कैसी है रोज कमाने खाने वालों की आर्थिक हालत
कोरोना महामारी के कारण बंद आर्थिक गतिविधियां तो शुरू हो गईं हैं, लेकिन जो लोग रोज कमाते और खाते हैं उनकी आर्थिक स्थिति पहले जैसी नहीं हो पाई है. उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है.
कम ग्राहक, कम कमाई
दीवाली के मौके पर कमला देवी और उनके परिवार ने इस सोच के साथ दिया, मूर्ति और अन्य सजावट के सामान खरीदे कि इस बार उनकी अच्छी कमाई होगी. कमला देवी 20 रुपये में मिट्टी के चार दिये बेच रही हैं लेकिन उनका कहना है कि फिर भी माल नहीं बिक पा रहा है.
सुस्त बाजार
आम तौर पर देश में त्योहारों के समय में लोग मिट्टी के कारीगरों की मेहनत और लगन को ध्यान में रखते हुए तोल-मोल नहीं करते हैं लेकिन इस बार ग्राहक भी कम संख्या में आ रहे हैं. कुछ लोग हैं जो मिट्टी की आकर्षक मूर्तियां खरीदने जरूर आ रहे हैं और बिना पैसे कम कराए उन्हें खरीद भी रहे हैं.
देसी उत्पाद
बाजार में इस साल चीनी उत्पाद कम बिक रहे हैं. ज्यादातर सामान देसी हैं. कमलपन्ना कहती हैं उनके पास पूजा सामग्री से लेकर मोमबत्ती और सजावट के सामान हैं लेकिन कोरोना की वजह से बाजार पहले जैसा गुलजार नहीं है.
मोल-भाव
पूजा के लिए फूल और माला बेचने वाले गोविंद कहते हैं वे 50 रुपये में गेंदे के फूलों की माला बेच रहे हैं. हालांकि वे कहते हैं इसमें उनकी बचत सिर्फ 5 से 10 रुपये ही होगी. लोग उनसे दाम करने के लिए कहते हैं तो वे बेचने से इनकार कर देते हैं.
कमाई का मौका
सड़क पर त्योहारों के मौके पर पूजा सामग्री और अन्य चीजें बेचने वाले परीक्षण सिंह यूपी के बलिया के रहने वाले हैं. वे हर साल इसी तरह लाई, बताशे और चीनी से बने मीठे खिलौने बेचते हैं, लेकिन वे भी कम ग्राहकों के आने से निराश हैं.
रंगोली के रंग
यूपी के मैनपुरी के शाहजहां हर साल नोएडा आकर रंगोली बनाने के लिए रंग बेचते हैं. उनका कहना है कि वे लॉकडाउन खत्म होने के बाद पहली बार नोएडा आए हैं. उनकी तरह कुछ और लोग भी हैं जो पास में ही रंगोली बनाने के रंग बेच रहे हैं. ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए वे थोड़े कम पैसे लेने को तैयार हैं.
सोने-चांदी की बिक्री भी कम
आर्थिक सुस्ती का असर सिर्फ बड़े उद्योगों पर ही नहीं हुआ बल्कि सोने के गहने बेचने वाले ज्वैलर्स पर भी हुआ. कोरोना काल में शादियां बहुत फीकी रहीं और अब उन्हें उम्मीद है कि इन त्योहारों में वे नुकसान से उबर पाएंगे.
मात्र दो सौ रुपये कमाई
लॉकडाउन के पहले तक सत्ते सिंह मोबाइल कवर, मोबाइल के लिए स्क्रीन कवर और ईयर फोन बेचते थे लेकिन उनके पास अब कोई ग्राहक नहीं आता है. वे कहते हैं कि मेट्रो के गेट बंद होने की वजह से उनके पास लोग नहीं आते हैं और इसी कारण वे मास्क भी बेचने लगे हैं. उनकी एक दिन की कमाई पहले जहां 800 से लेकर 1,000 रुपये होती थी वह घटकर 200 रुपये पर आ गई है.
चाय पीने वाले कहां
धीरज मंडल सड़क किनारे चाय और मट्ठी बेचते हैं. उनके मकान का किराया पिछले कुछ महीनों से बकाया है. धीरज बताते हैं कि कमाई बस इतनी हो पाती है जिससे उनका घर किसी तरह से चल पाए.
सवारी का इंतजार
ऑटो चालक सुनील हर रोज सवेरे-सवेरे काम पर निकलते हैं और कई बार दोपहर तक कुछ ही पैसे कमा पाते हैं. वे बताते हैं कि कोरोना के पहले सारे खर्च अलग कर रोजाना एक हजार रुपये घर ले जाया करते थे लेकिन अब खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है.
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