भूटान में भारतीय सैलानियों को भी पैसा देना होगा
२० सितम्बर २०२२सैलानियों के लिये देश खोलने के पहले भूटान सरकार ने पर्यटन नीति में कई तरह के बदलाव किए हैं. इसका मकसद देश के पर्यटन क्षेत्र में सुधार करना है. बाकी एशियाई देशों के उलट प्राकृतिक सौंदर्य और संसाधनों से भरपूर इस देश ने अब सतत विकास शुल्क यानी सस्टेनेबल डेवलपमेंट फीस (एसडीएफ) के मद में पर्यटकों से मोटी रकम वसूलने का फैसला किया है. भारतीयों को भी इससे रिहाई नहीं मिली है. इस रकम का इस्तेमाल पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने और पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों का कौशल बढ़ाने में किया जाएगा. इस मामले में दक्षिण एशियाई देश इस पर्वतीय राज्य से सबक ले सकते हैं.
पर्यावरण को लेकर सतर्कता
भूटान पर्यावरण को लेकर हमेशा से बेहद सतर्क रहा है. देश की नई पर्यटन नीति में बुनियादी ढांचों, सेवाएं, पर्यटकों के अनुभवों और पर्यावरण पर ज्यादा ध्यान देने की कोशिश की गई है. भूटान के विदेश मंत्री और पर्यटन परिषद के अध्यक्ष डॉक्टर टांडी दोरजी ने एक बयान में कहा है, "इन सारे कदमों का मकसद पर्यटकों को अच्छा अनुभव देना और अपने नागरिकों को अच्छी नौकरियां उपलब्ध कराना है.”
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भूटान विदेशियों के अलावा भारतीयों का भी पसंदीदा ठिकाना रहा है. भारत से भूटान जाने वाले पर्यटकों की तादाद लगातार बढ़ती रही है. वर्ष 2018 में इस देश में पहुंचने वाले 2.74 लाख पर्यटकों में करीब 66 फीसदी भारतीय थे. इसी तरह वर्ष 2020 के शुरुआती तीन महीनों के दौरान भूटान पहुंचने वाले 29,812 पर्यटकों में से 22,298 भारतीय थे. पहले भारत, बांग्लादेश और मालदीव के पर्यटकों को भूटान घूमने के लिए कोई अतिरिक्त रकम नहीं खर्च करनी होती थी. अब इन देशों के लोगों को प्रतिदिन 1200 रुपए की दर से एसडीएफ का भुगतान करना होगा. बाकी विदेशियों के लिए यह रकम पैंसठ डालर प्रतिदिन है.
भूटान सरकार ने पर्यटन से जुड़े होटलों के यात्रा पैकेज को भी बढ़ा कर दिया है ताकि यहां आने वालों को बेहतर सुविधाएं मिलें और कार्बन उत्सर्जन नहीं के बराबर हो. गृह और सांस्कृतिक मंत्रालय निदेशक (कानून और व्यवस्था) ताशी पेन्जौर बताते हैं, "पर्यटकों से मिलने वाले एसडीएफ का इस्तेमाल पर्यावरण संरक्षण के अलावा सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए खर्च किया जाएगा.”
उनके मुताबिक, भूटान सीमा से आवाजाही करने वाले स्थानीय और बाहरी देशों के नागरिक भूटानी मुद्रा में तीन हजार नू कीमत तक का सामान साथ ले जा सकते हैं. यह ड्यूटी और टैक्स-फ्री होगा. पहले ऐसी कोई पाबंदी नहीं थी. सरकार ने न्यूनतम दैनिक पैकेज दर को भी हटा दिया है. भूटान आने वाले पर्यटकों को न्यूनतम राशि के तौर पर तय पैकेज रेट देना पड़ता था. इसकी वजह से पर्यटकों का अनुभव सीमित स्तर तक रह जाता था क्योंकि उनको टूर ऑपरेटरों की ओर से मुहैया पैकेज को ही चुनना पड़ता था. नई नीति में यह अधिकार पर्यटकों को दिया गया है. पर्यटक अब सर्विस प्रोवाइडर से सीधा संपर्क कर सकेंगे और सेवा के मुताबिक ही भुगतान करेंगे.
भारतीय पर्यटकों पर क्या असर होगा
पर्यटन विशेषज्ञों का कहना है कि भूटान का यह फैसला उसके हित में है. लेकिन इसका भारतीय पर्यटकों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. सिलीगुड़ी में एक ट्रैवल एजेंसी चलाने वाले दीपक सान्याल कहते हैं, "भूटान में पर्यटकों की तादाद सीमित करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि वह अपने पर्यावरण का सम्मान करता है और देश को साफ रखना चाहता है. भारतीय सीमा से भूटान गेट पार कर उस देश में प्रवेश करते ही आपको लगेगा कि आप किसी यूरोपीय देश में पहुंच गए हों. "
सान्याल कहते हैं कि दक्षिण एशिया के तमाम पर्यटन स्थलों में सस्ते पर्यटन के लालच में उमड़ती भीड़ स्थानीय पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचाती ही है, इससे आधारभूत ढांचे पर भी काफी दबाव पड़ता है. ज्यादातर देशों ने पर्यटकों को लुभाने की योजनाएं तो शुरू की है. लेकिन पर्यावरण पर इसके असर को कम करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है.
पश्चिम बंगाल के जयगांव को भूटान का प्रवेशद्वार कहा जाता है. यहां पर्यटन उद्योग से जुड़े नरेन थापा कहते हैं, "यह सही है कि एसडीएफ के कारण पर्यटकों की तादाद घटेगी. लेकिन भूटान का मकसद ऐसे पर्यटकों को न्योता देना है जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाएं. वह मात्रा की बजाय गुणवत्ता पर जोर दे रहा है.”
हालांकि पर्यटन क्षेत्र में इस सुधार से भूटान सरकार को काफी उम्मीदें हैं. इस बदलाव का असर देश के हर क्षेत्र पर पड़ने की उम्मीद जताई जा रही है. सरकार की कोशिश है कि यहां के लोगों को ज्यादा कुशल और सक्षम बनाया जा सके ताकि वो अपने ज्ञान और अनुभव से देश को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें और उनको देश के भीतर ही रोजगार मिल सके.
हिमालय की गोद में बसा पर्वतीय देश भूटान कई मामलों में अनूठा है. यहां प्रसन्नता ही विकास का अनूठा पैमाना है. इस छोटे से इस राष्ट्र ने पूरी दुनिया को ‘वैश्विक प्रसन्नता' की अवधारणा से परिचित करा दिया है. सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता या ग्रॉस नेशनल हैपीनेस (जीएनएच) की अवधारणा वर्ष 1972 में भूटान के चौथे राजा जेश्मे सिंग्ये वांगचुक ने बनाई थी. वर्ष 2020 में कोरोना के शुरुआती दौर में भी इस पर्वतीय देश ने कड़ी पाबंदियां लागू कर इस महामारी पर नियंत्रण हासिल किया था. हालांकि बाद में वहां भी यह महामारी फैली. भूटान दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां कार्बन अवशोषण की दर कार्बन उत्सर्जन से ज्यादा है.