जलवायु बचाने में कार्बन भंडार कितने मददगार?
१३ अगस्त २०२१कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती और उसे एक जगह थामे रखने के लिए अब पानी की दुनिया की मदद ली जा रही है. एक स्वैच्छिक कार्बन प्राइसिंग योजना के तहत ये काम हो रहा है. संरक्षणवादियों को उम्मीद है कि ऐसी कोशिशों से, स्पेन के बालियारिक द्वीप-समूह के समुद्र के तल पर उगने वाली घास की बची रह पाएगी. इबित्सा और फोरमेनटेरा के बालियारिक द्वीपों के समन्दर के तल में ये घास 15 किलोमीटर तक लहरा रही है.
ये जलीय प्रेरी यानी पानी के भीतर घास का मैदान, मछलियों और अन्य जीवों की प्रजातियों का एक सघन हैबिटेट है. समन्दरों के मिथकीय देवता के नाम पर इसे पोजीडोनिया ओशानिका या नेप्च्युन ग्रास भी कहा जाता है. एक जैसी घास के विशाल गुच्छों और झुरमुटों वाला ये जीव, धरती का सबसे पुराना जीव माना जाता है.
सीग्रास की हर पट्टी दूसरी पट्टियों की आनुवंशिक नकल है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ये समुद्री घास एक लाख साल से भी ज्यादा समय से धरती पर है. और इस पूरी अवधि में ये भूमध्य क्षेत्र के नीचे परत दर परत कार्बन का भंडार सोखती रही है.
मैडिटरेनियन इन्स्टीट्यूट फॉर एडवान्स्ड स्टडीज में ओशन साइंटिस्ट नूरिया मार्बा कहती हैं, "पोसीडोनिया की वनस्पति और घास के इस विशाल गलीचे में उसकी पूरी उम्र के दरमियान जमा हुआ ऑर्गेनिक कार्बन का भंडार हमें मिल सकता है.”
मारबा का कहना है कि ये परत हर हजार साल में एक मीटर मोटी हो जाती है. कुल मिलाकर भूमध्य सागर के तल पर घास से भरा ये 55 हजार हेक्टेयर का इलाका है जिसमें विशाल कार्बन भंडार पड़ा है.
कुदरती आफतें और इंसानी हरकतें
इस समुद्री घास पर बड़े दबाव आने लगे हैं. बालियारिक द्वीप समूह मे पिछले साल ग्लोरिया तूफान ने बड़ी तबाही मचाई थी. तूफान के अलावा समुद्री तामपमान में बढोत्तरी, मौसम की अतियों, खेती से आने वाले मलबे और सीफूड का शिकार करने वाले जहाजों की समुद्र तल को खुरचती मशीनों ने हालात और बिगाड़ दिए हैं.
2012 के एक अध्ययन के मुताबिक पोसीडोनिया का 11 हजार वर्ग मीटर विस्तार जहाजी एंकरों ने पिछले चार साल में खुरच कर रख दिया है. इधर कोविड-19 महामारी के चलते टूरिस्टों की आमद में 87 प्रतिशत की गिरावट से समुद्री घास पर चाहे अनचाहे दबाव भी कम हुए हैं.
मारबा, थोड़ी राहत की इस अवधि को "ट्रेगुआ” कहती हैं- इसका आशय शांति के एक अल्पकालिक समय से है- जैसे इंसानों और समन्दरी पर्यावरण के बीच जारी लड़ाई में कुछ पल का "युद्ध विराम”.
तस्वीरों मेंः प्रलय के मंजर
वो लड़ाई जो 1970 के दशक में बड़े पैमाने पर शुरु हुए पर्यटन से छिड़ गयी थी और वैज्ञानिकों के लिए राहत की ये खिड़की ठीक उस समय खुली है जबकि वे जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में समुद्रों की भूमिका को समझ ही रहे हैं.
जलवायु परिवर्तन को कम करता ‘नीला' कार्बन
कार्बन-मूल्य प्रणालियां विकसित करने वाली स्वयंसेवी संस्था वेरा ने जून में इस पर काम शुरू किया था कि कैसे "समस्त सीस्केप” को दुनिया की सबसे विशाल स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट स्कीम, वेरिफाइड कार्बन स्टैंडर्ड (वीसीएस) में शामिल किया जा सकता है.
