भारत में शुभ-मंगल, चीन में सावधान
३० जुलाई २०२१अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकेन 27 जुलाई को अपनी दो- दिवसीय यात्रा पर भारत आये तो वहीं उपविदेश मंत्री वेंडी शर्मन 25 और 26 जुलाई को चीन के दौरे पर रहीं.
अपनी भारत यात्रा के दौरान ब्लिंकेन विदेशमंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, और प्रधानमंत्री मोदी से भी मिले और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत-अमेरिका संबंधों की महत्ता पर काफी प्रकाश डाला. ब्लिंकेन की यात्रा से भारत और अमेरिका संबंधों में और मजबूती आयी है.
दोस्ती की चाशनी में और मिठास घोलने की कोशिश के तहत ब्लिंकेन ने अमेरिकी सरकार की तरफ से भारत को वैक्सीन की खरीद के लिए 2.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद की भी घोषणा की. दोस्त वही है जो बुरे वक़्त में जो साथ दे - अच्छे वक़्त में तो सब यार हैं. कोविड काल की मार झेल चुके अमेरिका और भारत इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं. जब अमेरिका में कोविड महामारी का प्रकोप अपने चरम पर था तब भारत ने भी अपनी क्षमतानुसार अमेरिका की मदद की थी.
क्वॉड पर जोर
ब्लिंकेन की भारत यात्रा जयशंकर की मई 2021 यात्रा की दोस्ताना रिटर्न विजिट के तौर पर हुई है. ब्लिंकेन से पहले अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ने भी मार्च 2021 में भारत का सफल दौरा किया था और अप्रैल में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों पर अमेरिकी प्रशासन के विशेष दूत केरी ने भी अप्रैल 2021 में भारत का दौरा किया था.
ब्लिंकेन की यात्रा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के इस वक्तव्य के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण हो जाती है जिसमें उन्होंने अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया के साझा सामरिक गठबंधन क्वॉड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग – क्वॉड की शिखर वार्ता आयोजित करने की पेशकश की.
माना जा रहा है कि क्वॉड की यह शिखर वार्ता संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेम्बली की बैठक की साइडलाइन में आयोजित होगी. गौरतलब है कि अगस्त में भारत संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भी करेगा. उम्मीद की जा रही है किॉक्वाड शिखर सम्मलेन के अलावा भारत और अमेरिका के बीच भी एक द्विपक्षीय शिखर बैठक भी होगी हालांकि इस सन्दर्भ में सुनिश्चित तौर पर कुछ कहने में अभी समय है.
क्वॉड को धीरे- धीरे संस्थागत रूप देने की बाइडेन प्रशासन की कवायद लगातार जारी है और इस कोशिश में धीरे-धीरे ही सही, क्वॉड के चारों सदस्य देशों को सफलता भी मिल रही है. क्वॉड वैक्सीन इनिशिएटिव को 2022 की शुरुआत तक लॉन्च करने पर भी दोनों देशों के नेताओं के बीच बात हुई. यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिसकी सराहना की जानी चाहिए.
भारत का वैश्विक महत्व
इस सन्दर्भ में भारत और अमेरिका के बीच सुदृढ़ संबंध बुनियाद का काम करते हैं. इस बात का जिक्र और भारत-अमेरिका सामरिक साझेदारी का बखान प्रधानमंत्री मोदी ने ब्लिंकेन से मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर भी किया. इसकी झलक अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकेन के वक्तव्यों में भी देखने को मिली, खास तौर पर तब जब उन्होंने यह कहा कि बहुत कम ही रिश्ते हैं जो भारत और अमेरिका के रिश्तों से भी महत्वपूर्ण हैं.
तस्वीरों मेंः एक साथ कई विवादों में फंसा चीन
इस वक्तव्य के दोनों ही पहलू दिलचस्प हैं - एक तो यह कि भारत और अमेरिका के सम्बन्ध खास हैं और महत्वपूर्ण भी, लेकिन यह भी कि इन संबंधों से भी महत्वपूर्ण कुछ और रिश्ते हैं और शायद भारत और अमेरिका को आपसी संबंधों को और मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए.
ब्लिंकेन ने अपने वक्तव्य में न सिर्फ भारत-अमेरिका संबंधों को दुनिया के सबसे अहम द्विपक्षीय संबंधों में से एक करार दिया बल्कि बातचीत के दौरान उठे मुद्दों से भी इस वक्तव्य की सच्चाई का आभास होता है.
भारतीय शीर्ष नेताओं के साथ बैठकों के दौरान ब्लिंकेन ने सिर्फ द्विपक्षीय मुद्दों पर ही विचार विमर्श नहीं किया बल्कि वैश्विक महत्त्व के बड़े मुद्दों जैसे कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और आतंकवाद से जुड़े मुद्दे, इंडो-पैसिफिक, खाड़ी देशों से जुड़े मुद्दे, कोविड महामारी और वैक्सीन से जुड़े मुद्दे, म्यांमार में लोकतंत्र बहाली, और संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार जैसे मुद्दों पर भी चर्चा और चिंतन हुआ.
जहां तक ब्लिंकेन की भारत यात्रा का सवाल है तो उसकी बड़ी उपलब्धि यही है कि इस वार्ता ने आगामी चतुर्देशीय क्वॉड और द्विपक्षीय भारत-अमेरिका शिखर वार्ता की तैयारियों के साथ-साथ भारत को इस बात का एहसास भी दिलाना था कि वैश्विक मामलों में भी अमेरिका भारत को एक बड़ा साझेदार और जिम्मेदार स्टेकहोल्डर समझता है.
