असम में बढ़ते बाल विवाह पर अंकुश लगाने की पहल
२४ जनवरी २०२३इसके तहत असम में 14 वर्ष से कम उम्र की युवतियों के साथ विवाह करने वालों के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा. इसके अलावा 14 से 18 वर्ष की लड़कियों से शादी करने वालों को बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत गिरफ्तार किया जाएगा. बाल विवाह के मामलों में वर-वधू की उम्र 14 वर्ष से कम होने की स्थिति में विवाह को अवैध करार देते हुए वर को गिरफ्तारी के बाद जुवेनाइल कोर्ट में पेश किया जाएगा. बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस को अगले दो सप्ताह के भीतर बड़े पैमाने पर राज्यव्यापी अभियान चलाने का निर्देश दिया गया है. कानूनन देश में शादी के लिए लड़कों और लड़कियों की उम्र क्रमशः 21 और 18 वर्ष है.
समाजशास्त्रियों ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया है. लेकिन कुछ संगठनों ने अंदेशा जताया है कि अल्पसंख्यक तबके के लोगों को परेशान करने के लिए कहीं इस कानून का दुरुपयोग नहीं हो. राज्य सरकार पहले भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपने कुछ फैसलों से सुर्खियों में रही है.
राज्य के बांग्लादेश से सटे धुबड़ी में बाल विवाह की दर 50 फीसदी है और दक्षिण सालमारा जिले में 44.7 फीसदी. सरकार की दलील है कि असम में माताओं और शिशुओं मृत्यु की दर बहुत ज्यादा है और इसकी प्राथमिक वजह बाल विवाह है. सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि राज्य में 11 फीसदी से ज्यादा युवतियां कम उम्र में ही मां बन जाती हैं. केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, असम माताओं की मृत्यु दर के मामले में पहले और शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है.
नई पहल
असम मंत्रिमंडल ने सरकार के इस फैसले पर मुहर लगा दी है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा बताते हैं, "राज्य में औसतन 31 प्रतिशत शादियां 18 वर्ष की उम्र से पहले ही हो जाती हैं. इस गंभीर सामाजिक बुराई पर अंकुश लगाने के लिए अब 14 से 18 वर्ष की आयु की लड़कियों से शादी करने वाले पुरुषों पर बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.”
उनका कहना था कि पुलिस को राज्य भर में बाल विवाह के खिलाफ व्यापक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है. हर गांव में एक बाल संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया जाएगा. ग्राम पंचायत सचिव को इलाके में होने वाले बाल विवाह के बारे में शिकायत दर्ज कराने का निर्देश दिया गया है. पुलिस अगले 15 दिनों में राज्य में बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान शुरू करेगी.
मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) की रिपोर्ट के हवाले बताया राज्य में एक लाख से ज्यादा लड़कियों की शादी उम्र से पहले की गई है. इससे साफ है कि असम में बाल विवाह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. राज्य सरकार के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, असम में महज नौ वर्ष की एक लड़की मां बन गई है. राज्य में होने वाले बाल विवाह को ऐतिहासिक भूल बताते हुए सरमा का कहना था कि पिछली सरकारों ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 पर ध्यान नहीं दिया. यही वजह है कि यहां माताओं व शिशुओं की मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा है. अब सरकार इस एक ऐतिहासिक भूल को सुधारने का प्रयास कर रही है. मुख्यमंत्री ने अगले पांच वर्षों के दौरान असम को बाल विवाह से पूरी तरह मुक्त करने की उम्मीद जताई है.
सरमा ने बाल विवाह के खिलाफ कर्नाटक सरकार की पहल की सराहना करते हुए कहा कि वहां सरकार ने बाल संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति की है, जिससे उन्होंने प्रेरणा ली है. कर्नाटक सरकार को 11 हजार बाल विवाह रोकने में कामयाबी मिली है और 10 हजार मामले दर्ज किए गए हैं.
आंकड़ों में तस्वीर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, असम में 20 से 24 वर्ष के उम्र की की 31 फीसदी से अधिक ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गई थी. वर्ष 2019-20 में इस मामले में राष्ट्रीय औसत 23 फीसदी से कुछ अधिक था. एएफएचएस की रिपोर्ट के 2015-16 के आंकड़ों के मुकाबले चार वर्ष में बाल विवाह में एक फीसदी वृद्धि हुई है. मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार ने कहा कि सरकार ने राज्य में माताओं और बच्चों की उच्च मृत्यु दर पर अंकुश लगाने के लिए ही यह फैसला किया है. वर्ष 2022 में भारत के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार 2018 और 2020 के बीच प्रति एक लाख नवजात शिशुओं पर 195 मौतों के साथ असम में देश में सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर वाला राज्य है. नवजात शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में यह तीसरे नंबर पर है.
मुख्यमंत्री बताते हैं कि असम में कम उम्र में गर्भवती होने वाली लड़कियों की तादाद 11.7 फीसदी है. यह राज्य में बड़ी तादाद में होने वाले बाल विवाह का सबूत है. सीमावर्ती धुबड़ी जिले में तो युवतियों को कम उम्र में ही मां भी बनना पड़ रहा है. वहां 50 फीसदी शादियां कानूनी उम्र से पहले हो रही हैं. असम में बाल विवाह का औसत 31 फीसदी है. राज्य के बेहद प्रगतिशील समझे जाने वाले जोरहाट और शिवसागर जिलों में भी 24.9 फीसदी युवतियों की शादी कम उम्र में ही हो रही है.
सामाजिक संगठनों ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया है. लेकिन साथ ही कहा है कि सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कहीं इस नियम का इस्तेमाल एक खास तबके को परेशान करने के लिए नहीं किया जाए. बाल संरक्षण के लिए काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन के सचिव सौगत भट्टाचार्य कहते हैं, "सरकार की मंशा सराहनीय है. बाल विवाह एक गंभीर और कड़वी सामाजिक बुराई है. लेकिन उसे इस कानून को जमीनी स्तर पर सटीक तरीके से लागू करने पर भी ध्यान देना होगा. कहीं ऐसा नहीं हो कि यह अल्पसंख्यकों को परेशान करने का हथियार बन जाए.”