बांग्लादेश: ट्रांस अधिकारों पर किताब के समर्थन में सरकार
२५ जनवरी २०२३11 से 13 साल की उम्र के बच्चों के लिए लाई गई इन नई किताबों में ट्रांसजेंडर किरदारों को सामने लाया गया है और उनके जीवन के बारे में बताया गया है. इतिहास और सामाजिक विज्ञान की नई किताब में शरीफ नाम के एक बच्चे की कहानी है.
शरीफ धीरे-धीरे अपनी लैंगिक पहचान बदल लेता है, अपना नाम बदल कर शारीफा रख लेता है और दूसरे ट्रांसजेंडर लोगों के साथ रहने चला जाता है. इन किताबों के खिलाफ ढाका में पिछले हफ्ते सैकड़ों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया था.
प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक बोर्ड से मांग की थी कि इन बदलावों को हटा दिया जाए. इस्लामिस्ट समूहों का कहना है कि इन किताबों से लिंग बदलने और समलैंगिकता को बढ़ावा मिलता है.
मुख्यधारा से दूर ट्रांसजेंडर
इस्लामिस्ट पार्टी इस्लामी ओइक्या जोट के महासचिव मुफ्ती फैजुल्लाह ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "सरकार ने पाठ्यपुस्तकों में ट्रांसजेंडर समावेश के नाम पर समलैंगिकता को प्रोत्साहित करने की कोशिश की है."
औरों ने कहा कि वो इस बात से चिंतित हैं कि बच्चों को छोटी उम्र में ट्रांसजेंडर लोगों के बारे में पढ़ाया जाएगा. इस्लामी छात्र आंदोलन के मुखिया शरीफुल इस्लाम रियाद ने कहा, "कोई भी जन्म से ट्रांसजेंडर नहीं होता. यह एक विकल्प है. हम क्यों अपने बच्चों को इसके बारे में इतनी जल्दी पढ़ाएं?"
इस आलोचना की प्रतिक्रिया में पाठ्यपुस्तक बोर्ड के अधिकारी मोहम्मद मशीउज्जमां ने कहा कि ये पाठ्यपुस्तकें लोगों के रवैये में आई नरमी और बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर लोगों के कानूनी दर्जे में आए बदलाव को दर्शाती हैं.
समावेश की कोशिशें
उन्होंने कहा कि इन किताबों से इस विषय के बारे में समझ और बढ़ेगी. उन्होंने एएफपी को बताया, "हमने ट्रांसजेंडर लोगों के विषय को शामिल किया है क्योंकि वो हमारे समाज का एक उपेक्षित हिस्सा हैं. अक्सर, उन्हें उनके घरों से निकाल दिया जाता है. इन किताबों का उद्देश्य ट्रांसजेंडर लोगों को मुख्यधारा में लाना है."
2014 में बांग्लादेश की सरकार ने लोगों को अपनी पहचान तीसरे जेंडर के रूप में सामने रखने की इजाजत दे दी थी. हाल के सालों में सरकार ने उन्हें आवास और उच्च शिक्षा जैसे क्षेत्रों में और अधिकार दिए हैं.
कई इस्लामिक धार्मिक नेताओं ने भी उन्हें देश की मुस्लिम मुख्यधारा का हिस्सा बताते हुए फतवे जारी किए हैं. कई ट्रांसजेंडर लोगों ने स्थानीय चुनाव लड़े और जीते भी हैं. लेकिन देश के करीब 15 लाख ट्रांसजेंडर लोगों को लंबे समय से भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ा है. उन्हें अक्सर भीख मांगने, देह व्यापार और जुर्म की तरफ धकेल दिया जाता है.
सीके/एए (एएफपी)