आवारा बिल्लियों से परेशान ऑस्ट्रेलिया, साइंस से उम्मीद
२८ नवम्बर २०२३ऑस्ट्रेलिया आवारा बिल्लियों की बढ़ती आबादी से परेशान है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये आवारा बिल्लियां न सिर्फ मूल प्रजातियों के लिए खतरनाक हैं, बल्कि इंसानों और मवेशियों में बीमारियां भी फैला सकती हैं. इसलिए इनकी आबादी नियंत्रित करना जरूरी है.
एक अनुमान के मुताबिक आवारा जानवरों के कारण दुनियाभर को 284 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान पहुंचता है. सिर्फ ऑस्ट्रेलिया को इनके कारण 25 अरब ऑस्ट्रेलियन डॉलर यानी लगभग 2,700 अरब रुपये की चपत लगती है. इनमें से जिस जीव को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कहा जाता है, वे हैं आवारा बिल्लियां.
प्राणी सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था पीटा ऑस्ट्रेलिया (Peta) कहती है कि घर से बाहर रहने या घूमने वाली बिल्लियां भी खतरनाक होती हैं. पीटा की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, "अगर बिल्लियों को खुले में घूमने की इजाजत दी जाए, तो वे स्थानीय पक्षियों और अन्य छोटे जानवरों को मार सकती हैं या घायल सकती हैं."
घातक हैं बिल्लियां
ऑस्ट्रेलिया में लगभग 63 लाख आवारा बिल्लियां हैं, जो करोड़ों मूल प्रजातियों की जान ले लेती हैं. इनमें स्थानीय स्तनधारी, सांप और पक्षी शामिल हैं. पीटा का अनुमान है कि ऑस्ट्रेलिया में आवारा बिल्लियां हर रात लगभग साढ़े सात करोड़ जानवरों की जान लेती हैं.
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की पर्यावरण और जल मंत्री तान्या प्लिबेरसेक ने "आवारा बिल्लियों के खिलाफ युद्ध” का एलान करते हुए इनकी आबादी घटाने के लिए कई उपायों का जिक्र किया. इनमें बिल्लियों को बधिया करने और घरों में रखी जाने वाली बिल्लियों की तादाद पर नियंत्रण लगाने जैसे उपाय शामिल हैं.
हालांकि, विशेषज्ञ कहते हैं कि ये उपाय काफी नहीं होंगे, क्योंकि पहले ही करोड़ों बिल्लियां घूम रही हैं, जो पूरे देश में कहर बरपा रही हैं. इसके अलावा लोमड़ियां, खरगोश, मेंढक, सुअर, बकरियां और हिरण जैसे जानवरों की आबादी भी अत्यधिक बढ़ गई है.
एक लेख में कोटिनहम कहती हैं कि ऐसे सभी जानवरों की बढ़ती आबादी से लड़ने में जीन ड्राइव तकनीक बहुत काम आ सकती है.
क्या होती है जीन ड्राइव?
हर जीव अपनी कोशिकाओं में जेनेटिक सूचनाएं जमा करता है, जिसे डीएनए कहते हैं. जिन रेशों में ये जानकारियां जमा होती हैं, उन्हें जीन कहते हैं, जो हर जीव के अलग-अलग गुणों को तय करते हैं.
कोटिनहम लिखती हैं, "अधिकतर जानवरों की तरह बिल्लियों में भी हर जीन की दो कॉपी होती हैं. एक माता से मिलता है और एक पिता से. इसका अर्थ है कि हर बिल्ली अपने बच्चों को एक जीन देगी.”
लेकिन जीन ड्राइव में माता और पिता से जीन मिलने का यह नियम लागू नहीं होता. कोटिनहम समझाती हैं कि जीन ड्राइव में एक जीन या जीन्स के एक समूह को तेजी से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचाया जाता है. यानी अगर माता या पिता में से किसी एक में भी जीन ड्राइव है, तो वे आधे से ज्यादा या कई मामलों में तो सारे जीन्स अपने बच्चों को दे सकते हैं.
जीन ड्राइव एक कुदरती प्रक्रिया है, लेकिन ये जीन ड्राइव प्रयोगशालाओं में भी तैयार किए जा सकते हैं. इसके लिए जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल होता है. प्रयोगशालाओं में ये जीन ड्राइव तैयार करके उनसे जीवों में अलग-अलग तरह के गुण तैयार किए जा सकते हैं.
एडिलेड यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता चूहों पर एक अध्ययन कर रहे हैं, जिसके जरिए कुदरती रूप से पाए जाने वाले जीन ड्राइव का इस्तेमाल मादा चूहों को कुदरती रूप से बांझ बनाए जाने की कोशिश की जा रही है.
इसकी एक मिसाल मच्छरों की संख्या घटाने के रूप में देखी गई है. 2019 में पहली बार एक मादा चूहे के डीएनए में जीन ड्राइव डाला गया था. वैज्ञानिकों का मानना है कि आवारा बिल्लियों की आबादी घटाने के लिए जीन ड्राइव तकनीक इस्तेमाल हो सकती है.
वीके/वीएस