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मानवाधिकारबांग्लादेश

बांग्लादेश: रोहिंग्या कैंपों में हिंसा बढ़ने की आशंका

अराफातुल इस्लाम
१० मार्च २०२३

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में बांग्लादेश में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को दी जाने वाली खाद्य सहायता में कटौती की है. प्रेक्षकों को डर है कि इससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के अलावा अपराध में भी बढ़ोतरी हो सकती है.

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Bangladesch Cox’s Bazar | Rohingya Flüchtlingscamp
कॉक्स बाजार के इन कैंपों में जैसे-जैसे मानवीय संकट गहरा रहा है, हिंसा की आशंका भी गहराती जा रही है.तस्वीर: Arafatul Islam/DW

बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी तट के कॉक्स बाजार में शरणार्थी शिविर बने हैं. गंदगी भरे इन शिविरों में करीब 10 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रह रहे हैं. इनमें से ज्यादातर 2017 में पड़ोसी देश म्यांमार में सैन्य कार्रवाई के डर से भागकर आ गए थे.

इस कार्रवाई के बाद दुनिया का सबसे भयावह मानवीय संकट खड़ा हो गया था. बांग्लादेश इन रोहिंग्या शरणार्थियों के अपने यहां रखने के लिए तैयार तो हो गया, लेकिन इसका ज्यादातर खर्च अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठन ही उठा रहे हैं.

वहीं विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने हाल ही में घोषणा की है कि 125 मिलियन डॉलर की कमी के कारण उसे सहायता राशि में कटौती करनी पड़ेगी. संयुक्त राष्ट्र के इस आनुषंगिक संगठन का कहना है कि मार्च की शुरुआत से प्रति व्यक्ति दिए जाने वाले खाद्य पैकेट की राशि 12 डॉलर से घटाकर 10 डॉलर कर दी जाएगी. संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर उसे बाहर से फंड नहीं मिला, तो सहायता राशि में और ज्यादा कटौती की जा सकती है.

Bangladesch Cox’s Bazar | Rohingya Flüchtlingscamp
तस्वीर: Arafatul Islam/DW

खाद्य सहायता 'कभी भी पर्याप्त नहीं' थी

इन शिविरों में 65 फीसदी आबादी महिलाओं और बच्चों की है और यहां कुपोषण, एनीमिया और शारीरिक विकास की कमी जैसी दिक्कतें पहले से मौजूद हैं. ऐसे में शरणार्थी शिविरों में काम करने वालों को डर है कि खाद्य पदार्थों में कटौती का विनाशकारी प्रभाव हो सकता है.

रोहिंग्या मेडिक्स ऑर्गनाइजेशन की सह-संस्थापक अंबिया परवीन कहती हैं कि यह कटौती बांग्लादेश में रह रहे हर रोहिंग्या शरणार्थी के जीवन को प्रभावित करेगी. रोहिंग्या मेडिक्स ऑर्गेनाइजेशन शरणार्थी शिविरों में चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराता है.

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डीडब्ल्यू से बातचीत में परवीन कहती हैं, "इन्हें पहले भी जो खाना मिलता था, वह पर्याप्त नहीं था और अब तो इसके और ज्यादा दुष्प्रभाव होंगे. खासकर बच्चों, बूढ़ों और गर्भवती महिलाओं पर और सबसे ज्यादा तो उन लोगों पर, जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं. पांच साल तक के बच्चों में बहुत ज्यादा कुपोषण है. हेपेटाइटिस सी के गंभीर मामले हैं और गर्भवती महिलाएं एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं."

Bangladesch Cox’s Bazar | Rohingya Flüchtlingscamp
तस्वीर: Arafatul Islam/DW

अकेले मुकाबला नहीं कर सकता बांग्लादेश

बांग्लादेश के रिफ्यूजी रिलीफ एंड रीपैट्रियेशन कमिश्नर मोहम्मद मिजानुर रहमान कहते हैं कि बांग्लादेश की सरकार इस कमी को अकेले पूरा नहीं कर सकती और उन्होंने अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं से अपना सहयोग बनाए रखने का आग्रह किया है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं, "बांग्लादेश के लिए इस समुदाय की मेजबानी का पूरा बोझ अकेले उठाना संभव नहीं है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय इनके प्रबंधन में अहम भूमिका निभा रहा है. उसे इसमें कमी नहीं करनी चाहिए और कटौती के लिए यहां के बजाय कहीं और रुख करना चाहिए."

Feuer in Rohingya-Flüchtlingslager in Bangladesch
तस्वीर: Mahmud Hossain Opu/AP/picture alliance

हिंसा बढ़ने का डर

खाद्य सहायता में कटौती तब की गई है, जब शरणार्थी शिविरों में हिंसा बढ़ी है. पर्यवेक्षकों को डर है कि इससे सुरक्षा व्यवस्था में और अस्थिरता आएगी. हाल के महीनों में ड्रग को लेकर कई बार जानलेवा संघर्ष हो चुके हैं और समुदाय के कई नेताओं की हत्या हो चुकी है. कानून प्रवर्तन एजेंसियां संगठित हत्याओं की एक पूरी शृंखला की जांच कर रही हैं.

ड्रग्स और हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों की वजह से बांग्लादेश-म्यांमार सीमा पर भी तनाव काफी बढ़ गया है.