कार्बन प्राइसिंग के जरिए प्रदूषण करने वाली कंपनियां अपने उत्सर्जनों के बदले कहीं और कार्बन बचाने वाले प्रोजेक्टों की फंडिंग के लिए क्रेडिट खरीद सकती हैं. साधारण शब्दों में, वेरा उन तरीकों का पता लगाती है जिनसे बचाई गई कार्बन की मात्रा पता चल सके. जैसे, सीग्रास की बहाली के अभियान में कितनी कार्बन बची- ये देखा जाता है. और फिर इसके आधार पर एक मूल्य तय किया जाता है, उत्पादन कंपनी इस मूल्य के सापेक्ष क्रेडिट खरीद कर, अपने यहां उसी मात्रा में उत्सर्जित होने वाली कार्बन की भरपाई कर सकती है.
भूमध्य सागर की सीग्रास का मूल्य आंकना भी इसलिए जरूरी है क्योंकि वो न सिर्फ अपनी जैव विविधता की हिफाजत कर पा रही है बल्कि जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी समर्थ है. इस "नीले कार्बन” की प्राइसिंग से फोरमेनटेरा के पोसीडोनिया बचाओ प्रोजेक्ट जैसे संरक्षणवादी अभियानों को अपने काम की फंडिग जुटाने के लिए प्रमाणित क्रेडिट्स बेचने में मदद मिलेगी.
मारबा कहती हैं, "कार्बन इनीशिएटिव, हर लिहाज से अच्छा है- पौधे लगाने के लिहाज से देखें तो रेस्टोरेशन के लिए और पहले ही खराब हो चुकी घास की कुदरती रिकवरी के लिए भी और जो उपलब्ध घास है उसे और बरबादी से रोकने के लिए.”
उनके मुताबिक कार्बन क्रेडिट फंड का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल होना चाहिए- जैसे इबित्सा के टूरिस्ट रिसॉर्टों के गंदे पानी की बेहतर प्रोसेसिंग हो, 2018 की पोसीडोनिया डिक्री या आज्ञप्ति के कानूनों पर अमल हो, सीग्रास मीडोज की सुरक्षा करने वाले भूमध्य सागर के पहला कानून जैसे समुद्री घास की सतह पर एंकर डालने पर रोक लगे.
कार्बन की मात्रा तय करने की जटिलता
मई में, वेरा ने कोलम्बिया के कैरेबियाई तट पर अपना पहला ब्लू कार्बन संरक्षण प्रोजेक्ट पंजीकृत कराया है. तीस साल की अवधि में करीब एक मीट्रिक मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करने का लक्ष्य रखा गया है. ये ठीक वैसा ही है जैसे सड़कों से करीब सात हजार वाहनों को हटा लेना. इस प्रोजेक्ट के तहत मैनग्रोव इकोसिस्टम का टिकाऊ ढंग से प्रबंध किया जाएगा.
पोसीडोनिया जैसी समुद्री घास भी ज्यादा दूर नहीं है. वेरा ने सीग्रास को बचाने से होने वाली नेट कार्बन बचत की मात्रा निकालने के लिए तरीके पहले ही विकसित कर लिए हैं. इसका मतलब ये है कि एक बेसलाइन इस बात की तैयार हो कि बिना कुछ किए कितना नुकसान हो सकता है और ये देखा जाए कि कार्बन-क्रेडिट से हासिल फंडिंग से चलने वाली संरक्षण कोशिशों से कितनी कार्बन बचाई जा सकती है.
यानी समुद्र के तल में छेड़छाड़ से ऐतिहासिक रूप से एक जगह जमा रहने वाली कार्बन को छिन्न-भिन्न होने से रोकना और पौधों को उगते रहने देना जिससे वो और सीओटू को अपने भीतर कैद करना जारी रख सकें.
वेरा में कार्यरत नेचुरल क्लाइमेट सोल्युशन्स डेवलेपमेंट मैनेजर ऐमी श्मिट का कहना है, "ये करने का तरीका आमतौर पर ये है कि ऐतिहासिक डाटा को देखा जाए कि पिछले 10 साल में क्या हुआ है- जैसे जहाजों के लंगरों से समुद्र तल में अवरोध पैदा होता है जिसका असर समुद्री घास पर पड़ता है. या उस जैसे किसी दूसरे इलाके को देखा जाए जो उसी तरह के दबावों से जूझ रहा है.”
समुद्री कार्बन चक्र को समझने की जद्दोजहद
वन संरक्षण अभियानों को फंड करने के लिए कार्बन के बदले क्रेडिट वाली योजनाएं 1990 के दशक से चल रही हैं. लेकिन समुद्री पर्यावरण में जमा होने वाली कार्बन की मात्रा जानने के लिए नयी प्रविधियों की जरूरत है. और इस काम में कुछ खास किस्म की चुनौतियां हैं.
