क्या है मध्य प्रदेश के मतदाता के मन में
१६ नवम्बर २०२३मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के लिए इस बार 2,533 प्रत्याशी मैदान में हैं. इनमें सिर्फ 252 महिलाएं हैं. मतदाताओं की संख्या 5.60 करोड़ से कुछ ज्यादा है. मुख्य रूप से संघर्ष सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस के बीच है, लेकिन सपा, बसपा, आप और जेडीयू जैसी पार्टियां भी सीमित सीटों पर लड़ रही हैं.
आबादी के हिसाब से मध्य प्रदेश भारत के सबसे बड़े राज्यों में से है और लोकसभा में यहां से 29 सीटें हैं. यही कारण है जिसकी वजह से यह राज्य राष्ट्रीय पार्टियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.
पिछले चुनावों की छाया
बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह चौथा कार्यकाल है, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव उनके और उनकी पार्टी के लिए अच्छे नहीं रहे थे. जहां 2013 के चुनावों में बीजेपी को 165 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, वहीं 2018 में पार्टी 109 सीटों पर सिमट कर रह गई थी.
सरकार बनाने के लिए कम से कम 116 सीटों की जरूरत होती है. हालांकि यह जादुई आंकड़ा कांग्रेस को भी हासिल नहीं हुआ, लेकिन पार्टी ने 2013 की 58 सीटों से कहीं ज्यादा 2018 में 114 सीटें हासिल की और सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी.
फिर कांग्रेस ने सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल किया और सरकार बना ली. लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में बनी यह सरकार ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाई. कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी कलह ने अंत में पार्टी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
कांग्रेस की उम्मीदें
मुख्यमंत्री ना बनाए जाने से नाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने कई समर्थकों के साथ कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए. उनके साथ कांग्रेस के कुल 22 विधायकों ने पार्टी छोड़ कर बीजेपी को चुन लिया.
कांग्रेस की सरकार गिर गई, बीजेपी सत्ता में लौट आई और शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने. इतने सनसनीखेज घटनाक्रम की वजह से इस बार राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान विशेष रूप से मध्य प्रदेश की तरफ लगा हुआ है. सभी को यह देखने में दिलचस्पी में कि इस बार प्रदेश की जनता कैसा जनादेश देती है.
बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद के लिए चौहान के नाम की घोषणा नहीं की है और दूसरे राज्यों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा है. इसलिए कई बीजेपी नेताओं के बीच अंदरखाने मुख्यमंत्री पद के लिए चुने जाने को लेकर प्रतिस्पर्धा रही.
दूसरी तरफ कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया था. पार्टी को उम्मीद है कि इस बार किसी तरह की अंदरूनी कलह उसकी कमजोरी नहीं बनेगी.