चीन में शर्मन
जहां एक और ब्लिंकेन की यात्रा ने भारत और अमेरिका के आपसी संबंधों के बेहतर दिनों की उम्मीद और बुलंद की, तो वहीं अमेरिकी उपविदेश मंत्री वेंडी शर्मन की चीन की यात्रा कुछ खास उपलब्धि हासिल नहीं कर पाई. एशिया की दो महाशक्तियों के दौरे पर आये अमेरिकी विदेश मंत्री और उपविदेश मंत्री की यात्रा बिना कुछ कहे ही कई सन्देश दे गई.
सबसे पहला तो यही है कि एशिया में होने के बावजूद मंत्री ब्लिंकेन ने भारत आने का निर्णय लिया और चीन (जापान, कोरिया, और मंगोलिया) की यात्रा का जिम्मा उपविदेश मंत्री वेंडी शर्मन के जिम्मे कर दिया. कूटनीतिक संकेतों के माहिर और अक्सर राजनय की बड़ी-बड़ी बातों को इशारों में कह जाने के लती चीन को यह बात तो जरूर अखरी होगी.
जो भी हो, वेंडी शर्मन का पिछले हफ्ते का पूर्वी एशिया दौरा अपने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. मार्च 2021 में अलास्का में हुए चीन और अमेरिका मंत्री-स्तरीय वार्ता के असफल होने के बाद तियानजिन में जुलाई 2021 में हुई बैठक से चीन-अमेरिका संबंधों के समर्थकों की उम्मीदें थीं कि शायद दोनों देश बातचीत के जरिये संबंधों को वापस पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे.
अफसोस कि ऐसा हुआ नहीं. आशाओं के बिलकुल उलट दोनों देशों के बीच हुई वार्ता न सिर्फ असफल रही बल्कि शायद तल्खियों की बातें भी दुनिया के सामने आई हैं. अपनी यात्रा के दौरान शर्मन ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत की. दोनों पक्षों के बीच की बातचीत में डैमेज कंट्रोल की कवायद और उम्मीद छायी रही.
कलह टालने की कोशिश
बातें इस मुद्दे पर भी हुईं कि कैसे दोनों महाशक्तियां अपने संबंधों को जिम्मेदाराना ढंग से चला सकें और इसके सुचारु रूप से चलाने के लिए क्या नियम बनाए जाएं. बेतकल्लुफी के अंदाज में वेंडी शर्मन ने यह भी कहा कि चीन और अमेरिका एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करें, यह तो सही है लेकिन अमेरिका यह हरगिज नहीं चाहता है कि चीन के साथ उसके संबंधों में कलह और विवाद पैदा हों.
शर्मन अपनी बैठकों में चीन और अमेरिका के शासन-प्रशासन और विदेश नीति से जुड़े मूलभूत मूल्यों में पनपते मूलभूत मतभेदों की और इंगित करना नहीं भूलीं. उन्होंने चीन में मानवाधिकार हनन के मुद्दों को उठाया जो निश्चित तौर पर चीन को रास नहीं आया.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अनुसार मंत्री शर्मन ने साइबर हैकिंग, ताइवान की सुरक्षा, कोविड महामारी की वजह-सम्बन्धी विश्व स्वास्थ्य संगठन की जांच में सहयोग, पूर्वी और दक्षिण पूर्वी सागर में चीन की अतिक्रमण की गतिविधियों पर भी बाइडेन प्रशासन के विचार और चिंताएं जाहिर कीं. साथ ही कई साझा हितों के मुद्दों पर भी बातें हुई जिनमें अफगानिस्तान, उत्तरी कोरिया, ईरान, और म्यांमार जैसे मुद्दे छाए रहे.
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वहीं दूसरी और चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार चीनी नेताओं ने भी अमेरिका को दो टूक सुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. शिन्हुआ के अनुसार वांग यी ने शर्मन से कहा कि अमेरिका को चीन-सम्बन्धी अपने ‘मिसगाइडेड माइंडसेट' और ‘खतरनाक नीतियों' - दोनों को छोड़ना चाहिए. चीन और अमेरिका के बीच संबंधों में कितना उतार आ चुका है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उपविदेश मंत्री शर्मन बाइडेन प्रशासन की तरफ से चीन की यात्रा करने वाली सबसे उच्चासीन पदाधिकारी हैं.
भारत बनाम चीन
शर्मन की यात्रा के पीछे कहीं न कहीं एक मकसद यह भी था कि अक्टूबर 2021 में रोम में होने वाली G-20 की शिखर बैठक के दौरान जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बात-चीत का रास्ता तलाशा जाए.
लेकिन यह सब कुछ इतना आसान नहीं है. चीन अब इस बात के लिए तैयार नहीं दिखता कि अमेरिका अपने को सबसे बड़ी महाशक्ति के तौर पर देखे. इस सन्दर्भ में वांग यी का वक्तव्य गौरतलब है जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका को खुद को बेहतर और चीन को कमतर कर आंकना छोड़ना पड़ेगा.
जो भी हो, ब्लिंकेन और शर्मन की यात्राओं से आगामी समय के सामरिक और कूटनीतिक समीकरणों की रूपरेखा और साफ हो रही है. भारत के साथ अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों में जहां इंडो-पैसिफिक व्यवस्था में भारत की बड़ी भूमिका एक अच्छी खबर है तो वहीं चीन के साथ अमेरिका और भारत दोनों के असहज रिश्ते इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति और समृद्धि पर गहरे काले मंडराते बादलों की तरह.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)