श्मिड का कहना है कि जमीन के मामले में देखें तो ज्यादा डाटा उपलब्ध है, कार्बन क्रेडिट वाले प्रोजेक्टों से भी और चूंकि स्थलीय पर्यावरणों का अध्ययन आमतौर पर बेहतर ढंग से होता है- इसलिए भी. वह कहती हैं, "नीले कार्बन से जुड़े कई मामलों में नुकसान का या ईकोसिस्टम में बदलाव का सामान्य रूप से उच्चस्तरीय, देशव्यापी या राज्यव्यापी डाटा फिलहाल उपलब्ध नहीं है.”
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वेरा संस्था का कहना है कि सीग्रास की तरह जमीन के बिलुकल छोर पर सक्रिय प्रोजेक्टों को ब्लू कार्बन फ्रेमवर्क के दायरे में लाना सबसे आसान होगा. वे कार्बन कैसे स्टोर करते हैं- ये दिखाने के लिए पक्का डाटा मौजूद है, दूसरे वेरा, स्थलीय पर्यावरणों पर अपने 15 साल के काम से उनकी तुलना ज्यादा स्पष्ट और साफतौर पर कर सकती है.
कुछ अनुमानों के मुताबिक, हर एकड़ के हिसाब से देखें तो समुद्री ईकोसिस्टम जंगलों के मुकाबले 20 गुना ज्यादा कार्बन सोख सकते हैं. लेकिन वैज्ञानिक अभी इस पर काम ही कर रहे हैं कि ये कार्बन साइकिलें आखिर कैसे ऑपरेट होती हैं. "समस्त सीस्केप” को शामिल करने का लक्ष्य अभी दूर ही नजर आता है.
केल्प यानी समुद्री खरपतवार पर निगाहें
ससेक्स वाइल्डलाइफ ट्रस्ट में लिविंग सीस ऑफिसर साराह वॉर्ड का कहना है कि ‘हेल्प अवर केल्प' नाम के संरक्षण अभियान को फंड करने में दिलचस्पी रखने वाली कार्बन प्राइसिंग स्कीमों से कुछ लोगों ने दिलचस्पी दिखाई है. ‘हेल्प अवर केल्प' अभियान के तहत ब्रिटिश तटीय रेखा के साथ साथ 40 किलोमीटर दूर तक उगी और तेजी से गायब हो रही केल्प को बचाने की कोशिश की जा रही है.
लेकिन केल्प कितनी कार्बन सोखता है, इसकी मात्रा का अंदाजा लगाना जटिल है और इसीलिए प्राइसिंग तय करना भी जटिल है. अपने जीवनकाल में समुद्री घास सघन कार्बन भंडार जमा रखती है, अपनी सख्त और मोटी जड़ प्रणाली में सड़ीगली और मृत घास के गुच्छे और टुकड़े आदि फंसा लेती है, हर साल मांसल लंबे पत्ते गिरा देती है- कमोबेश पतझड़ी पेड़ों की तरह- महासागरीय धाराएं उन पत्तों को बहा ले जाती हैं, इसका मतलब ये साफ नहीं है कि सारा कार्बन आखिर कहां जाकर जमा होता है.
वॉर्ड कहती हैं कि उन्होंने संभावित निवेशकों को फिलहाल दूर रखा है, उन्होंने आगाह किया कि कार्बन क्रेडिट बेचने के लिए ‘हेल्प अवर केल्प' अभियान के पास दीर्घकालीन कार्बन भंडारण का ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.
तटीय मामलों के वैज्ञानिक स्टीव क्रूक्स पिछले 15 साल से वीसीएस और दूसरी संस्थाओं के लिए ब्लू कार्बन प्रोग्राम विकसित करने के काम में जुटे हैं. उनका कहना है कि केल्प वनों के मामले में, कार्बन क्रेडिट इस बात के सिर्फ निचले स्तर के अनुमानों के आधार पर ही बेचे जा सकते हैं कि केल्प के संरक्षण से कितनी कार्बन बचाई जा सकी. इसी दौरान वेरा संस्था को आने वाले वर्षों में डाटा तैयार कर लेने की उम्मीद है जिससे पता चल पाएगा कि कहां पर ज्यादा कार्बन जमा की जा सकती है.
क्रूक्स कहते हैं, "कार्बन उत्सर्जन न होने देने और वायुमंडल से उन्हें हटाते रहने की प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिए हमें असरदार बीमा कार्यक्रम तैयार करने होंगे. लेकिन साथ ही साथ हमें ये बड़ा सबक भी याद रखना होगा कि कार्बन प्रोजेक्ट जटिल होते हैं. हमें सब्र से काम लेना होगा.”
रिपोर्टः मैथ्यू पोन्सफोर्ड