कॉक्स बाजार में रोहिंग्या शरणार्थियों पर शोध करने वाले रिजाउर रहमान लेनिन कहते हैं कि बांग्लादेश के अधिकारियों को इन शिविरों में सुरक्षा तत्काल बढ़ानी चाहिए और प्रबंधन में सुधार करना चाहिए. वह कहते हैं, "यह देखते हुए कि म्यांमार सरकार अपने इन लोगों को घर वापस नहीं जाने दे रही है और शिविरों में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी काफी असुरक्षित हो गए हैं, ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र का जरूरी मानवीय सहायता में कटौती करने का फैसला बेहद चौंकाने वाला है."

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वह आगे कहते हैं, "शिविरों में पिछले पांच महीनों में कम से कम 25 लोग मारे जा चुके हैं और इनमें से ज्यादातर रोहिंग्या समुदाय के नेता थे. इन्हें इसलिए चुनकर मारा गया, क्योंकि ये रोहिंग्या लोगों के अधिकार, सुरक्षा और कल्याण के साथ ही उनकी वापसी की बात करते थे. यह भी कहा जा रहा है कि इनमें से कई इसलिए भी मारे गए, क्योंकि वे आपराधिक गतिविधियों को रोकने में पुलिस की मदद कर रहे थे."

हैम्बर्ग स्थित GIGA इंस्टीट्यूट फॉर एशियन स्टडीज की जैसमीन लॉर्क कहती हैं कि इन कटौतियों की वजह से भीड़भाड़ वाले शिविरों में तनाव बढ़ेगा. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहती हैं, "हालांकि, अपराध और अभाव में कोई सीधा संबंध तो नहीं है, लेकिन बढ़ती भूख और हताशा के चलते अपना जीवन बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग ड्रग ट्रैफिकिंग जैसी अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. अभाव, बढ़ती हताशा और अकेलेपन की भावना के चलते ड्रग्स का सेवन भी बढ़ सकता है."

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तस्वीर: ED JONES/AFP

काम और शिक्षा पर जोर देते हैं जर्मन प्रतिनिधि

फरवरी में जर्मन-साउथ एशियन पार्लियामेंट्री ग्रुप ने बांग्लादेश का दौरा किया था और कटौतियों के संदर्भ में इस ग्रुप ने सिफारिश की थी कि बांग्लादेश को चाहिए कि वह शिविरों में सहायता पर जी रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को काम करने की अनुमति दे. ग्रुप ने यह भी सिफारिश की थी कि बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराई जाए.

जर्मन सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख रीनेट कुनास्ट ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में पत्रकारों से बातचीत में कहा, "शरणार्थियों को खुद को विकसित करने का मौका मिलना चाहिए. रोहिंग्या बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए और वयस्क शरणार्थियों को काम करने का मौका मिलना चाहिए, ताकि अपनी जरूरत की चीजों का खर्च वे खुद उठा सकें."

लॉर्क कहती हैं कि इस तरह के और भी कई कूटनीतिक प्रयास किए जा सकते हैं, लेकिन "रोहिंग्या शरणार्थियों को काम करने और शिक्षा का मौका देना का बहुत ज्यादा फायदा होगा." वह यह भी कहती हैं कि इससे न सिर्फ उन लोगों की जिंदगी बेहतर होगी, बल्कि उन्हें बांग्लादेश में मौके भी मिलेंगे.

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तस्वीर: Zobaer Ahmed/DW

'उनके देश भेजना ही एकमात्र हल है'

लॉर्क कहती हैं कि बांग्लादेश की सरकार ऐसे प्रस्तावों को लागू करने की इच्छुक नहीं दिखी, क्योंकि आखिरकार वह चाहती है कि शरणार्थी यहां से चले जाएं. वह कहती हैं, "लेकिन निकट भविष्य में रोहिंग्या शरणार्थियों का सुरक्षित तरीके से म्यांमार वापस जाना असंभव सा लगता है. खासकर फरवरी 2021 में हुए तख्तापलट के बाद से."

मोहम्मद मिजानुर रहमान स्पष्ट करते हैं, "बांग्लादेश की सरकार की प्राथमिकता में इनका एकीकरण कभी नहीं रहा. हमारी प्राथमिकता हमेशा प्रत्यावर्तन यानी इन्हें वापस भेजने की रही है. इन्हें वापस भेजना ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है."

वह कहते हैं कि बांग्लादेश में रह रहे ज्यादातर रोहिंग्या या तो खेती कर सकते हैं या फिर मछुआरों का काम कर सकते हैं और यह करने वाले लोग बांग्लादेश में ही काफी संख्या में हैं. और यदि शरणार्थियों को काम करने की छूट दी गई, तो इससे व्यापक आबादी में सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है.

उनके मुताबिक रोहिंग्या बच्चों के लिए शिविरों में शिक्षा की व्यवस्था थी. हालांकि, वहां के अस्थाई स्कूलों में बांग्लादेशी पाठ्यक्रम या फिर बांग्लादेश की मुख्य भाषा बंगाली पढ़ाने की अनुमति नहीं है. ये स्कूल म्यांमार के पाठ्यक्रम को ही पढ़ाने के लिए बाध्य हैं. इसके पीछे विचार यह है कि ये बच्चे आखिरकार बांग्लादेश छोड़कर चले जाएंगे.