समुद्र में समाते गांव का चार बच्चों वाला स्कूल
गाहे-बगाहे जमीन में दबे अवशेष, बीती सभ्यताओं के टुकड़े थमाते हैं. अतीत बनने का दंश बस इतिहास का हिस्सा नहीं है. दुनिया के कई इलाके होने से "ना होने" की एक तेज-रफ्तार यात्रा से जूझ रहे हैं. देखिए, ऐसा ही एक खत्म होता गांव
इस गांव को लीलता जा रहा है समंदर
जलवायु संकट, कोई धीमा जहर नहीं जो आहिस्ता-आहिस्ता असर कर रहा हो. लंबी गर्मियां, गर्म से गर्म होते जा रहे महीने, लंबे सूखे... गौर करिए तो ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ता चरम साफ नजर आएगा. दुनिया का कोई हिस्सा इस असर से अछूता नहीं. लेकिन कुछ इलाके हैं, जहां असर और ज्यादा प्रत्यक्ष है. इनमें से ही एक है, थाइलैंड का तटीय गांव वाट खुन समुत चिन.
गांव के स्कूल में अब बस चार बच्चे
जब वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लेशियर और ध्रुवीय बर्फ तेजी से पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है, तो कई लोगों को खतरा बहुत दूर लगता है. लेकिन जोखिम बहुत पास आता जा रहा है. इसी की एक दुखद मिसाल है, वाट खुन समुत चिन. मैंग्रोव जंगलों की कटाई ने द्वीप के रक्षा कवच को नष्ट कर दिया. अब समुद्र बढ़ा चला आ रहा है. ये चार बच्चे, गांव के स्कूल के आखिरी छात्र हैं. साथ में हैं उनकी टीचर.
समंदर बढ़ता गया, लोग खिसकते गए
पहले गांव में मछुआरों की भरी-पूरी आबादी थी. फिर समुद्र पास आता गया और लोग, द्वीप में और पीछे खिसकते गए. लोगों को कई बार बसा-बसाया घर छोड़कर हटना पड़ा. लेकिन समंदर का हमला नहीं रुका. मजबूरन कई परिवारों को गांव छोड़कर जाना पड़ा. यह सब एकाएक नहीं हुआ. तीन दशक से भी ज्यादा समय से जलस्तर बढ़ रहा है और तट का कटाव हो रहा है. तस्वीर में: जून 2023 की इस फोटो में दो छात्र क्लास में पढ़ाई कर रहे हैं.
हम कैसी दुनिया छोड़ जाएंगे?
यहां रहने वाले लोगों के आसपास उफनते नीले समंदर के बीच उनकी जमीन, एक पतली उंगली जैसी दिखती है. विकासक्रम में जिन प्रेरकों ने जीवों को जुझारू बनाया, मुश्किलों के आगे ढलने की प्रेरणा दी, उनमें अपने पीछे अपने बच्चों को छोड़ जाने की इच्छा भी थी. हम आने वाली पीढ़ियों को क्या दे जाएंगे?
कंक्रीट की ये दीवार समंदर को कैसे रोक पाएगी
खबरों के मुताबिक, गांव का स्कूल पहले जिस जगह पर था, अब वो समंदर में जा चुकी है. एक ओर वाट खुन समुत चिन जैसी जगहें और यहां रहने वाले समुदाय हैं, जो जलवायु संकट के कारण गले तक जोखिम में डूबे हैं. वहीं कई लोगों को अब भी ग्लोबल वॉर्मिंग पर यकीन नहीं है. जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बंद करने पर भी कुछ ठोस नहीं हो सका है. तस्वीर: कटाव रोकने के लिए लगाए गए कंक्रीट के अवरोधक.
पर्यावरण संरक्षण के सबक की बड़ी कीमत चुकाई
अनुमान है कि 1950 के दशक के मध्य से अब तक, तटरेखा डेढ़ से दो किलोमीटर तक पीछे खिसक चुकी है. गांव का ये स्कूल जाने कब तक बचा रहेगा! ग्लोबल वॉर्मिंग को प्रत्यक्ष महसूस कर रहे बच्चे, स्कूल में जलवायु संकट के बारे में सीखते हैं और पर्यावरण संरक्षण के सबक लेते हैं. पहले की पीढ़ियों ने मैंग्रोव के जंगलों को गंवाया. झींगे की फार्मिंग के लिए तेजी से मैंग्रोव काटे गए. अब ये बच्चे उनकी अहमियत जान रहे हैं.