1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

शादी के खर्च में भी कटौती कर रहे हैं भारतीय

९ जनवरी २०२०

सामाजिक रुतबा को ठेस पहुंचने की आशंका के बावजूद इस सीजन में कई भारतीय परिवार भड़कीला और खर्चीला वैवाहिक आयोजन करने से बच रहे हैं. कारण है भारतीय अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती.

https://p.dw.com/p/3VwF1
Symbolbild Hochzeit Ehe Indien Pakistan
शादी में महंगे कपड़े और पकवानों में कटौती. तस्वीर: Fotolia/davidevison

शादी में खूब ज्यादा खर्च, मेहमानों की लंबी सूची, कई दिनों तक चलने वाले कार्यक्रम और सैकड़ों तरह के पकवान के कारण ही भारत की 'बिग फैट इंडियन वेडिंग' दुनिया भर में मशहूर हैं. दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में तेज मंदी के लक्षण दिख रहे हैं. लोग रोजमर्रा की खरीदारी से लेकर जीवन में एक बार होने वाले आयोजन तक में कटौती कर रहे हैं. विकास 6 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है और बेरोजगारी 4 दशकों में सबसे अधिक है.

इसी के साथ चीजों के दाम बढ़ रहे हैं.  शैंपू से लेकर मोबाइल डाटा तक की खरीद में कटौती हो रही है. चार्टर्ड एकाउंटेंट पलक पंचमिया ने अपनी शादी पर होने वाले खर्च पर कटौती करने का फैसला लिया है. मुंबई स्थित पलक ने अपनी शादी के लिए मेहमानों की सूची से लेकर कपड़ों तक की खरीदारी में कमी कर दी है. पलक कहती हैं, "पहले मैंने ऐसी ड्रेस पसंद की थी जिसकी कीमत 73 हजार रुपये थी. लेकिन मेरे होने वाले पति को लगा कि यह बहुत महंगी है और अब मैं थोड़े सस्ते विकल्प की ओर देख रही हूं."

रिसर्च कंपनी केपीएमजी के मुताबिक भारतीय शादी का बाजार सालाना 40 से 50 बिलियन डॉलर का है. भारतीय शादी का जश्न कई बार हफ्तों तक चलता है और कई तरह के व्यंजन परोसे जाते हैं इसी के साथ संगीत और नृत्य का भी आयोजन होता है. कुछ शादियों में शरीक होने के लिए तो विदेशी पर्यटक टिकट तक खरीदते हैं. लेकिन इन दिनों परिवार शादी के खर्च में कटौती कर रहे हैं. हालांकि पिछले साल देश के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी के परिवार में हुई शादी में करीब 100 मिलियन डॉलर खर्च का अनुमान है. वेडिंग एशिया के संस्थापक मनिंदर सेठी के मुताबिक, "पहले भारतीय शादियां किसी विशाल कंसर्ट की तरह होती थी, लेकिन अब चीजें बदल गई हैं."

Indien Muslimische Hochzeit
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/R. Kakade

पहले नोटबंदी फिर जीएसटी से मार

8 नवंबर 2016 को जब भारत सरकार ने नोटबंदी का एलान किया था, उस वक्त भी शादी के आयोजन प्रभावित हुए थे. देश में शादी का सीजन सितंबर से लेकर जनवरी तक होता है. नकद निकासी पर रोक के बाद कई परिवार उस दौर में शादी के आयोजन को लेकर चिंतित हो गए थे. मुंबई स्थित डिजाइन स्टूडियो के मालिक विशाल हरियानी कहते हैं कि नोटबंदी के बाद स्टूडियो बंद रहा क्योंकि कोई ग्राहक नहीं आ रहा था. विशाल के मुताबिक, "उस दौरान कोई प्रदर्शनी नहीं लग रही थी और हमारे पास माल बेचने का कोई रास्ता नहीं था."

इससे पहले कि कारोबार दोबारा बहाल हो पाते सरकार ने 2017 में जीएसटी लागू कर दिया जिसका व्यापक असर कई छोटे व्यापार पर पड़ा. विशाल कहते हैं कि उसके बाद से कारोबार को चलाना चुनौती भरा काम है. उन्होंने बताया कि ग्राहक बहुत अधिक खर्च करने के अनिच्छुक हैं.

देश में शादी जैसे आयोजनों में कई बार परिवार कर्ज लेकर भी खर्च करते हैं. 52 वर्षीय तारा शेट्टी के बेटे की शादी होने वाली हैं और वे कहती हैं, "शादी के लिए हमने अपने पड़ोसियों तक को न्यौता नहीं दिया है. हमारे लिए यह शर्मिंदगी का सबब है लेकिन हालात ऐसे हैं कि बहुत ज्यादा राहत मिलती नहीं दिख रही है. हमारे जमाने में शादियों में बहुत अधिक खर्च होते थे और हजारों लोगों को बुलाया जाता था लेकिन अब देखिए मेरे बेटे की शादी का आयोजन बिल्कुल उलट हो गया है."

विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय मिडिल क्लास परिवार अब बचत पर अधिक ध्यान दे रहा है. फंड सलाहकार प्रदीप शाह कहते हैं, "पूरी अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई है, लोग शादी पर होने वाले खर्च पर भी कटौती कर रहे हैं. अमीरों के अलावा सभी लोग इससे प्रभावित हुए हैं. इससे प्रतिबिंबित होता है कि मूड कैसा है?"

पिछले दिनों वित्त वर्ष 2019-20 के विकास दर का पहला अनुमान जारी किया था जिसके तहत इस वित्त वर्ष में विकास दर 5 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है. इससे पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर 6.8 फीसदी रही थी. देश में इस गिरावट को लेकर चिंता बढ़ गई है.     

एए/आरपी (एएफपी)

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें