हिटलर के प्रतीक और पवित्र चिन्ह दोनों को स्वास्तिक ही कहा है.
एनआर/वीके (एपी)